हनुमत कृपा - अनुभव साधक साधन साधिये
साधन- भजन कीर्तन (२ ९ ४ संशोधित)
कल से मेरा २९४ वां संदेश आधा लिखा पड़ा है , इंटरनेट और कम्प्यूटर दोनों असहयोग कर रहे हैं , जब प्रेषित कर ने का प्रयास करता हूं , कुछ ऐसा उलट पुलट हो जाता है क़ि मेरा संदेश मेरी ही समझ में नहीं आता ! इस को प्रभु की इच्छा मान कर उस संदेश को ड्राफ्ट के रूप में ही छोड़ देता हूँ ! जब कभी वो "ऊपर वाले" उचित जानेंगे आदेश देंगे प्रेषित कर दूंगा !
अभी मन में विचार आया क़ि क्यों न आपको एक वह भजन सुनाऊं जिसके विषय में मुझे पूरा विश्वास है क़ि उसकी रचना कतयी मेरे प्रयास से नहीं हुई ! उसकी रचना का शत प्रतिशत श्रेय मैं केवल - केवल अपने "इष्टदेव" को ही दूंगा ! उस भजन का एक एक शब्द "उनसे" प्राप्त प्रेरणा पर आधारित है ! एक आश्चर्य देखिये क़ि इधर मैंने यह संकल्प किया और उधर मेरे इंटरनेट और कम्प्यूटर जी दोनों ही ठिकाने लग गये हैं ! यह प्रमाण है इस सत्य का क़ि "ऊपरवाले वरिष्ठ सम्पादकजी" ने मेरी बात मान ली !
याद नहीं क़ि पिछले किसी संदेश में इसके विषय में कुछ लिखा या नहीं , पर अभी तो इस की भूमिका बता दूं!
२००८ का अंत ,कोमा में , होस्पिटल में पड़ा हुआ था ,एक मध्य रात्रि थोड़ा होश आया ,ऑंखें खोल कर अपने हाथ देखे , हथेली देखी ( और कुछ दिखा ही नहीं सब चादर से ढका था ) , लेकिन रात्रि की नीरवता में मेरे कान में सस्वर इस भजन की एक पंक्ति सुनायी दे रही थी ! कहाँ से आ रही थी वह आवाज़ मुझे नहीं मालूम पर ये शब्द साफ साफ मुझे सुनायी दिए :-
अब एक और राज़ की बात बताऊँ , जिस रात शून्य आकाश से, मेरे कान में अनायास ही उपरोक्त शब्द सुनायी दिए थे, उसके अगले सबेरे ही से मैं धीरे धीरे स्वस्थ होने लगा , मेरा स्थायी वाला ऑक्सीजेन मास्क निकल गया , मैं आय सी यू से बाहर आ गया , मुझे रिहेब वाले डॉक्टर और स्टाफ के सुपुर्द कर दिया गया ! एक पखवारे बाद पूरी तरह स्वस्थ होकर मैं घर पहुच गया !
अब सोचता हूं जब मेरे रोम रोम में बसे श्री राम धनुष बाण लेकर मेरी पल पल रक्षा कर रहे हैं , तब कौन कर सकता है मेरा एक बाल भी बांका ?
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ !
जनकलली,श्री लखन लला अरु महावीर के साथ !!
वन्दन करते राम चरण अति हर्षित मन हनुमान !
आतुर रक्षा करने को सज्जन भगतन के प्रान !
अभय दान दे रहे मुझे करुणासागर रघुनाथ !!
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ !
मुझको भला कष्ट हो कैसे , क्यों कर पीड सताए !
साहस कैसे करें दुष्टजन , मुझ पर हाथ उठाए !
अंग संग जब मेरे हैं संकटमोचन के नाथ !!
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ !
विघ्न हरे सद्गुरु के आश्रम स्वयम राम जी आये !
शाप मुक्त कर दिया अहिल्या को पग धूर लगाये !
वैसे चिंतामुक्त हमें , कर रहे राम रघुनाथ !!
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ !!
अब सोचता हूं जब मेरे रोम रोम में बसे श्री राम धनुष बाण लेकर मेरी पल पल रक्षा कर रहे हैं , तब कौन कर सकता है मेरा एक बाल भी बांका ?
सूरदास जी का एक पद याद आ रहा है , :-
जो घट अंतर हरि सुमिरे
ताको काल रूठ का करिये जे चित चरण धरे !!
(साक्षात् काल भी आये तो भी कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा)
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निवेदक :
व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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