मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

साधन -भजन कीर्तन # 2 9 5

हनुमत कृपा - अनुभव साधक साधन साधिये
साधन -भजन कीर्तन ( २ ९ ५ )

आज प्रातः यह सुनिश्चित हो गया कि वह पिछला संदेश जिसने बार बार रंग रूप बदल बदल कर मुझे बहुत सताया था, वह इस योग्य ही नहीं जो आपको भेजा जाये ! और यह निर्णय मेरा नहीं - मेरे प्रेरणा स्रोत, मेरे इष्ट , मेरे मार्ग दर्शक , मेरे ईश्वर का है ! इसलिए इसे "हरि इच्छा" मान कर "उनकी" ही मन्त्रणानुसार मैं अपने नाम-भक्त , "अमृतवाणी" गायक भैया के मित्र की कहानी जहाँ की तहाँ छोड़ रहा हूँ !

भागवत धर्म :

श्रीमदभागवत महापुराण के मर्मज्ञ संत महापुरुषों से जाना कि साधारण अज्ञानी भोले भाले व्यक्ति भी यदि भागवत धर्म का पालन करें तो सुगमता से " ब्रह्म" का साक्षात्कार कर सकते हैं ! महापुरुष कहते हैं कि भागवतधर्म का सहारा लेकर कर्म करने वाले लोगों के मार्ग में विघ्न आते ही नहीं , वह यदि नेत्र बंद करके भी दौड़ लगाये तो कभी गलत राह नहीं पकड़ सकते और गंतव्य तक पहुँच ही जाते हैं ! शर्त यह है कि वह जो कुछ भी करे, जैसे भी करे, वह सब परमपुरुष भगवान के लिए ही करे और उस कर्म का समूचा फल भगवान को ही समर्पित कर दे ! यही सरल से सरल सीधा सा भागवत धर्म है !

ऐसा भक्त किसी अन्य वस्तु व्यक्ति और स्थान विशेष में आसक्ति न रखे और अपने इष्टदेव, गुरुदेव, एवं अन्य दिव्य महापुरुषों के जन्म एवं जीवनवृत्त तथा उनकी लीला कथाओं का श्रवण करे ,एकांत में उनका ही ध्यान और चिन्तन करे, तथा लाज संकोच छोड़ कर उनके ध्यान में मगन हो कर उनके गुणों का गायन करे !

जो व्यक्ति उपरोक्त व्रत -नियम पूर्वक करता है , उसके हृदय में आपसे आप ही अपने प्रियतम प्रभु के नामजप-सिमरन भजन कीर्तन से अनुराग का अंकुर उग आता है! उसका चित्त द्रवित हो जाता है और वह साधारण लोगों की स्थिति से ऊपर उठ कर आम मान्यताओं और धारणाओं से परे हो जाता है ! वह दम्भ से नहीं , बल्कि स्वाभाव से ही मतवाला होकर कभी हंसता है , कभी रोता है और कभी ऊंचे स्वर से अपने इष्ट को पुकारता है ! तो कभी कभी वह प्रियतम प्रभु के गुणों को शब्दों में सजा कर मधुरस्वर में उनका गायन करने लगता है ! और हाँ कभी कभी जब वह अपनी बंद आँखों के सामने अपने प्यारे प्रभु का प्रत्यक्ष दर्शन पाता है , तब तो वह लोक लाज कुल की मर्यादा त्याग कर मस्ती से नाच ही उठता है !

इस स्थिति का आनंद चैतन्यमहाप्रभू , मीराबाई ,नरसीमेहता , तुकाराम, और अनेकों सूफीसंतों, संत तुलसीदास , कबीर, रहीम , गुरु नानकदेव , सूरदास , रैदास, गुरु गोबिंदसिंह आदि तथा आज कल के जमाने के अपने सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी ने ,तथा "इस्कोन" के "हरे राम हरे कृष्ण" के मतवाले संतजनों ने जी भर कर स्वयं लूटा है और खुले हाथ सारे संसार में जन साधारण को लुटाया है !

विश्व के असंख्य सिद्ध संतों के नाम और उनको " भजन भक्ति साधना" द्वारा प्राप्त उपलब्धियां कहां तक बताएं !
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क्रमशः

निवेदक:- वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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