बुधवार, 31 अगस्त 2011

हमारे सद्गुरु और हरिओम शरण जी


बालक "हरिओम शरण" - पर गुरुजन की कृपा
========================
(गतांक के आगे)



फरवरी १९८४ के उस शनिवार की देर रात्रि तक हरिओम शरण जी और उनकी धर्मपत्नी नंदिनी जी ने कानपूर की मोती झील स्थित सभागार में, अपने मास्टरपीस भजन सुनाकर नगर के भक्ति-संगीत के प्रेमी जन समुदाय को आनंदित किया और फिर हमारे स्थान पर रात का भोजन पाकर हमारे अतिथिगृह में विश्राम किया !

रविवार के प्रातः ८ बजे से , नियमानुसार हमारी कोठी के मंदिर में गुरुदेव श्री प्रेमजी महाराज
के आदेशानुसार आयोजित ,साप्ताहिक "श्री राम शरणम - अमृतवाणी सत्संग " में भाग लेने के लिए स्थानीय साधकगण एकत्रित हुए और बड़े आनंद से अपना सत्संग संपन्न हुआ !

यह जान कर कि प्रसिद्ध भजन गायक "हरिओम शरण जी" हमारे साथ ठहरे हैं , सब साधकों की बड़ी इच्छा थी कि हमारे सत्संग में भी हरिओम शरण जी तथा उनकी पत्नी के कुछ भजन हो जाएँ ! इस उद्देश्य से ,बीच बीच में बच्चे उठ कर अतिथिगृह के आसपास जाकर आहट लेते रहे कि यदि वे तैयार हों तो उन्हें सत्संग में बुला लाएं पर अंत तक वे असफल रहे!

सत्संग के समाप्त होते ही , जब साधकगण प्रस्थान कर रहे थे ,और कृष्णा जी अपनी पारंपरिक पूजा का "किशमिश" प्रसाद वितरित कर रहीं थीं ,अचानक " हरीओम जी " और नंदिनी जी मंदिर के द्वार पर किशमिश के लिये हाथ फैलाए दिखाई दिए ! प्रसाद पाते ही वह एक तरह से दौड पड़े और मंदिर में स्थापित सद्गुरु - श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के लाइफसाइज़ कटआउट के श्री चरणों पर अपना मस्तक रख दिया और गदगद कंठ से मुझे सम्बोधित कर के बोले --" भोला भैया ! आपने हमे कल रात को ही क्यों नहीं बताया कि आपके स्थान पर रविवार को श्री स्वामी सत्यानन्द जी द्वारा रचित "अमृवाणी" का पाठ होता है "! उनके मुंह से स्वामीजी का नाम सुनकर तथा यह जान कर कि उन्हें "अमृतवाणी जी" के प्रति इतनी गहन श्रद्धा है , हम सब आश्चर्य चकित हो गए ! सभी यह जानने को उत्सुक हो गए कि क्या "हरी जी" भी किसी प्रकार , "श्री राम शरणम" से अथवा हमारे गुरुजनों से सम्बंधित हैं ? उनसे भजन सुनने की जगह अब हम सब उनके मुंह से अपने स्वामी जी के विषय में जानकारी प्राप्त करने को उत्सुक हुए और उन्हें घेर कर वहीं बैठ गए !

हरिओम शरण जी ने बताया कि बचपन से ही उनके हृदय में भगवत भक्ति के भाव जागृत हो गए थे ! वह अपने पारिवारिक पेशे में तनिक भी रूचि नहीं रखते थे ! (एक बात बताऊँ ,इत्तेफाक से ये वह पेशा है जो मेरे - जी हाँ मेरे इस मनुष्य जन्म में , हमारे "प्यारे प्रभु" ने , किंचित प्रारब्धवश , हमारे वर्तमान जीवन के निर्वाह हेतु नियत कर रखा है ! यह वही पेशा है जो संत रैदास जी की रोज़ी रोटी का भी आधार था ) !

हाँ तो,उन्होंने बतलाया कि उनका मन सदा प्रभु राम और श्री हनुमान जी के गुण -गान भरे भजन गाने और उनका संकीर्तन करने में लगा रहता था!इसलिए वह अक्सर अपने घरवालों से चोरी छुपके ,नज़र बचा कर , दूर दूर तक संतों के प्रवचन तथा श्रीमदभागवत गीता और बाल्मीकि एवं तुलसी कृत रामायण के संगीतमय सत्संगों में सम्मिलित होने चले जाते थे !

भारत के विभाजन से पूर्व उन्होंने अपने जन्मस्थान पंजाब के लाहौर शहर में रामायण का अति सरस संगीतमय प्रवचन सुना ! प्रवचन कर्ता संत स्वामी श्री सत्यानान्दजी महांराज के चुम्बकीय आकर्षक व्यक्तित्व तथा उनकी सधी हुई सुरीली ओजपूर्ण आवाज़ ने उन्हें इतना आकर्षित किया कि वे नित्य प्रति उस सत्संग में जाने लगे !

उस समय के कट्टरपंथी सनातनी पंडितों के आतंक से बालक "हरीओम" संकोचवश पंडाल के भीतर तक नहीं जाते थे अत : द्वार पर ही जनता की जूतियों के निकट उन्हें साफ करने के बहाने वे चुपचाप बैठे रहते थे ! वे बडे ध्यान से कथा वाचक संत के प्रवचन सुनते थे और उनके स्वर में स्वर मिलाकर , अति ऊंची आवाज़ में ,तार सप्तक पर , उन संत जी के शब्दों (भजनों) तथा कीर्तनों की धुनों का अनुकरण करते थे !

प्रवचन के समापन पर जब संत स्वामी श्री सत्यानान्द्जी व्यासपीठ से उठ कर पंडाल के द्वार से बाहर जाते तो बालक हरीओम उन की ब्राउन रंग की मोजरी (जूती) अपने अंगौछे से चमका कर, उनके चरणों के आगे रख देता था ! यह उसका नित्य का कार्यक्रम था ! मोजरी पहन कर स्वामी जी मुस्कुराते हुए , आशीर्वाद की मुद्रा और प्रशंसा भरी दृष्टि से हरिओम की तरफ देखते थे ,हाँ , केवल देखते भर थे और सीढ़ियों से उतर कर बालक हरी को जाते समय दो किशमिश के दानों का प्रसाद देते जाते थे !

प्रेरणास्रोत किशमिश के दो दाने

कृष्णाजी से प्रसाद के रूप में प्राप्त दो किशमिश के दानों ने हरी ओम शरण जी को सहसा उनके बचपन के दिन याद दिला दिये ! पार्टीशन से पहले , लाहौर में स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के प्रवचन के बाद ,उनके हाथों से प्राप्त अमृततुल्य दो किशमिश के दानों की स्मृति उन्हें आनंद से भर रही थी !

कथा का समापन करते हुए , सजल नेत्रों और अवरुद्ध कंठ से उन्होंने मुझसे कहा " भोला भैया , मैं जानता हूँ , यहाँ और कोई माने या न माने ,आप जरूर विश्वास करेंगे कि गायकी तथा गीतों की शब्द एवं स्वर रचना के क्षेत्र में मुझे जीवन में जितनी सफलता मिली है , वो सब ,बचपन में ही स्वामी सत्यानन्द जी महाराज से प्राप्त आशीर्वाद एवं उनके प्रोत्साहन तथा प्रेरणा को संजोये किशमिश के दो दानों के ही कारण है !

हमारे सत्संग भवन में , अपने अतीत के पन्नों को पलटते हुए हरी जी ने उपरोक्त संस्मरण हमें सुनाये थे ! शैशव में ही , स्वामीजी की कृपा दृष्टि से बालक हरिओम को जिस दिव्य आनन्द की अनभूति हुई थी उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हुआ था ,वह उनके मन और बुद्धि पर ऐसी अमिट छाप छोड़ गया जो आजीवन उनकी विभिन्न भक्ति रचनाओं में प्रतिबिम्बित हुई और उनके मधुर गायन के द्वारा समस्त संसार को आनंदित करती रहीं !



(ऊपर के चित्र में १९७० के दशक में हरिओम शरण जी से , उनकी भावपूर्ण रचनाओं को सुनते हुए His Masters Voice (Recording Company) के तत्कालीन संगीत निर्देशक मुरली मनोहर स्वरूप जी जिन्होंने हरिओम जी तथा मुकेशजी के अनेक प्रसिद्ध भजनों को संगीत- बद्ध किया था ! हरी जी की " मैली चादर" , और " उद्धार करो भगवान तुमरी सरन पड़े " तथा अन्य भजन और मुकेशजी के अनेक भावपूर्ण भजनों को स्वरबद्ध किया ! --- कुछ ऐसा याद आ रहा है कि जैसे मुरली बाबू से हमारी भेंट आकाशवाणी लखनऊ के स्टूडियो में १९५०-६० के दशक में हुई थी )

आप को ऐसा लग रहा होगा कि मैं ट्रैक बदल रहा हूँ ,लेकिन ऐसी कोई बात नहीं है ! सच पूछो तो मैं अब धीरे धीरे वापस अपनी ट्रैक पर आ रहा हूँ ! "उनकी"कृपा हुई तो कल से मुकेश जी की कथा चालू हो जायेगी !

