गुरु कृपा -केवल- गुरु कृपा
परम प्रिय पाठकगण , आप कुछ भी सोचें ,कुछ भी कहें लेकिन जो चमत्कारिक अनुभव मुझे जून २०११ में USA के त्रिदिवसीय खुले सत्संग में हुए ;उन्हें चमत्कार की संज्ञा देकर, मैं अपने गुरुजन की कृपा की महत्ता को घटाना नहीं चाहता ! सच पूछो तो अपने जीवन में घटी हुई प्रत्येक घटना में ही गुरुजन की अहेतुकी करुणा से मुझे उपलब्ध हुए प्यारे प्रभु की असीम कृपा का दर्शन करता हूँ !
अपने जीवन के पिछले आठ दशकों (८२ वर्षों) के अनुभव के आधार पर मैं पूरी दृढ़ता से आपको यह बता रहा हूँ कि गुरुजन की करुणा एवं उनकी अनुकम्पा के बिना हम जैसे किसी भी साधारण जीवधारी को प्रभु की कृपा पाना असंभव है !और उनकी कृपा की गणना कर पाना हमारे लिए असंभव है !
अपने जीवन के पिछले आठ दशकों (८२ वर्षों) के अनुभव के आधार पर मैं पूरी दृढ़ता से आपको यह बता रहा हूँ कि गुरुजन की करुणा एवं उनकी अनुकम्पा के बिना हम जैसे किसी भी साधारण जीवधारी को प्रभु की कृपा पाना असंभव है !और उनकी कृपा की गणना कर पाना हमारे लिए असंभव है !
नहीं गिन सकूंगा मैं उपकार उनके
कृपा इस कदर वह किये जा रहें हैं
पतित हम पुरातन अधर्मी सनातन
उन्ही की कृपा से जिए जा रहे हैं !
अधम हम पुरातन पतित नीच प्राणी
गरेबान पुराना सिये जा रहे हैं
न जीने का दम न कुछ करने की ताकत
उन्ही की कृपा से जिए जा रहे हैं
महराज जी ने वादा किया था कृष्णा जी से, कि देश निकाला के दौरान वह मुझे यहाँ दर्शन देंगे, मेरी नयी रचनाएँ सुनेंगे ! २००९ में महाराज जी ने दर्शन देकर हमे अनुग्रहीत किया था. अब २०११ में उनके दर्शन की तीव्र अभिलाषा जग गयी थी ! मन में एक यह चाह थी कि कब महाराज जी अमेरिका आयेंगे , कब दर्शन देंगे और अपनी सुधामयी वाणी से हम सब को तृप्त करेंगे ! मैं ही क्या U S A के सभी साधकों को उनके आगमन की प्रतीक्षा करते हुए जो भाव था वह यही था ------,
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हे गुरुदेव विलम्ब न कीजे !
साधक जन को दर्शन दीजे !!
दो वर्षों से साधक सारे दर्शन अभिलाषा उर धारे
ठाढें हैं गुरु मन्दिर द्वारे नाथ सनाथ इन्हें कर दीजे !
हे गुरुदेव विलम्ब न कीजे !
पद परसन की चाह लिए मन,आतुर हैं सारे साधक गन !
गुरुवर उन्हें जान अपना जन,अवसर एक सबहि को दीजे !
हे गुरुदेव विलम्ब न कीजे !
मानव मन दुर्गुण का डेरा ,पल पल करता पाप घनेरा !
गुरु तजि और न कोई मेरा ,भव सागर से पार करीजे !
हे गुरुदेव विलम्ब न कीजे !
मुझको दुर्लभ है तव दर्शन , निर्बल तन मेरा दूषित मन !
एक बार कर अमृत वर्शन , मेरे सब अवगुण धो दीजे !
हे गुरुदेव विलम्ब न कीजे !
"भोला"
और फिर चिर प्रतीक्षित वह दिन आ ही गया; मैं सेल्सबर्ग में आयोजित खुले सत्संग में सम्मिलित हो सका और महाराजजी के दर्शन का , एवं उनके सानिध्य का लाभ उठा सका ! जिन जिन साधकों का सहयोग मुझे मिला उनका मैं आजीवन आभारी रहूँगा ! यहाँ तो जो मैंने पाया , बस वही बताना चाहता हूँ !
सद्गुरु मिलन से मुझे जो उत्कृष्ट उपलब्धि हुई वह अविस्मरणीय है और शब्दों में उसका वर्णन कर पाना कठिन है ! वह आनंद जो हमे वहां मिला उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे लिए असंभव है ! संत सूरदास के शब्दों में
ज्यों गूँगहि मीठे फल को रस अंतर्गत ही भावे
अविगत गत कछु कहत न आवे !!
जब सूर जैसे महापुरुष उसे नहीं कह पाए मैं कैसे कहूँ !
सद्गुरु मिलन से मेरा यह मानव जन्म धन्य हो गया सार्थक हो गया ! "सद्गुरु दर्शन" के उपरांत मेरी सर्वोच्च उपलब्धि थी सद्गुरु के "कृपा पात्र" बन पाने का सौभाग्य ! जो बिरले साधकों को मिलता है /.मुझे उनकी वाणी से ,उनके दृष्टिपात से तथा उनके सानिध्य से मिली उनकी हार्दिक शुभ कामनाएं और उनका वरदायक आशीर्वाद, लिनसे मेरे रुग्ण तन को सुद्रढ़ आत्मिक बल मिला और अनिवर्चनीय आनंद ;ऐसा आनंद जिसे पाने के लिए ऋषी मुनि गृह त्यागते हैं और अथक साधना करते हैं! इसलिए मुझे आपसे कहना है ---
जोड़े रहो तुम तार गुरुजनों से दोस्तों
छेड़े रहो झंकार उस नाम की दोस्तों
यहाँ बस इतना ही कहना पर्याप्त होगा की अपनी साधना में हमे पल भर भी ये न भुलाना चाहिये कि हमारा सद्गुरु सदैव ह्मारे अंग संग है !
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निवेदक: व्ही. एन.श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा 'भोला'श्रीवास्तव
मोडम में तकनीकी समस्या के कारण पापा यह ब्लॉग पोस्ट नहीं कर पा रहे हैं,
अतः उनकी इच्छानुसार मैं इस ड्राफ्ट को पब्लिश कर रही हूँ . - श्री देवी
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2 टिप्पणियां:
रम प्रिय पाठकगण , आप कुछ भी सोचें ,कुछ भी कहें लेकिन जो चमत्कारिक अनुभव मुझे जून २०११ में USA के त्रिदिवसीय खुले सत्संग में हुए ;उन्हें चमत्कार की संज्ञा देकर, मैं अपने गुरुजन की कृपा की महत्ता को घटाना नहीं चाहता
आपकी ये बात बहुत अच्छी लगी की आपने गुरु की कृपा को चमत्कार की संज्ञा नहीं दी और शायद इसी कारन आप पर गुरु कृपा बनी है.अच्छी पोस्ट.आभार भोला जी.
काकाजी प्रणाम आप .... गुरु की ....बहुत ही सुन्दर महिमा का वर्णन ..उधृत किये !
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