शुक्रवार, 10 जून 2011

भजन: दाता राम दिए ही जाता # 3 8 1

मेरे प्रभु, कैसे धन्यवाद दें हम आपको, आपकी इस कृपा के लिए.

इस सन्दर्भ में मेरा यह गीत देखें:

दाता राम दिए ही जाता ,
भिक्षुक मन पर नहींअघाता..

देने की सीमा नहीं उनकी ,
बुझती नहीं प्यास इस मन की
उतनी ही बढती है तृष्णा ,
जितना अमृत राम पिलाता

दाता राम दिए ही जाता

कहो उरिन कैसे हो पाऊं ,
किस मुद्रा में मोल चुकाऊं
केवल तेरी महिमा गाऊं ,
और मुझे कुछ भी ना आता

दाता राम दिए ही जाता

जब भी तुझ को गीत सुनाता
जाने क्या मुझ को हो जाता
रुन्धता कंठ नयन भर आते
बरबस मैं गुमसुम हो जाता

दाता राम दिए ही जाता
भिक्षुक मन पर नहीं अघाता

सुनने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें -  MP3 Audio of Bhajan

5 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत ... दाता तो सब देता है पर इंसान का मन भरता ही नहीं .

ZEAL ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत है , ऑडियो भी सुना , बहुत ही मनभावन ।
आत्मा तृप्त हुयी

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत| धन्यवाद|

Shalini kaushik ने कहा…

देने की सीमा नहीं उनकी ,
बुझती नहीं प्यास इस मन की
उतनी ही बढती है तृष्णा ,
जितना अमृत राम पिलाता
बहुत सुन्दर भोला जी.

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम...राम दिए जाते है , पर यह स्वार्थी मन अघाता नहीं है !स्वार्थ की वश में करना भी एक धन ही है !