============================
निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: कृष्णा भोला श्रीवास्तव
===================


मंगलवार, 30 अगस्त 2011

मुकेश जी की सभा में हरिओम शरण जी -


"आनंद की अनुभूति में हरि दर्शन "
==================

मेरे पिछले दो आलेखों पर मेरे लिए दो चार ही सही पर बड़े ही "आनंददायक" कमेन्ट आये ! प्रियजन ,मुझे तो इस "आनंद" में ही "आनंदघन - मेरे प्यारे प्रभु का दर्शन होता है" ! मैं धन्य हो गया ! मेरी साधना सफल हुई , मेरी हल्की आवाज़ भी आप सहृद स्नेहियों तक पहुंच रही है ! अपने प्यारे प्रभु का "प्रेम सन्देश" आप तक पहुचाने में मैं सफल हुआ ! मेरी सेवा , आप सब के हृद्यासन पर बिराजे , "मेरे मालिक" को पसंद आई इससे अधिक मुझे और कौन सा ईनाम चाहिए ? मेरा मन गदगद हो कर कह रहा है :

नाथ आज मैं काह न पावा , मिटे दोष दुःख दारिद दावा
अब कछु नाथ न चाहिय मोरे , दीन दयाल अनुग्रह तोरे
============

सिंगापुर निवासिनी अपनी एक बहू (कृष्णा जी के भतीजे अनिल बेटे की धर्म पत्नी ,जिनको मैं स्नेहवश "रानी बेटी" ही कहता हूँ , के कमेन्ट के उत्तर में मैंने जो कहा ,नीचे लिख रहा हूँ ,पढ़ कर मेरे सब स्नेही स्वजन मेरे विचार तथा हृदयोद्गार से अवगत हो जायेंगे !
============================
रानी बेटी इंदुजा , राम राम ,

अपने ब्लॉग पर तुम्हारा कमेन्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ! बेटा मैं जो कुछ कहता हूँ , सब अपने निजी अनुभव के आधार पर कहता हूँ ! ८२ - ८३ वर्ष के इस जीवन में प्रति पल मैंने प्रभु की इस समग्र सृष्टि के कण कण से केवल "प्रेम ही प्रेम" पाया है ! मेरी अनुभवों की झोली में केवल प्रेम ही प्रेम है ,अपने स्वजनों के बीच उसका वितरण करके मैं इस जीवन के एक एक पल में आनंद लूट रहा हूँ और वह लूटी हुई सम्पत्ति , सबको ही अनवरत लुटाते रहना चाहता हूँ !

यह जान कर कि पाठकों को मेरे आलेखों में "आनंद घन - प्रियतम प्रभु " के दर्शन होते है मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं रहती ! मैं जानता हूँ कि यह भी "उनकी" ही अहेतुकी कृपा के फलस्वरूप है ! बेटा , मैं अपने इन निर्बल अंगों से क्या कर सकता हूँ ?

"उन" पर भरोसा बनाये रखो ! "उनसे" और "उनकी कृतियों" से प्यार करो और फिर प्यारे प्रभु के आनंद-अमृत का रसास्वादन करती रहो !

शुभाकांक्षी
तुम्हारा भोला फूफाजी
=============

चलिए गयाना के न्यू एम्सटरडम लौट चलें ! श्री जैक्सन की कोठी में मेरे स्वागत के लिए आयोजित उस शाम के संगीत समारोह का प्रारम्भ गयाना के एक गायक के द्वारा प्रस्तुत "हरि ओम शरण जी" के गणपति वंदन - " स्वीकारो मेरे परनाम से हुआ " !

शायद आप जानते हों कि "हरिओम शरण जी" तब तक ,अपने भजनो के जरिये ,केरेबियन के सभी देशों में बहुत मशहूर हो चुके थे ! वह वहाँ इतने प्रसिद्ध हुए कि , यह जानते हुए भी कि वह एक प्रकार से विरक्त सन्यासी हैं ,उन देशों - त्रिनिदाद टोबेगो , गयाना ,बारबेडोस ,एंटीगा , जमाइका आदि की अनेक भारतीय मूल की कन्याएं स्वदेश छोड़ कर ,उनके साथ भारत जा कर उनकी शिष्या तथा गृहणी तक बनने की इच्छुक हो गयीं थीं !

अन्त्तोगत्वा यहीं की एक कन्या उनकी धर्मपत्नी बनी और उनके जीवन के अंतिम क्षण तक वह उनका साथ अति श्रद्धा युक्त प्रेम से निभाती रहीं ! श्रद्धा इसलिए कि एक तरफ वह उन्हें अपना आध्यात्मिक और संगीत गुरु मानती थीं , और दूसरी ओर "हरी जी" उनके पति परमेश्वर तो थे ही !

१९८३ में , हरीओम शरण जी एवं उनकी धर्म पत्नी ( क्षमा करियेगा हम दोनों ही उनका नाम याद नहीं कर पा रहे हैं ) , कानपूर की हमारी सरकारी कोठी "टेफ्को हाउस" में दो दिनों के लिए हमारे मेहमान बन कर रहे ! इन दो दिनों में हमारी उनसे काफी घनिष्ठता हो गयी ! लेकिन उसके बाद हम उनसे नहीं मिल सके ! हरी जी के निधन के बाद अब उनकी धर्मपत्नी कहाँ है हम नहीं जानते ! हम स्वयम पिछले ७-८ वर्षों से , भारत से हजारों मील दूर यहाँ नोर्थ अमेरिका में पड़े हैं !

जो चित्र आप नीचे देख रहे हैं उसमे "हरी जी" और उनकी धर्मपत्नी "नंदिनी जी " ( देखा आपने कैसे ,एक साथ ही मुझे और कृष्णा जी दोनों को ही ,भूला हुआ उनका नाम एकाएक याद आगया ) को , कृष्णा जी अपनी कानपूर की कोठी में स्वयम अपने हाथों से भोजन परस रहीं हैं ! अन्य अथिति और मैं मेज़ के दूसरे छोर पर बैठे हैं !
कृष्णाजी , हरि ओम शरण जी तथा उनकी पत्नी नंदिनी जी
===========================
हमारे प्रमुख सम्पाद्क महोदय (प्यारे प्रभु) कब कहाँ और कैसे मेरी कथा को घुमा देते हैं वह ही जानें ! मैं तो वही लिखता हूँ , "वह" जो लिखवाते हैं !
=====================
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : कृष्णा भोला श्रीवास्तव
==================

Posted by Picasa

सोमवार, 29 अगस्त 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"

वह विशेष दिन
यहाँ का - २७ अगस्त -और- भारत का- २८ अगस्त १९७६
================================

आप जानते ही हैं कि उन दिनो मैं साउथ अमेरिका के एक छोटे से देश गयाना के नगर - "न्यू एम्स्टर्डम" में था ! प्रोजेक्ट साईट से लौट कर उस शाम मुझे नगर के मेयर द्वारा आयोजित स्वागत समारोह में जाना था ! वह समारोह ,उस नगर के सबसे समृद्ध ब्यापारी ,"जैकसन्स" की सागर तट की कोठी में होने को था !

मैं कल्पना कर रहा था कि मिस्टर जैकसन , गयाना में यूरोपीय मूल के गोरे नागरिक होंगे जिनका कोई बड़ा बिजनेस हाउस होगा "बुकर्स" या "व्हाईट वेज" जैसा ! लेकिन उनकी कोठी के निकट पहुचते ही मेरी समझ में आ गया कि वह किसी यूरोपियन की कोठी नहीं थी ! दूर से ही ,कोठी के अंदर काफी ऊंचाई पर लहराते हनुमान जी के महाबीरी लाल झंडे को देख कर मुझे विश्वास हो गया कि वह कोठी किसी भारतीय मूल के गाय्नीज़ की है ! मेयर ने बाद में बताया कि कोमरेड (उस देश में उन दिनों "मिस्टर" की जगह "कोमरेड" संबोधन किया जाता था ) जैकसन का वास्तविक नाम था "जयकिशन", जिसका अंग्रेजीकरण होकर "जैकसन" बन गया था !

