सोमवार, 6 जून 2011

आत्म कथा # 3 7 8

थोड़ा खोया ,ज्यादा पाया
प्यारे प्रभु की है ये माया !!
गिरा पड़ा था मुझे उठाया 
उंगली थामी पथ दरशाया!!
"भोला"  

(अंक ३७६ के आगे)

मेरे अतिशय प्रिय पाठकगण , दिनांक जून ३ के (अंक ३७६) के आलेख के बाद , मद्रास से बड़ी बेटी के सुझाव पर अपने अगले सन्देश में रामचरितमानस के उस परम कल्याणकारी प्रसंग - " कलियुग में मनुष्यों के लिए "सुगति" प्राप्ति के एक मात्र साधन ,"नामजाप ,सुमिरन, भजन ,कीर्तन" वाला तुलसीदासजी का सन्देश मैंने आपको सुनाया  !

मुझे  लगता है कि रानी बेटी श्री देवी ने, "भगवान" की प्रेरणा से ,"मानस" के उस विशेष प्रसंग की ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया था और कहीं से खोजखाज कर सन १९७३ -७४ में (आज से ३६-३७ वर्ष पूर्व) मेरे द्वारा गाये दोहे " मो सम दीन न दीन हित तुम समान रघुबीर " तथा मेरे पूरे परिवार द्वारा गाये "पाई न केहि गति पतित पावन राम भज सुनु शठ मना " के साउंड ट्रेक भी मेरे सन्देश में लगा दिए !

आशा है कि आपको , शैलेन्द्र जी की उस रचना में समाहित हमारे पूरे परिवार की सुदृढ़ "आस्था " का अनुमान लग गया होगा और आप समझ ही गये होंगे कि उस "फेल" होने वाले समाचार से जो कुछ मैंने एक झटके में खो दिया था , मुझे जो नुकसान हुआ था उससे कई गुना अधिक लाभ मैंने इस जीवन में ही पा लिया ! संकटमोचन श्री हनुमान जी के मन्दिर के महंत जी ने हमारी हनुमान चालीसा सुन कर मुझे जो आशीर्वाद दिया था वह अक्षरशः सत्य सिद्ध हुआ ! मुझे अपने इस जीवन में ही , सदियों पहले से चली आ रही हमारे पूर्वजों की सच्ची श्री हनुमतभक्ति का सुफल प्राप्त हुआ !  (भैया  ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि  मैं स्वयं औपचारिक विधि से कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाता हूँ , मैं तो बस भजन ही गाता हूँ ,वो भी जब "वह" सुनना चाहते हैं )

मैंने कारवाली कन्या और कार खोई थी ! उनके स्थान पर इष्ट देव की कृपा से जो "कन्या" मुझे उस दुर्घटना के ६ वर्ष बाद मिलीं , आप उनसे परिचित हैं - मेरी जीवन संगिनी श्रीमती कृष्णा जी ! लगभग ५५ वर्षों से वह मेरा साथ निभा रही हैं ! नहीं जानता उन कारवालीदेवी के साथ मेरा गार्हस्थ जीवन कैसा होता ! पर "इष्टदेव" की असीम अनुकम्पा से आज मैं कृष्णा जी के साथ जो आनंदमय ,सुखी और शांतिपूर्ण जीवन जी रहा हूँ  , उससे उत्तम गृहस्थ जीवन की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ !

हां, मेरे कार प्रेम में जो मुझे धक्का लगा , जो निराशा उस "फेल" होने के कारण मुझे मिली थी वह भी बस थोड़े ही समय में मिट गयी !  बाबूजी की उस चार सौ रुपयों वाली ,परिवार की  सबसे पहली ऑटोमोबाइल "बेबी ऑस्टिन" से प्रारंभ करके मैंने ३३ वर्ष की अवस्था में अपनी पहली हिलमेंन मिंनक्स खरीदी और उसके बाद एक एक करके स्टेंडर्ड हराल्ड , फीएट प्रीमियर और फिर भारत सरकार की सेवा में रहते हुए, अपनी इमानदारी की कमाई से नयी टोयोटा करोला डीलक्स कार खरीदी जो उस जमाने में भारत में केवल बड़े बड़े सेठ साहूकारों और फिल्म स्टारों के पास ही देखी जाती थी ! 

२०-२१ वर्ष की अवस्था तक मेरी दो प्रेयसियां थीं (जैसा मैंने पहले कभी कहा था) ! एक "कारवाली" और दूसरी "कार" ! फेल होने के कारण मैंने दोनों को खो दिया ! कुछ दिनों तक दुखी रहा और फिर केवल एक  विषय में ही परीक्षा देने के लिए तैयारी करने बनारस गया ! जब पहले दिन क्लास में हाजिरी के लिए मेरा नाम पुकारा गया और मैं अपना परिचय देने को खड़ा हुआ तो प्रोफेसर राजू आश्चर्यचकित रह गए ! बोले " What is this BHOLA?You are impersonating this fellow VISHWAMBHAR who did not attend a single class last year and is still missing. Better go to your M.Tech class ." 
     
बड़ी मुश्किल से उन्हें विश्वास दिला पाया कि उनके ही विषय में फेल होने के कारण मैं रिपीट कर रहा था !  मेरा रजिस्टर का नाम "विश्वम्भर" था और  nick name  - "भोला" जो बहुत मशहूर था जिसके ही कारण कन्फ्यूजन हुआ था ! डॉक्टर राजू उस वर्ष की हमारी प्रेक्टिकल परीक्षा के internal examiner भी थे ! उन्हें यह जान कर बड़ा दुःख हुआ कि वह "विश्वम्भर"  नामक विद्यार्थी (जिसने  साल भर में एक दिन भी क्लास में अपनी शकल नहीं दिखाई थी) वास्तव में मैं ही था "भोला" और मैंने सभी क्लास attend किये थे ! पर जो होना था वो तो हो ही चुका था ! पूरी तैयारी के साथ डॉक्टर राजू के सहयोग से अगले वर्ष मैं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण  हुआ ! लेकिन इस एक वर्ष में उन  कारवाली देवी का विवाह हो गया !

==========================
क्रमशः  
निवेदक: व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव 
==========================  

1 टिप्पणी:

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम ..काकी जी का सौभाग्य ...क्यों की नारी तो अर्धांगनी है ! यह एपिसोड भी अच्छा लगा !