आत्म कथा
भैया ये आत्म कहानी है
इसमें मुझको, प्यारे तुमको, सच्ची बातें बतलानी है
इसमें मुझको, प्यारे तुमको, सच्ची बातें बतलानी है
(इस कथा में)
शायद,कुछ तुमको ना भाये , भाई पर सुनना मन लाये
(क्योंकि)
शायद,कुछ तुमको ना भाये , भाई पर सुनना मन लाये
(क्योंकि)
अपनी कमजोरी तुम्हे सुना ,कहता हूँ इनसे तुम बचना
जैसी भूलें कीं है मैंने ,भाई मेरे तुम मत करना
"भोला"
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जैसी भूलें कीं है मैंने ,भाई मेरे तुम मत करना
"भोला"
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(गतांक से आगे)
मैंने क्या भूलें कीं ?
मैं लोभी बन गया था ! मेरे मन में अपनी पढाई लिखाई का तथा मुझे शीघ्र ही मिलने वाली टेक्नोलोजी की डिग्री का अहंकार भर गया था और उसके अतिरिक्त अपने ही आइने में मैं स्वयम को उस जमाने के प्रसिद्द फिल्म स्टार - भारत भूषण, देवानंद ,सुरिंदर ,प्रेम अदीब, आदि के समानांतर समझने लगा था , मुझे अपने स्वरूप पर भी शायद कुछ नाज़ हो गया था ! गायकी में जहां मेरे बड़े भैया को लोग श्री के. एल. सैगल का प्रतिरूप मानते थे , मैं भी अपने आपको मुकेश जी से कम नहीं समझता था !
अपने इतने सारे गुणों के आधार पर मैंने उस जमाने के कायस्थों के "मेरिज मार्केट" में अपनी कीमत बहुत ऊंची लगा रखी थी ! यह अनुचित था ! भाई लोभ और अहंकार दोनों ही भयंकर दुर्गुण हैं ! मैं इन दोनो से ही प्रभावित था ! प्रियजन मैं उन दिनों यह नहीं जानता था , किन्तु आज भली भांति जान गया हूँ कि तब मैं अत्यंत दुखदाई मानस रोगों से पीड़ित था ! तुलसीदास जी के शब्दों में , रामचरित मानस के उत्तर कांड के निम्नांकित पदों से आपको मेरे तत्कालीन रोगों की भयंकरता का अनुमान लग सकता है !
सुनहु तात अब मानस रोगा ! जिन्ह तें दुःख पावहिं सब लोगा !!
मोह सकल ब्याधिन्हं कर मूला ! तिन्ह तें पुनि उपजहिं बहु सूला !!
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना ! तें सब सूल नाम को जाना !!
अहंकार अति दुखद डमरुआ ! दंभ कपट मद मान नेहरुआ !!
मैं मोह ग्रस्त था ! मेरे मन में उन कारवाली बिटिया के ,मेरे जीवन में आगमन के साथसाथ एक इम्पोर्टेड कार की प्राप्ति का लोभ घर कर गया था ! बी एच यू के प्रसिद्ध कोलेज ऑफ़ टेक्नोलोजी के graduate होने का अहंकार उस समय मेरी सर्वाधिक दुखद बीमारी थी !
कृपानिधान परमेश्वर हमारी सब कमजोरियों से अवगत है ,"उंनसे " कुछ छुपा नही है ! वह अपने प्रिय संतान को रोग मुक्त करने का उपचार यथा शीघ्र कर देते है ! मेरे साथ भी मेरे "प्यारे प्रभु" ने वही किया ! मुझे परीक्षा में फेल करवा दिया ! उनकी औषधि की एक खुराक से ही मैं "लोभ और अहंकार" के ज्वर से जीवन भर के लिए immune (मुक्त) हो गया !
हनुमान चालीसा गायन और पुरोहितों के आशीर्वाद का पूरा लाभ मझे इस जीवन के एक एक क्षण में मिला ! मेरी आत्म कथा में आपको प्रभु कृपा के असंख्य उदहारण मिलेंगे ! प्रियजन! आगे तो मैं सुनाता ही रहूंगा "उनके" अनंत उपकारों की कथाएं , लेकिन एक अर्ज़ है कि कभी हमारी कथा के पिछले अंकों को भी आप पढ़ें , आप देखेंगे कि उन्होंने अपने इस प्रेमी को कब , कैसे और कितना उपकृत किया है !
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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4 टिप्पणियां:
कडवे प्रसाद में भी आपने मिठास पाई, तो आगे तो सब मीठा ही मीठा।
ye ahankar to ek samay par manushay ko gherta hai hi kintu jo iske janjal se mukti pa le vahi prabhu ka priy sewak hota hai...
सरस चर्चा आपकी ..
मुझे परीक्षा में फेल करवा दिया ! उनकी औषधि की एक खुराक से ही मैं "लोभ और अहंकार" के ज्वर से जीवन भर के लिए immune (मुक्त) हो गया !
कड़वी औषधि से लाभ ही हुआ होगा ..
bahut achcha lagta hai aapki aatm katha padhna.
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