मेरा कोऑर्डनेटर "इअन" मुझे कोठी के हॉल में ले आया ! आगे बढ़ कर कोठी के मालिक श्री जैक्सन और नगर के मेयर ने मेरा स्वागत किया तथा अन्य अतिथिगण से मिलाया ! कोठी की अनूठी सजावट देख कर मैं आश्चर्य चकित था ! हॉल का प्रत्येक पर्दा , प्रत्येक सोफा और चेअर तथा टेबल कवर सफेद रंग का था ! मेजों पर सफेद गुल्दस्तों में सफेद रंग के ही फूल लगे थे !

साथ के छोटे लाउंज में बैठी थीं घर की स्त्रियां तथा कुछ अन्य प्रतिष्ठित भारतीयों की फेमिलीज ! श्री जेक्सन उनसे मिलाने के लिए मुझे भीतर ले गए ! घुसते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी मंदिर में आ गया ! वहाँ उस कमरे में मंदिरों के समान धूप - अगरबत्ती तथा देशी घी के दीपक की सुगंधि फैली थी ! एक अनोखा ही माहौल था उस कमरे का ! कमरे के कोने में छोटी सी मेज़ पर एक बडे से फ्रेम में किसी देवता का चित्र पूरी श्रद्धा के साथ सजा कर रखा था ! सफेद फूलों की एक बड़ी सी माला उस चित्र पर पड़ी थी और चित्र की ओर मुंह कर के सफेद कपड़ों में लिपटी शायद कोई महिला बैठीं थीं जिसके कारण मैं देख न सका कि वह चित्र किस देवता का है !

===========
शेष अगले अंकों में
निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
======================

शनिवार, 27 अगस्त 2011

२७ अगस्त - एक महत्वपूर्ण तारीख

"मुकेशजी" और उनका नकलची "मैं"
=====================
"२७ अगस्त -"
======
आज की तारीख़ , हमारे लिए वर्ष १९७६ से ही अति महत्वपूर्ण रही है ! लेकिन "आज" २०११ की यह तारीख तो महत्ता - महानता की सभी सीमाएं लांघ कर उस ऊंचायी को छू रही है जो १९४७ की १५ अगस्त के पूर्व कभी उलंघित नहीं हुई थी !

समझ गए होंगे आप ! पिछले १४ अगस्त से आज तक अस्वस्थता के कारण क्रियाहीन बना मैं ,यहाँ USA में ,अपने पलंग पर पड़ा पड़ा , टेलीविजन पर , दिल्ली के रामलीला मैदान से अन्ना के पक्षधरों तथा निकट ही सत्ता के गलियारों से "मनीषी" महापुरुषों की कटु एवं मधुर वार्ता का रसास्वादन कर रहा था ! रोगियों के मुंह का स्वाद वैसे ही बिगडा होता है , मेरा क्या हांल हुआ होगा आप खूब जानते हैं ! मैं कुछ न कहूँगा !

अन्त्तोगतवा जनता की विजय हुई ! आप सब को बधाई ! पुस्तके लिखी जा सकती हैं इस विषय में ! प्रियजन ! अभी मैं असमर्थ हूँ , अधिक कुछ नहीं कह पाउँगा ! कारण ---

२७ अगस्त ,२०११
==========
आज

यहाँ USA के पूर्वोत्तर के सागर तट पर आज एक भयंकर तूफ़ान (हरीकेन) आया है ! सागर तट का हमारा यह नगर भी आज मध्य रात्रि तक "आयरीन" नाम के इस हरिकेन की चपेट में आने वाला है ! राष्ट्रपति ओबामा अपने "होलीडे" से समय से पूर्व ही लौट आये हैं ! पूरे क्षेत्र में EMERGENCY declare कर दी गयी है ! सागरतट के निकट के सभी नगर खाली करवाए जा रहे हैं ! कल दिन में यदि लिख पाया तो विस्तुत विवरण दूँगा ! आज यह प्रसंग यहीं समाप्त करता हूँ !

२७ अगस्त १९७६
==========
मैं उन दिनॉ, "गयाना" के नगर "New Amsterdam" में अपने प्रोजेक्ट साइट का निरीक्षण करने गया हुआ था ! भक्ति संगीत में मेरी रूचि देख कर नगर के भारतीय मूल के मेयर तथा वहाँ के प्रतिष्ठित व्यापारियों ने अगले दिन ,मेरे लिए एक संगीतमय स्वागत समारोह आयोजित किया था ! --------

शेष अगले अंक में
===========
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
======================

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"


अगस्त के प्रथम सप्ताह से ही अस्वस्थता के कारण मेरे ब्लॉग -लेखन की गति धीमी हो गयी! पिछले डेढ़ वर्षों में अनवरत संदेश भेज कर अनायास ही मैं इतना मूक हो गया !प्रभु की कृपा और प्रियजनों की शुभकामनाओं तथा दवा और दुआ से शारीरिक कमजोरी के रहते हुए भी मेरा ब्लॉग लिखने का प्रयास जारी रहा ! मैंने कृष्ण जन्माष्टमी की रात राम परिवार में अपने प्रियजनों की फरमाईश पर स्काइप वीडियो क्रोंफ्रेंसिंग करते समय भाव विभोर हो मीरा का यह पद गाया था -


करुना सुनो श्याम मेरी
मैं तो होय रही चेरी तेरी
करुना सुनो श्याम मेरी

दरसन कारन भयी बावरी ,बिरह व्यथा तन घेरी
तेरे कारन जोगन हूँगी , दूंगी नगर बिच फेरी
कुञ्ज बन हेरी हेरी
करुना सुनो श्याम मेरी
करुना सुनो श्याम मेरी , मैं तो होय रही चेरी तेरी !!

जब मीरा को गिरिधर मिलिया , दुःख मेटन सुख भेरी
रोम रोम साका भई उर में , मिट गयी फेरा फेरी
रही चरनन तर चेरी
करुना सुनो श्याम मेरी
करुना सुनो श्याम मेरी , मैं तो होय रही चेरी तेरी !!

================

विश्व भर में फैले अपने राम परिवार के प्रिय स्वजनों को मीरा का उपरोक्त पद सुना कर मैंने अपने "श्याम" की कृपा दृष्टि पा ली !उन्होंने मेरी करुण पुकार सुन ली,और मुझे इतना सशक्त कर दिया कि मैं आज फिर ब्लॉग लिखने बैठ गया !
अब, पेश्तर इसके कि शरीर पुनः शिथिल पड़ जाये और मैं कुछ लिख न पाऊँ चलिए मैं सबसे पहले बहुत दिनों से अधूरी पड़ी अपनी और मुकेशजी की अंतिम मुलाकात की कहानी पूरी कर लूं ! आपको एक गुप्त भेद बताऊँ :मुकेश जी की कथा आगे बढ़ाने में मेरी अस्वस्थता के अतिरिक्त , जो विशेष व्यवधान था वह था , मेरा स्वयम का संकोच , मेरा अपना चिंतन , तथा श्री श्री माँ आनंदमयी से आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त अहंकार शून्य रहने की प्रेरणा !
हाँ तो में बतला रहा था कि उस दिन लाउंज के कोने में बड़े सोफे पर बड़े प्रेम से मेरे हाथ पकड़े हुए मुकेश जी ने कहा ," भइया रामायण का वह नया डबल एलपी एल्बम देख कर मैं बहुत निराश हुआ क्योंकि मैं सोचता था कि सेठ जी HMV द्वारा निर्मित मेरे द्वारा गायी हुई "रामायण" के रेकोर्ड भेजेंगे लेकिन उन्होंने भेज दी POLYDOR की कुछ साधारण गायकों द्वारा गायी "रामायण" ! मुझे बुरा तो लगा पर फिर भी मैंने उस एलबम के जेकेट पर बने राम दरबार को अपने माथे से लगाया और नर्स से कह कर उसका प्रथम भाग सुनना शुरू किया ! एक बार शुरू होने के बाद ,फिर इतना आनंद आया कि मैंने उसके चारों भाग सुने !
मुकेशजी ने कहा था " भोला जी , जितने दिन मैं उस हस्पताल में रहा मैं , ८० मिनिट की वह सम्पूर्ण रामायण नित्य प्रति सुनता रहा !उसे सुन कर मुझे जितना आत्मबल मिला ,जितना साहस मिला , "भगवत्भक्ति" की जितनी बड़ी खेप मुझे एकबारगी मिली , उसको बयान नहीं कर सकता ! मुकेशजी ने उसके बाद जिन शब्दों में उसके गायक पंकज उधास , अनुराग कुमार और गायिका मधु चन्द्र ,सीता शर्मा आदि (जो तब नवोदित कलाकार थे और आज प्रसिद्धि के शिखर छू चुके हैं) , द्वारा गाये रामायण की तारीफ़ की, उससे उनके हृदय की विशालता तथा प्रभु के प्रति उनकी अटूट आस्था का पता मुझे चला !




