मेरे परमप्रिय पाठकगण
बनते हैं गुरुकृपा से साधक के सब काम
मूरख "कर्ता" बन ,करे झूठे ही अभिमान ?
"भोला"
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Dear ones
It is due to our Gurujans Grace that we achieve success in our endeavours
but ignorant as we are we think that we have achieved those on our own
VNS "BHOLA"
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सत्सग में शामिल होने के दिन जैसे जैसे निकट आये ,हम अवरोध के पर्वतों से घिरते गये ! हमारी स्वास्थ्य की परेशानियाँ ,अकेले बिना किसी सबल सहायक के यात्रा कर पाने में हम दोनों की असमर्थता की भावना हमे पूर्णतः निराश कर रही थीं ! प्रियजन आप जानते ही हैं , वर्तमान दशा यह है कि मुझे २४ घंटे किसी न किसी व्यक्ति के सहायता की दरकार रहती है ! घर पर तो कृष्णा जी हर घड़ी मेरी देखरेख करती रहती हैं लेकिन सत्संग में ये संभव नहीं होता ! २००९ के USA के सत्संग में पुत्र राघव जी मेरे साथ मेरे कमरे में थे !इस वर्ष यह कठिन लग रहा था !
लगभग तीन वर्ष के बाद श्री महाराज जी के दर्शन तथा सानिध्य का यह सुअवसर हम किसी कीमत पर गंवाना नही चाहते थे ! पर हम विवश थे , किसी प्रकार भी यहाँ से हमारे सुविधापूर्वक निकलने का कार्यक्रम पक्का नहीं हो पा रहा था ! दोनों पुत्र , हमारी यात्रा की व्यवस्था के जोड़ तोड़ में लगे थे पर व्यवधान तो व्यवधान ही थे ! हमे लग रहा था मानो हमारे सभी द्वार बंद हो गये हैं और परम गुरु की कृपा के बिना उनका खुलना संभव नहीं है ! प्रियजन ऐसे में अभी हमे श्री राम शरणम के हमारे एक अनुभव की याद आ रही है , पहले आपको सुना दूं :
पाठकगण , २००६ के अंत में एक रविवार , हम दुसह दुःख से पीड़ित अपने पूरे परिवार के सहित महाराज जी के दर्शनार्थ श्री राम शरणंम गये !दैवी प्रेरणा से ही शायद उस दिन श्री महाराज जी ने अपने प्रवचन में मानव शरीर की नश्वरता एवं जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था और सब भजन गायकों ने भी कुछ इसी भाव के भजन प्रस्तुत किये थे ! क्यों और कैसे यह हुआ गुरुजन ही जाने ! पर उस दिन हम कुछ वैसी ही एक दुखद बिछोह की पीड़ा झेल रहे थे !
हमारे ऊपर ,विशेषतः हमारी छोटी बेटी पर कुछ दिन पहले ही दुखों की एक भयंकर गाज गिरी थी ! उस दिन की भेंट में महाराज जी ने हम सब को और हमारी बेटी प्रार्थना को बड़ी आत्मीयता से समझाया और चलते चलते केवल इतना कह कर आश्वस्त कर दिया कि " बेटा जब हमें ऐसा लगता है कि हमारे सब दरवाज़े बंद हो गये हैं ,परम कृपालु प्रभू हमारे लिए एक के बाद एक अनेकों नये दरवाजे खोल देता है ! बेटा भरोसा बनाये रखो , देखना भविष्य में वह तुम्हे तुम्हारी अपेक्षाओं और अभिलाषाओं से कहीं अधिक देगा "! गुरुदेव के इस वचन की सच्चाई हमे उस दिन से ही नजर आने लगी थी,- कैसे ? ,आपको अपनी आत्म कथा में शीघ्र ही बताउंगा , अभी पहले USA के खुले सत्संग का ब्योरा पूरा कर लूं !
सत्संग में पहुचने के सभी मार्ग हमे अवरुद्ध दीख रहे थे ! ऐसे में हम पर भी गुरुजन की कृपा हुई , हमारे बंद दरवाजे एक एक कर खुल गये ! आयोजकों ने मेरी दशा का विचार कर के आश्रम में हमारे लिए उचित व्यवस्था कर दी ! इधर हमारे दोनों पुत्रों ने हमे भरोसा दिला रखा था कि वे हमे किसी प्रकार सेलार्स्बर्ग पहुंचवा देंगे पर बड़े पुत्र राम रंजन को सहसा टूर पर विदेश जाना पड़ा , छोटे पुत्र राघव रंजन के पास भी विदेश से उसके अनेक एसोशिएट्स आये हुए थे और उसका बोस्टन में रहना अनिवार्य था फिर भी उसने उस दिन हमारे लिए एक दिन में लगभग १००० किलोमीटर की यात्रा स्वयम कार द्वारा ,प्रचंड थंडर और आंधी तूफान में तै की , हमे सत्संग में पंहुचाया और वापस लौट गया !
हमारे सत्संग का एक एक साधक राममय है ! प्रभु श्री राम के से सद्गुण सभी श्री राम- शरणंम के साधकों में प्रलक्षित होते हैं ! प्रियजन आप दूर से श्री राम शरणंम के साधकों को पहचान सकते हैं ! उनका प्रेम मय व्यवहार , उनकी करुणा तथा सेवा करने की उनकी आतंरिक प्रवृत्ति उन्हें साधारण व्यक्तियों से भिन्न, दैवी गुणों से सम्पन्न बना देती है !
व्यवस्थापकों ने आश्रम में ठहरने के लिए मेरे दो bed वाले कमरे में जिस नवयुवक को मेरे साथ जगह दी थी उसने वहा मुझे अपने पुत्रों की कमी नहीं महसूस होने दी ! मैं तो यह कहूंगा कि उसने मेरी जैसी सेवा की वैसी कदाचित मेरे अपने पुत्र भी नहीं कर पाते ! उसके सेवा की तुलना हम केवल श्री हनुमान जी द्वारा प्रभु राम जी की सेवा से कर सकते हैं !कैसे किन शब्दों में मैं उस व्यक्ति को धन्यवाद दूँ ! केवल प्रभु से प्रार्थना कर सकता हूँ कि मेरे राम उस व्यक्ति को पूर्णतः संपन्न एवं सदासर्वदा प्रसन्न रखें !
इस प्रकार श्री राम कृपा से एवं गुरुदेव के आशीर्वाद से मुझे इस सत्सग में कोई भी कष्ट नहीं हुआ ! आप कहेंगे कि ये तो बहुत साधारण सी बात है इसमें कौन सी विशेष कृपा मेरे गुरुजन ने मुझ पर की ? प्रियजन यह तो केवल भूमिका है मैं विस्तार से श्री राम "कृपा" के सभी द्रष्टान्त अगले अंकों में दूँगा !आज यहीं समाप्त करने की आज्ञा चाहता हूँ !
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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2 टिप्पणियां:
प्रभु कृपा से सब संभव होता है यह आप के अनुभव भी हमें बता रहे हैं और जीवन में दुःख झेलने का हौसला भी दे रहे हैं.आगे की पोस्ट की जल्द ही प्रतीक्षा में-
काकाजी प्रणाम ...न जाने किस रूप में भगवान मिल जाए ! आप के साथ भी वैसा ही हुआ !
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