प्रियजनों , "श्री राम गीत गुंजन" की प्रशंसा में जो अन्तिम वाक्य मुकेश जी ने कहा उसे सुन कर मैं स्तब्ध रह गया ! उन्होंने कहा " सच पूछिए तो उस बड़े हार्ट अटेक के बाद मैं अपनी जीवन रक्षा का सम्पूर्ण श्रेय श्री राम गीत गुंजन को देता हूँ !"
पूरा श्रेय "श्री राम गीत गुंजन " को दे कर उन्होंने संगीत -कला के आध्यात्मिक प्रभाव की अनुभूति को व्यक्त किया !यह उनका बड़प्पन था !
मुकेशजी ने बहुत बड़ी बात कह दी थी ! मैंने उनसे कहा " दादा ! हम सब के सब ही एमेच्योर कलाकार हैं , स्वान्तः सुखाय रामायण गाते हैं ! आपकी रामायण से प्रेरणा लेकर ही हमने यह रेकोर्ड बनवाया था !


मुकेशजी ने कहा : "भोलाजी ! आप लोगों ने जिस भक्ति भावना से अपनी रामायण गायी है ,उतनी गहन श्रद्धा की भावना किसी और रामायण के रेकोर्ड में सुनने में नहीं आती , सच पूछिए तो मेरी रामायण में भी नहीं ,क्योंकि हमारे साथ गाने वाले सभी गायक गायिकाओं ने अर्थ लाभ के उद्देश्य से वह रामायण गायी है , जब आप सब ने केवल राम -भक्ति से प्रेरित हो कर निःस्वार्थ भाव से अपनी रामायण गाई है !" मुकेश जी के मुख से अपनी कृति "राम गीत गुंजन " की इतनी प्रशंसा सुन कर मैं निरुत्तर रह गया था !

उपरोक्त कथा १९७५ की है ! मुकेश जी के साथ इस मिलन के बाद फिर मेरा और उनका मिलन नहीं हुआ ! कुछ दिनों बाद मैं सपरिवार भारत छोड़ कर कंसल्टेंसी के एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में साउथ अमेरिका के देश गयाना पहुँच गया और १९७८ तक वहीं रहा !

इस बीच १९७६ के अगस्त के अंत में मुकेशजी, लताजी तथा अन्य बोलीवुड के कलाकारों के साथ ,एक कंसर्ट में भाग लेने के लिये USA के मिशीगन में आये ---




अभी बहुत कुछ बताना शेष है ! थोड़ी प्रतीक्षा और कर लीजिए !

=======================.
निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
=======================

सोमवार, 22 अगस्त 2011

जय गिरधर गोपाल की


हाथी घोडा पालकी जय कन्हैया लाल की
जय गिरधर गोपाल की
============

१९७५ से १९७८ तक मैं अपने परिवार के साथ ,साउथ अमेरिका के एक छोटे से देश (ब्रिटिश) गयाना की राजधानी जोर्ज टाउन में रहा ! उस पूरे देश की आबादी भारत के एक बड़े शहर की आबादी से भी कम थी ! देश की ५५ प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की थी ! भारतीय संस्कृति के प्रति वहाँ के निवासियों के हृदय में अपार श्रद्धा थी ! वहाँ उतनी ही हर्षोल्लास से शिवरात्रि दशहरा, दिवाली,होली,ईद, बकरीद मनाई जाती थी जितनी जोशोखरोश से कानपूर, लखनऊ और दिल्ली के शिवालयों और ईदगाहों में ! यहाँ के निवासियों की रहनी में जो एक चीज़ मुझे बहुत ही पसंद आई ,वह थी, वहाँ की विभिन्न जातियों और विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच की अटूट एकता और उनका अद्भुत भाई चारा !

इन सभी गायनीज़ के पूर्वज भारतीय थे ,जिन्हें अँगरेज़ ,पानी के जहाजों पर बैठा कर वहाँ उनके फार्मों में काम करने के लिए ले आये थे ! वे सब जहाजी कहे जाते थे ! भारत में वे किस शहर के थे , उनका धर्म उनकी जाति क्या थी , अब आज उनके वंशज नहीं जानते हैं ! उन्होंने तो अपने बचपन से अपने ही घर परिवार में किसी सदस्य को मंदिर जाते देखा है , किसी को चर्च तो किसी को नमाज़ अदा करते देखा !

गयाना के किसी आम घर के आंगन के एक छोर पर आप देखेंगे दादी की तुलसी का बिरवा उनका शिवाला और उसके सन्मुख ही दूसरी ओर साफ़ सुथरी जमीन पर बड़े करीने से फैली खानदान की बड़ी बहूबेगम के नमाज़ पढ़ने की इरानी कालींन ! कभी कोई झगड़ा नहीं कोई शोरो गुल नहीं ! किसी पर कोई पाबंदी नहीं, कोई जोर जबरदस्ती नहीं ! जिसको जो भाये जिस पर जिसकी आस्था जम जाए ;वही उसका धर्म- कर्म बन जाता !

घर के कामकाज में कृष्णा जी की मददगार गाय्नीज़ स्त्री का नाम था राधिका था जिसे होटल पेगासुस के शेफ सलीम ने कृष्णा जी से मिलाया था ! सलीम उसे दीदी मानता था ! राधिका ने ही हमे उस देश के निवासियों की इस विशेष संस्कृति से अवगत कराया था !

गयाना की हिंदू महिलाएं हर रविवार को मंदिर जाकर , पाश्चात्य वेश भूषा में भी अपना सर एक दुपट्टे से (ओढनी )से ढकतीं थीं ! सभी स्त्री पुरुष अपने सामने रामायण का पृष्ठ खोल कर रख लेते थे और बड़े भाव से दोहे चौपाइयां गाते थे ! हिन्दी पढ़ना तो ये लोग जानते न थे इसलिए चाहे पृष्ठ कोई भी खुला हो वे गाते वही पद थे जो उन्होंने अपने पूर्वजों से सुन कर याद कर रखा था ! उनकी मुंदी हुई आँखें ,भाव भरी मुद्रा और गवंयी गाँव की चौपाली शैली में रामायण पाठ हमे आज भी उनकी सहजता तथा उनकी एकनिष्ठ निष्काम भक्ति की याद दिलाता है और मन को छू जाता है!

अतीत के पन्नों में अंकित उपरोक्त स्मृति ने आज कृष्ण-जन्म पर मीरा का एक भजन याद दिला दिया , जिसे हमारी गाय्नीज़ बेटियों ने लगभग ३५ वर्ष पूर्व मुझसे सीख कर गाया था !बड़ा घिसा पिटा रेकोर्ड है पर "उन्होंने" सुनाने की प्रेरणा दी है , तो सुनाउंगा अवश्य ! इस भजन को सूर और तुलसी के अन्य भजनों के साथ मैंने एक गाय्नीज़ नव युवक श्याम तथा होटल के शेफ सलीम की बेटी और अपनी डोमेस्टिक हेल्प राधिका की भांजी तथा इंडियन कल्चरल सेंटर की श्रीमती गौरी गुहा तथा गयाना की एक अच्छी क्रिश्चियन गायिका कुमारी सिल्विया से गवा कर गयाना के पहले हिन्दी लॉन्ग पलेंइंग रेकोर्ड का एल्बम बनवाया - "भजन माला "!
============================
चलिए भजन सुन लीजिए
थोडा लाउड बजाकर आस पास वालों को भी मीरा की भावनाओं से अवगत कराइये ,
कौन सी भावना ?
कुछ न बन सके तो केवल मन ही मन प्रभु का नाम सिमरन कर के अपने भाग्य जगालो !
=================

बसुदेव सुतं देवं , कंस चाडूर मर्दनं
देवकी परमानन्दम कृष्णं वन्दे जगत्गुरूम
===========

कोई कछु कहे मन लागा ,कोई कछु कहे मन लागा
कोई कछु कहे मन लागा
ऎसी प्रीति करी मनमोहन ज्यों सोने में सुहागा
जनम जनम का सोया मनुआ हरी नाम सुन जागा
कोई कछु कहे मन लागा


कोई कछू कहे मन लागा
मात पिता सूत कुटुम कबीला टूट गया जैसे धागा
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर भाग हमारा जागा
कोई कछु कहे मन लागा
"मीरा"
====
निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
=====================

शनिवार, 20 अगस्त 2011

कृष्णं वंदे जगद्गुरुम

प्रियजनों
श्री कृष्ण जन्म की हार्दिक बधाई
आइये पहले हम सब मिल कर बधाई गावें
==================
बधैया बाजे आंगने में
जसुदानंदन कृष्ण कन्हैया , झूलें कंचन पालने में
बधैया बाजे आंगने में
नन्द लुटावें हीरे मोती , लूट मची घर आंगने में
न्योछावर श्री कृष्ण लला की, नहि कोऊ लाजे मांगने में
बधैया बाजे आंगने में
ठुमुक ठुमुक गोपी जन नाचें ,नूपुर बाँधे पायने में
चन्द्रमुखी मृगनयनी बिरज की तोडत ताने रागने में
बधैया बाजे आंगने में

कृष्ण जनम को कौतिक देखत ,बीती रजनी जागने में
बधैया बाजे आंगने में
जसुदानंदन कृष्ण कन्हैया , झूलें कंचन पालने में,
बधैया बाजे आंगने में

(अवध की पारंपरिक राम जनम की बधाई पर आधारित ,"भोला" की रचना)
===========================================
एक सूचना : अपने इनडो गाय्नीज़ सहयोगियों के साथ लगभग ३५ वर्ष पूर्व गाई कृष्ण प्रेम से ओत प्रोत मीरा की एक रचना कल सुनाउंगा ! उसके बाद श्री राम आज्ञा से मुकेश जी के अपने सस्मरण प्रेषित करूँगा !
निवेदक : वी . एन. श्रीवास्तव "भोला"
====================

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

मुकेश जी और उनका नकलची मैं - # ४ १ ७

मुकेश जी के साथ अपनी अंतिम मुलाकात की कथा सुना रहा था कि अकस्मात ही
,
लग गयी मुंह पर हमारे मौत सी मुहरे खमोशी
किसी से कुछ कह न पाया कोशिशें पुरजोर की

दस दिन पहले मैंने अपना अंतिम सन्देश इस तुकबंदी से बंद किया था

कल तक रहा तो फिर यही इक बात कहूँगा
जब तक रहूंगा दास्ताँ कहता हि रहूँगा "

इसके बाद १०-१२ दिन से एक अक्षर भी नहीं लिख पाया हूँ ! आपको याद होगा ,जब से मैंने लिखना शरू किया है तब से अभी तक मैंने अपने संदेशों में कभी एक दो दिन से अधिक का अंतराल आने ही नहीं दिया !मैंने अपने आप को २४ x ७ संदेशों के गठन में ही व्यस्त रखा ! बेचैन हो जाता था जिस दिन मैं समय से अपना सन्देश प्रेषित नहीं कर पाता था ! पर इस बार तो गजब ही हो गया ! पूरे दस दिवसों की छुट्टी मार ली और अभी भी यह नहीं कह सकता कि ये लेख भी कब तक प्रेषित कर पाऊंगा ? हाँ, आज थोड़ा सम्हला तो सोचा कि पेश्तर इसके कि कोई और प्रसंग छिड जाए मैं जल्दी जल्दी मुकेश जी के साथ अपनी अंतिम मुलाकात की कथा पूरी कर दूं !

मुकेश जी से उनके रामायण गायन की चर्चा करने के बाद मैंने उनसे धीरे से पूछा ,"दादा , आप इतने व्यस्त रहते हैं , आपको तो शायद ही कभी दूसरों की गाई चीजें सुनने का मौका मिलता होगा ?" छोटा सा जवाब दिया उन्होंने " सो तो है ! किसी खास गाने के सम्बन्ध में पूछ रहे हो क्या ?

मैंने बड़े संकोच से उनसे सवाल किया था," दादा क्या आपने कभी पोलिडॉर की डबल एल पी वाली रामायण - " श्री राम गीत गुंजन " सुनी है ? ! वह कुछ सोच में पड गए ! मैंने फिर कहा " वह वाली , जिसके जेकेट पर श्रीराम ,लक्ष्मण और जानकी के साथ साथ हनुमान जी का चित्र बना है !"

तभी शायद उनको कुछ याद आया और मेरा हाथ मजबूती से पकड़ कर वह मुझे लाउंज के कोने में पड़े एक बड़े सोफे तक ले आये और बड़े प्यार से मुझे अपनी बगल में बैठा कर बोले " हाँ , भैया जब मुझे पिछली बार हार्ट अटैक हुआ था तब मैं कोलकत्ता में था !कुछ स्वस्थ होने पर आई .सी .यू.से निकल कर जब निजी कमरे में ;डॉक्टर्स की हिदायतों के अनुरूप विश्राम ले रहा था,एकांत में , मुझे रामायण सुनने की इच्छा हुई ! अभी अभी हार्ट अटेक से उबरा था ! भाई आप तो समझ ही रहे होंगे?" ,

प्रियजन मैं तब नहीं समझ सका था लेकिन आज स्वयम दो हार्ट एटेक्स झेलने के बाद साफ साफ समझ पा रहा हूँ !

मुकेश जी ने आगे कहा - " वहाँ कलकत्ते के हॉस्पिटल में जो भी मुझे देखने आया सबने यही कहा आपके रामायण गायन से रीझ कर भगवान राम ने ही आपकी जीवन रक्षा की है ! मैं जानता हूँ यह ध्रुव सत्य है ! केवल मेरी क्यूँ समस्त मानवता की रक्षा एक 'वह' ही कर रहे हैं"! इतना कहते कहते प्रेम भक्ति की भावनाओं से उनका कंठ अवरुद्ध हो गया ,उनकी आँखे भर आईं ! मैं भी कुछ वैसी ही स्थिति में आगया ! और हमे वह परम पुरातन भजन जों हम बहुत बचपन में स्कूलो की प्रार्थना में गाते थे याद आ गया जिसे मुकेश दादा ने आधुनिक काल में रेकोर्डों में गाकर पुनः जीवंत कर दिया

पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुम्ही एक नाथ ह्मारे हो
जिनके कछु और आधार नहीं तिनके तुमही रखवारे हो !!

मुझसे बात करते समय उनके चहरे पर जो प्रेम और भक्ति के भाव उभरे थे ;उसके ख़याल से ,इस समय भी मेरा दिल भर आया है !ऐसा लगता है बहक रहा हूँ ;पर आज न छोडूंगा ! उनके साथ ही हूँ !

कुछ रुक कर , मुकेशजी बोले कि " भाई जब भी "उनका" ख़याल आता है तब वह कोई ना कोई मददगार भेज ही देते हैं ! उसी दिन कोलकता के मेरे होस्ट जब मुझसे मिलने आये ,मैंने उनसे अपनी हार्दिक इच्छा जाहिर कर दी ! आगले दिन बहुत सबेरे उनका सेक्रेटरी H M V के पोर्टेबल रिकोर्ड प्लेयर के साथ पोलीडोर का यही "राम गीत गुंजन" वाला एल्बम वहाँ पहुंचा गया ! फिर क्या था तन्हायी में मैंने उसे बार बार सुना ! ताप से संतप्त मेरे आकुल -व्याकुल मन को बहुत शान्ति मिली !

========================================
दो दिनों में इतना ही लिख पाया !
आज यहीं समापन करता हूँ और कल का 'नो वादा' प्लीज़ ! कारण न पूछिए !
आपकी अनमोल दुआओं प्रेरणाओं के लिए दिली शुक्रिया
=====================================
आप सबके सदा से अपने और आगे सदा सदा भी -- अपने ही
भोला कृष्णा
========

रविवार, 7 अगस्त 2011

"मुकेश जी" और उनका नकलची "मैं" # ४ १ ६


मुकेश जी और मैं
गतांक से आगे
=========

यह दोस्ती कायम रहे अब जनम जनम तक
आवाज़ ये मिलजुल के लगाते चले चलो
(यह कीर्तन मंदिर में सुनाते चले चलो)
"भोला"
++++
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो
"मुकेश जी का एक गीत"
++++++++++++

प्रियजन आप ही क्यों सारा जमाना जानता है कि मैं मुकेश जी का कितना जबर्दस्त फैन हूँ ! बचपन से लेकर आज बुढ़ापे के इन दिनों तक ,उनकी नकल कर के, उनकी चीजें गा गा कर, मैं,औरों से अधिक ,कभी कभी ,अपना ही , अकारण उदास हुआ जी बहला लेता हूँ ! कैसे बताऊँ ,कितना सोज़ ,कितना सुकून , कितनी तसल्ली मिलती है, अब भी इस बूढ़े ,थके हारे दिल को मुकेशजी के उन नगमों को गुनगुना कर !

आज से ६०-७० वर्ष पहले - १९४७-५० की मधुर स्मृतियाँ, बरबस ही उभर रहीं हैं, मस्तिष्क पटल पर ! विद्यार्थी जीवन की कथायें ! सोंचिये , कल्पना करिये , आपका यह भोला मित्र , स्वयम १८ वर्ष का ,अपने ही एज ग्रुप के , अपने ही जैसे सुसंस्कृत परिवारों के , अच्छे अच्छे बच्चों के सामने मुकेश जी के , कभी दर्द और कभी ओज भरे नगमे गा रहा है !

मझे अच्छी तरह याद है मेरे सामने दरी पर ,सिर झुकाए बैठीं, देश विदेश से विद्याध्यन हेतु ,काशी पधारी ,भारतीय मूल की बालिकाओं की और उनके पीछे विभिन्न छात्रावासों से आये मद्रासी, पंजाबी, गुजराती ,बंगाली तथा उत्तर भारत के सभी प्रदेशों के बालकों के चेहरे और उनका, मेरे हर गाने के बाद ज़ोरदार ताली बजाकर मुझे एक के बाद एक मुकेशजी के गीत गाते रहने का प्रोत्साहन !

सबसे पहिले "दिल जलता है तो जलने दे" गाकर, उनके बिछड़े हुए साथियों की याद दिला कर मैंने सभी श्रोताओं की आँखों में आंसू ला दिया था ! सामने वाली बालिकाओं की डबडबाई आँखें देख कर मेरी आँखें भी नम हो गयीं थीं ! यदि रक्षाबन्धन के कारण उन्हें अपने भाइयों की याद आ रही थी तो मुझे भी अपनी छोटी बहन मधु की ! कार्यक्रम के संचालक "रंगा" की फरमाईश पर महफिल का माहौल तब्दील करने के लिए फिर मैंने मुकेश जी का एक दूसरा गाना गाया - ओज भरा -

मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
इंसानियत तो प्यार ओ मोहब्बत का नाम है
मोहब्बत का नाम है
इंसानियत की शान बढ़ाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
आज़ाद जिंदगी है तो बर्बाद क्यूँ रहे ?
बर्बाद क्यूँ रहे ?
बर्बादियों से दिल को बचाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो


दो दिन की जिंदगी में कोई क्यूँ उठाये गम ?
कोई क्यूँ उठाये गम ?
नगमे खुशी के सब को सुनाते चले चलो
बिछड़े हुए दिलों को मिलाते चले चलो
मंजिल की धुन में झूमते गाते चले चलो
+++++++++++++++++++++

माफ करना मित्रों , ५०-६० साल बाद ये गाना गाने बैठा हूँ ऐसे में जरूर कुछ भूला भी हूँ और कुछ अंतरे भी ऊपर नीचे हुए होंगे ! लेकिन खुशी इस बात की है कि ,मैं गा पाया और मेरी सहयोगिनी ( भाई वकील वाली वकीलनी नहीं समझना उन्हें - क्योंकि मैं योगी कहलाने के कतई योग्य नहीं) मेरी वेटरन बीवी के कापते हाथों से फ्लिप का नन्हा केमरा छूटा नहीं !

आपसे , एक और गुनाह की मुआफ़ी मांगनी है ! मुकेशजी से अपनी उस दिन की बातचीत का ब्योरा मैं पूरा नहीं कर पा रहा हूँ ! बुढ़ापे से दबी ,मेरी हल्की आवाज़ को सुन पाने वाले मेरे कुछ अतिशय प्रिय , स्नेही पाठकगण मुझे विश्राम कर के धीरे धीरे लिखने की सलाह देते हैं और कुछ वैसे ही आदेश धर्मपत्नी जी तथा उनके (यूं तो मेरे भी) प्यारे प्यारे बच्चे यदा कदा पारित करते रहते हैं ! कैसे उनका स्नेहिल आदेश अनसुना कर दूँ ? पर फिर सोचता हूँ समय थोडा है और कहानी लम्बी ! देखते देखते पन्द्रह महीनों में ४०० से अधिक पृष्ठ लिख गया हूँ लेकिन लगता ऐसा है जैसे अभी कहानी शुरू ही नहीं हुई !

पुराना लेप टॉप शरारत करता था ! पूरे पूरे पृष्ठ अन्तर्ध्यान हो जाते थे ! पिछडी हुई कहानी की रफ्तार बढ़ाने के लिए, मेरे इस जन्म दिवस पर बच्चों ने मुझे एक नया लेप टॉप गिफ्ट किया ! लेकिन ये भी तो सच है न कि जब सवार मेरे जैसा बूढा हो तो अरबी घोड़ा भी क्या कर सकता है ? अन्ततोगत्वा लगता है मुझे हार माननी ही है !
=======================
कल तक रहा तो फिर यही इक बात कहूँगा
जब तक बनेगा दास्ताँ कहता हि रहूंगा
=====
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सह्योग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
========================

शनिवार, 6 अगस्त 2011

"मुकेशजी" और उनका नकलची "मैं"- # ४ १ ५


तू पर्दानशीं का आशिक है यूं नामे वफा बरबाद न कर
दिल जलता है तो जलने दे आंसू न् बहा फरियाद न् कर
===========================
गतांक से आगे

कौन है वह पर्दानशीं ?

आज 'शीला'(जी) और 'मुन्नी' की बेपर्दगी ने सारे जहान को इतना मदहोश कर दिया है ,सब को ऐसा उलझा रक्खा है कि जमाने को मजबूरन ,सुबह से शाम तक हर तरफ चाहे रेडियो हो, टी वी हो या सिनेमा थिएटर हों या सड़क के किनारे वाली ऊंची ऊंची लम्बी चौडी होर्डिंगे, सर्वत्र एकमात्र शीला (जी ) तथा उनके टक्कर में डटी मुन्नी जी की सर्वव्यापकता का आभास होता रहता है ! चाह कर भी हम उनकी अनदेखी नहीं कर सकते !

ऐसे में मुझे मेरी धर्मपत्नी कृष्णा जी के स्वर्गवासी नानाजी ,अपने जमाने के नामीगिरामी शायर - जनाब मुंशी हुबलाल साहेब "राद" भिन्डवी (ग्वालियर) के कुछेक अशार कल से ही याद आ रहे है ! उनमे से दो मैं अपने पिछले संदेश में लिख चुका हूँ ,दोनों हीं "पर्दे" पर रोशनी डाल रहे हैं , उनका पहला शेर पढ़ कर ऐसा लगा कि अगर दुनिया में पर्दा न होता ( बस शीला और मुन्नी जैसी बेपर्दगी पसरी होती),तो इंसान् में दीद की ख्वाहिश ही नहीं पनपती ! (भक्तों को जैसी उत्सुक्ता ,वृन्दाबन में पर्दे के पीछे छुपे बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए होती है ,उतनी खुले आम दर्शन देने वाले देवताओं के मंदिरों में नहीं होती )! नाना जी ने फरमाया था :

परदे ने तेरे दीद का ख्वाहाँ बना दिया
जलवे ने चश्मे शौक को हैरा बना दिया

दर्शनोपरांत तो भक्त इतना आनंदित हो जाता है कि वह बेसुध होकर केवल "उसका" नाम ही सिमरता रहता है जिसके दिव्य स्वरूप का दर्शन उसे हुआ है ! नाना जी ने कहा था :

सबको मैं भूल गया तुझ से मोहब्बत करके
एक तू और तेरा नाम मुझे याद रहा
"राद"
===================

आप कहेंगे कि मैं आपको अपनी इधर उधर की बातों में लगा कर मुकेश जी की कथा से दूर रख रहा हूँ ! भाई क्यूँ करूँगा मैं वैसा कुछ ? मैंने कितनी बार कहा है ,"मैं नहीं लिखता , कोई और लिखवाता है "! मेंरी बात मानिये , मैं पराधीन हूँ !

चलिए हिम्मत करके मुकेश जी और अपनी इस दूसरी मुलाकात की विस्तृत कथा सुनाने का प्रयास एक बार फिर करता हूँ :

वाशरूम से निकलते ही मुकेश जी की नजर ,जान बूझ कर उनके सामने आ खड़े हुए , मुझ "भोला" पर पडी , माहौल बिलकुल वैसा ही बना जैसा किसी शायर ने बयान किया है :

फिर वही दनिस्दा ठोकर खाइए
फिर मेरी आगोश में गिर जाइये
यूं न् रह रह कर हमे तरसाइये

अचानक मुझको सामने देखकर उनकी निगाहों में आया भाव - "आपको कहीं देखा है ",मुझे साफ़ साफ़ समझ में आगया ! मैंने ,देर तक उन्हें अँधेरे में रखना मुनासिब न् समझा ! साल भर पहिले "स्वजन" के वार्षिकोत्सव ( जब हमारा और उनका वह चित्र खिचा था ) का हवाला देकर तथा फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और फिल्म डिविजन् के चीफ प्रोड्यूसर ,अपने छोटे बहनोई श्री विजय बी. चंद्र साहेब की याद दिलाकर मैंने उन्हें मजबूर कर लिया कि वह मुझसे कहें " हाँ कैसे भूलूँगा आप को , बिलकुल याद है मुझे आप सबकी ! आपकी छोटी बहन, मधू जी के साथ तो मैंने कुछ अरसे पहले एक डुएट भी गाया है "!

उन दिनो H M V कम्पनी मुकेश जी से गवा कर सम्पूर्ण "राम चरित मानस" का एक L.P. Records का सेट बनवा रही थी और मुकेश जी बड़े भाव चाव से उसमे के दोहे और चौपाइया गा रहे थे !लगभग पूरा सेट तैयार भी हो चुका था और मार्केट में उसकी बडी डिमांड थी !
थोड़ी देर खड़े खड़े ही मुकेश जी से उनके समायण गायन की चर्चा करने के बाद मैंने उनसे धीरे से पूछा ,"दादा , आप इतने बिजी हैं , आपको शायद ही कभी दूसरों की गाई चीजें सुनने का मौका मिलता होगा ?"! छोटा सा जवाब दिया उन्होंने " तुम्हारा कहना आम तौर पर तो ठीक ही है ,लेकिन कभी कभी दूसरों के गाने मजबूरन सुनने पड़ते हैं ! भइया किसी खास गाने के लिए पूछ रहे हो क्या ?


मैंने अति संकोच से उनसे सवाल किया " दादा क्या आपने कभी पोलिडॉर की डबल एल पी वाली रामायण - " श्री राम गीत गुंजन " सुनी है ? ! वह कुछ सोच में पड गए ! मैंने फिर कहा " वो वाली , जिसके जेकेट पर श्रीराम ,लक्ष्मण और जानकी के साथ साथ हनुमान जी का चित्र बना है ! " वह फिर थोड़ी देर को कुछ न् बोले लेकिन कुछ पल बाद ,मेंरा हाथ पकड़ कर सुनसान लाउंज के कोने में एक सोफे पर जा कर बैठ गए और बड़े प्यार से मुझे अपनी बगल में बैठा कर बोले " भैया,याद आगया ,ज़रा साँस ले लूँ फिर सुनाऊंगा "



ऊपर उस एल्बम का जेकेट है जिसका ज़िक्र मैंने मुकेश जी से किया था !
मैं भी अब थोडी सांस ले लूँ , इजाजत है न् ?
========
क्रमशः
====
निवेदक : व्ही . एन् . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
=======================

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

"मुकेश जी" और उनका नकलची "मैं"- # ४१४

गतांक से आगे

तू पर्दानशी का आशिक है यूं नामे वफा बर्बाद न कर

ये पर्दानशीं है कौन ?

आज ,शीला और मुन्नी के जमाने में वो झीना पर्दा , वो हलकी गुलाबी चिलमन , जो हमारे दिनों में हमारे और "उनके"दरमियाँ होती थी ,न जाने कहाँ गुम हो गयी है ! मेरे हमउम्र , ८० -९० वर्ष वाले जवानों को याद होगा कि उन दिनों हम कितनी बेताबी से उस बसंती बयार का इंतज़ार करते थे कि काश वह फकत एक बार ही आकर उस चिलमन को ,पल दो पल को ही सही ,थोड़ा, बस थोडा सा सरका भर दे ! हमारा गुज़ारा तो "उनकी" एक हल्की सी झलक से ही हो जाता , हमारी तसल्ली के लिए उतना ही काफी होता ! लेकिन हमे तो उन दिनों वह भी मयस्सर नहीं था !

कुछ अरसे बाद गुरुजन से जाना कि सच्चे आशिकों को परदे से परहेज़ नहीं करना चाहिए ! प्रेमियों के बीच पर्दे का लम्बे अरसे तक तना रहना उनके इश्क को चार चाँद लगा देता है ! प्रेमी से मिलने की तड़प जितनी ज़ोरदार होगी

पर्दे ने तेरे दीद का ख्वाहां बना दिया
जलवे ने चश्मे शौक को हैरा बना दिया

अब उनके इन्तिज़ार में आने लगा मज़ा
ऐ इश्क तूने दरद का दरमा बना दिया

======
पाठकगण ,
मेरी असावधानी से ऊपर का अधूरा सन्देश कल रात आप से आप पोस्ट हो गया !
क्षमा प्रार्थी हूँ ! अज आपकी सेवा में पूरा सन्देश प्रेषित करने का प्रयास करूँगा !
भोला कृष्ण
======

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

"मुकेश जी" और उनका नकलची "मैं"-(भाग-२)-# ४१३

दिलवाली दिल्ली के दिलदार गायक "मुकेश"
(जुलाई २८ के अंक के आगे)

मुकेश जी के विषय में लिखित पिछले सन्देश में छपे १९७२ के चित्र में मैं ४२ वर्ष का हूँ और मुकेशजी हैं ४६ के ! उस दिन बम्बई की चौपाटी वाले सभागृह में मैं मुकेश जी से जीवन में पहली बार मिला था ! उसके बाद भी उनसे मैं केवल दो चार बार ही मिल पाया ! कारण एक तो मुकेश जी कुछ अस्वस्थ हो गए औंर दूसरे मुझे सरकारी काम से अक्सर बम्बई के बाहर टूर पर जाना पड़ा ! उधर जब मुकेश जी थोड़े स्वस्थ हुए उनकी बीमारी के कारण पिछडी हुईं रिकार्डिंग्स होने लगीं और उनके स्थानीय और विदेशी टूर्स भी चालू होगये ! हाँ , इस बीच अचानक मेरी पोस्टिंग भी साउथ अमेरिका के एक विकाशशील देश "गयाना" में हो गई और मझे ३ वर्ष के लिए बोरिया-बिस्तर उठाकर सपरिवार गयाना की राजधानी जोर्जटाउन में डेरा
डालना पड़ा ! मैं गयाना में १९७५ से १९७८ तक रहा !

१९७३ के अंत अथवा १९७४ की शुरूआत में अचानक ही मुकेश जी से मेरी मुलाकात बम्बई के एक प्रसिद्ध बिजिनेस हाउस द्वारा आयोजित पार्टी में हुई ! अपना पिछडापन छुपाने के लिए मैं पार्टीज में ,भोज के पहिले के ड्रिक्स का पूरा सेशन जान बूझ कर एवोइड करता हूँ ! हाँ तो उस पार्टी में भी काफी देर से पहुंचा !

अभी बाहर लाउंज में ही था कि डायनिंग हाल के दरवाजे से बाहर निकलते , मुकेशजी दिखाई दिए ! काफी कमजोर नजर आ रहे थे , इसलिए पहली नजर में मैं उन्हें पहचान ही नही पाया पर जब पहिचान गया फिर क्या बात थी ! इत्तेफाक से ड्रिंक्स एन्जॉय करने वालों से हांल तो खचाखच भरा था , लेकिन लाउंज बिल्कल सुनसान था ! उस समय उसमे केवल हम दो प्राणी थे ! एक मैं और दूसरे मुकेश जी !

उस दिन काफी देर तक उनसे बातें होती रहीं ! सबसे महत्व पूर्ण बात जो मैंने उस दिन जानी वह यह थी कि मुकेश जी का दिल उतना ही सुंदर और विशाल था जितनी उनकी काया तथा उनकी ख्याति थी ! विस्तार से पूरी वार्ता आपको अगले अंक में सुनाउंगा !

अभी अपना पुराना वादा पूरा कर लूँ ! आपको मुकेश जी का सबसे पहिला फिल्मी गाना खुद गा कर सुनादूँ ! ध्यान रखिये गा कि उन्होंने जब वह गाना गाया था वे बाईस के थे और आज जब मैं गा रहा हूँ उनसे चौगुनी उम्र का -अस्सी दो बयासी का हूँ !

तो सुनिए १९४५ की फिल्म "पहली नजर" में गायी मुकेश जी की गजल

दिल जलता है तो जलने दे ,आंसू न बहा फरियाद न कर
तू परदा नशीं का आशिक है , यूँ नामे वफा बर्बाद न कर
दिल जलता है तो जलने दे

मासूम नजर से तीर चला बिस्मिल को बिस्मिल और बना
अब शर्मो हया के पर्दे में , यूं छिप छिप के बेदाद न कर
दिल जलता है तो जलने दे

दिल जलता है तो जलने दे आंसू न बहा फरियाद न कर

हम आस लगाये बैठे हैं तुम वादा कर के भूल गए
या सूरत आके दिखा जावो या कहदो हमको याद न कर
दिल जलता है, दिल जलता है, दिल जलता है
========================
फरियादी : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
मददगार : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
=========================

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

घर घर में "मीरा" (भाग २ ) # ४१२

देश में "मीरा"
विदेश में "मीरा"
==========
मीरा बाई की प्रेमभक्ति में सराबोर तथा आध्यात्मिकता से ओतप्रोत काव्य रचनायें भारत के सुदूरपूर्व के बंगाल प्रान्त से लेकर पश्चिमोतर के फ्रंटियर प्रान्त तक तथा उत्तर में तब के यू पी के ऋषीकेश से लेकर सम्पूर्ण दक्षिण भारत में प्रख्यात संगीतज्ञों- गायक-गायिकाओं द्वारा गायी जाने लगीं !

बाल्यावस्था में मैंने पंडित नारायन राव व्यास जी ,पंडित एन .वी . पटवर्धन जी , पंडित डी. वी.पलुस्कर जी तथा पंडित ओमकार नाथ ठाकुर जी द्वारा गाये अनेक भक्ति रस भरे पद सुने ! उनमे से कुछ अविस्मरणीय पद हमे तो याद है ,आप को भी अवश्य ही याद होंगे जैसे पलुस्कर जी द्वारा स्वरबद्ध "पायो जी मैंने राम रतन धन पायो " तथा "चलो मन गंगा जमुना तीर"! तब से लेकर आज तक कितने ही नामी संगीतकारों ने "पायो जी मैंने राम रतन धन पायो " के लिए नयी धुनें बनाने के प्रयास् किये लेकिन पलुस्कर जी द्वारा गायी धुन से अच्छी कोई दूसरी धुन , मेरे खयाल में ,अभी तक बन नहीं पायी है !

सबसे पहिले बचपन में मैंने प्रथम बार १९३४-३५ में , ५-६ वर्ष की अवस्था में, सुगम धुनों में स्वरबद्ध, आधुनिक सुनियोजित बाजे गाजे के साथ गाये हुए "मीरा के पद" सुने ! HMV के ग्रामाफोन रिकार्डों पर ये भजन किसी बंगाली भद्र महिला के द्वारा गाये हुए थे ! बडी मधुर भक्ति पूर्ण आवाज़ थी उनकी और उनकी धुनें भी अति कर्ण प्रिय थीं ! उस छोटी उम्र में सुने मीरा के वे शब्द ,तथा उनकी धुनें मेरे जहन में इतनी मजबूती से समा गयीं कि उन्हें मैं आज ७० -८० वर्षों के बाद भी भुला नहीं पाया हूँ ! यूं समझिए कि मीरा की वो रचनायें मुझे वैसे ही याद हो गयीं जैसे उन दिनों ( १९२०-३० ) के दशक में अँग्रेजी की राईम " Twinkle twinkle little star " तथा "Jack and Jill went up the hill " स्कूली बच्चों को रटाईं जातीं थीं ! आम घरों में अक्सर इनका प्रयोग गाँव से पधारे मेहमानों पर इम्प्रेसन जमाने के लिए होता था ! हमारे घर में ,इन राइम्स की जगह, उषा दीदी और मुझसे , मीरा के वे पद सुनवाए जाते थे जिन्हें हम ने उन रेकार्डों से सीखा होता था ! हमारे अच्छे प्रदर्शन पर पूरा परिवार दादी ,माँ बाबूजी , और हम चारों बच्चे एक साथ ही यूसुफ मिया के तांगे पर बैठ कर निशात टाकीज में लगी "गंगावतरण ","सत्य हरिश्चंद्र " ,"गोपाल कृष्ण " ," सावित्री सत्यवान " जैसी फ़िल्में देखने जाते थे ! इस प्रकार भजन गाकर पुरुस्कृत होने की लालच ने हमे अधिकाधिक भजन गाने की प्रेरणा दी और भजनों की हमारी गुरु बन गयीं वह अज्ञात बंगाली भद्र महिला !

तब बहुत छोटा था रिकार्ड पर छपा नाम पढ़ नहीं सकता था अस्तु उन गायिका देवी का नाम नहीं जानता !(हो सकता है वो गायिका- जूथिका राय ही रही हों अथवा उनसे पहले की बंगाल की कोई अन्य महिला गायिका )! उनके वे रिकार्ड सुन सुन कर हमने भजन गाना सीखा ! प्रियजन ! वह देवी ,जिनकी वाणी ने उस छोटी अवस्था में हमे मीरा की संगीतमयी "भक्ति" से परिचित कराया चाहे वह जो भी हों मैं आज नतमस्तक होकर उनका वंदन करता हूँ !

चालीस के दशक में मैंने पहली बार ,भारत की , स्वरसम्राज्ञी,कोकिलकंठी ,संगीत के क्षेत्र में सर्व प्रथम भारतरत्न की उपाधि से विभूषित,प्रख्यात गायिका श्रीमती एम् एस सुब्बालक्ष्मी द्वारा गाये मीरा,के पद सुने ! ये पद उन्होंने संगीत निदेशक दिलीप कुमार राय जी के निदेशन में "मीरा" फिल्म की मीरा का किरदार निभाते हुए गाये थे!शास्ष्त्रीय रागरागिनियों के परिधान में ,भक्ति भाव के आकाश से नील वर्ण ( M S Blue) में रंगे ये भजन इतने आकर्षक थे कि उसकी चमक दमक के आगे अन्य सब धुनें ही फीकी पड गईं ! इन भजनों की धुनें इतनी भावपूर्ण थी कि अहिन्दी भाषी श्रोतागण भी बिना शब्दार्थ जाने उनके भाव समझ जाते थे ! उनका "तुम बिन रह्यो न जाय प्यारे दर्शन दीजो आय " सुन कर तो ऐसा लगता था जैसे मीराबाई स्वयम अपने कृष्ण के वियोग में विलख रहीं हों !
तभी तो त्रिकालज्ञ साध्वी श्री श्री माँ आनंदमयी जब एक बार मद्रास गयीं तब उन्होंने मद्रास के गवर्नर के राज भवन में न ठहर कर , M S S के घर जाने की इच्छा जतायी ! माँ ने साफ साफ कहा कि "मैं मीरा के साथ रुकूंगी"! माँ आनंदमयी की दिव्य दृष्टि ने M S S के स्वरूप में ५ शताब्दी पूर्व की श्री कृष्ण प्रेम दीवानी मीरा के दर्शन किये !
यहाँ U S A के जिस नगर में आजकल हम रह रहे हैं वहाँ एक अति भव्य मारुती मंदिर है ! ऐसा लगता है कि इस मंदिर के "महावीर विक्रम बजरंगी" को संगीत से कुछ विशेष लगाव है शायद तभी इनके स्थानीय कम्प्यूटर इंजिनिअर तथा डाक्टर भक्तों में से अनेक बहुत सुंदर गायक वादक भी हैं ! इन संगीत प्रेमियों ने एक भजन मंडली भी बना ली है ! ये सब मंदिर में ही नियमित रूप से संगीत का अभ्यास करते हैं और यदा कदा भजन गाकर ,अपनी श्रद्धा के सुमन श्री हनुमान जी के श्री चरणों पर अर्पित करते रहते हैं !

पिछले गुरूवार यहाँ के एक प्रमुख हस्पताल में कार्यरत डाक्टर श्रीमती लक्ष्मी रमेश ने मेरे अनुरोध पर मंदिर में रिहर्सल के दौरान मीरा का यह पद सुनाया , आप भी सुने :

बसों मोरे नैनन में नन्द लाला
अधर सुधा रस मुरली राजत उर वैजन्ती माला
बसों मोरे नैनन में नन्द लाला
क्षुद्र घंटिका कटि तट शोभित नूपुर शबद रसाला
बसों मोरे नैनन में नन्द लाला
मीरा प्रभु संतन सुखदाई ,भक्त वत्सल गोपाला
बसों मोरे नैनन में नन्द लाला



चित्र में बांयें से दायें - मैं , मंडली के सदस्य मधू जी ,गायक व हारमोनियम वादक रवि जी ,गायिका डाक्टर लक्ष्मी जी , उनके पति श्री रमेश जी ,श्री नरेश जी तथा तबले पर हमारे पुत्र श्री राघव जी !

इस मंडली के अधिकांश सदस्य मूलत: दक्षिण भारत के हैं ,सभी अहिन्दी भाषी होते हुए यहाँ U S A में तुलसी कृत "राम चरित मानस" का अति सुंदर पाठ करके सब को आनंदित कर रहे हैं ! इनका संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण भी सराहनीय है ! डाक्टर लक्ष्मी के गायन ने हमे श्रीमती M S सुब्बालक्षमी द्वारा गाये मीराबाई के भजनों की याद ताजी कर दी !आभारी हूँ हम चिन्मय मारुती भजन मंडली का; उनके सहयोग के लिए !

====================
निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमाती कृष्णा भोला श्रीवा
एवं
चिन्मय मारुती भजन मंडली
================