हनुमत कृपा- अनुभव साधक साधन साधिये
साधन - भजन कीर्तन ( २ ९ ३ )
भक्त के लक्षण
सच्चा ईश्वर भक्त सम्पूर्ण जीवजगत से प्रेम करता है, सबके प्रति करुणा रखता है और कृपा की मूर्ति होता है ! वह किसी भी प्राणी से वैर भाव नहीं रखता और घोर से घोर दुःख को भी ईश्वर का प्रसाद मान कर प्रसन्नता से सह लेता है ! ऐसे व्यक्ति के जीवन का सार है "सत्य" और उसके मन मे किसी प्रकार की पाप, वासना कभी नहीं आती ! वह समदर्शी और सबका भला चाहने वाला होता है !
सच्चे भक्त की बुद्धि कामनाओं से कलुषित नहीं होती ! वह संयमी ,मधुर स्वभाव वाला , और पवित्र होता है !वह संग्रह ,परिगृह से सर्वथा दूर रहता है ! किसी भी वस्तु को पाने के लिए वह आवश्यकता से अधिक चेष्टा नहीं करता ! परिमित आहार विहार करता है और विषम परिस्थिति में भी स्थिर बुद्धि एवं शांत रहता है ! उसे एकमात्र प्रभु का ही भ्र्रोसा रहता है !
सच्चा भक्त प्रमादरहित , गम्भीर स्वभाव , धैर्यवान होता है ! वह स्वयं तो किसी से मान-सम्मान नहीं चाहता परन्तु दूसरों को सम्मान देता रहता है ! प्रभु के तत्व का उसे यथार्थ ज्ञान होता है जिसे अन्य लोगों को समझा कर वह आनंदित होता है और इस प्रकार वह स्वजनों को प्रभु भक्ति की प्रेरणा दता है !
श्री कृष्ण ने अपने सखा उद्धव जी से कहा :
" मैं कौन हूं , कैसा आकार है मेरा ,कैसा रूप है मेरा , कोई व्यक्ति इन बातों को जाने
चाहे नहीं जाने किन्तु यदि वह अनन्यभाव से मेरा भजन करता हैं ,
मेरे विचार से वह मेरा परम भक्त हैं !"
(श्रीमद भागवत महापुराण के अ० ११ के श्रीकृष्ण उद्धव संवाद से प्रेरित )
====================================
निवेदक: व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती (डाक्टर) कृष्णा श्रीवास्तव
सच्चा ईश्वर भक्त सम्पूर्ण जीवजगत से प्रेम करता है, सबके प्रति करुणा रखता है और कृपा की मूर्ति होता है ! वह किसी भी प्राणी से वैर भाव नहीं रखता और घोर से घोर दुःख को भी ईश्वर का प्रसाद मान कर प्रसन्नता से सह लेता है ! ऐसे व्यक्ति के जीवन का सार है "सत्य" और उसके मन मे किसी प्रकार की पाप, वासना कभी नहीं आती ! वह समदर्शी और सबका भला चाहने वाला होता है !
सच्चे भक्त की बुद्धि कामनाओं से कलुषित नहीं होती ! वह संयमी ,मधुर स्वभाव वाला , और पवित्र होता है !वह संग्रह ,परिगृह से सर्वथा दूर रहता है ! किसी भी वस्तु को पाने के लिए वह आवश्यकता से अधिक चेष्टा नहीं करता ! परिमित आहार विहार करता है और विषम परिस्थिति में भी स्थिर बुद्धि एवं शांत रहता है ! उसे एकमात्र प्रभु का ही भ्र्रोसा रहता है !
सच्चा भक्त प्रमादरहित , गम्भीर स्वभाव , धैर्यवान होता है ! वह स्वयं तो किसी से मान-सम्मान नहीं चाहता परन्तु दूसरों को सम्मान देता रहता है ! प्रभु के तत्व का उसे यथार्थ ज्ञान होता है जिसे अन्य लोगों को समझा कर वह आनंदित होता है और इस प्रकार वह स्वजनों को प्रभु भक्ति की प्रेरणा दता है !
श्री कृष्ण ने अपने सखा उद्धव जी से कहा :
" मैं कौन हूं , कैसा आकार है मेरा ,कैसा रूप है मेरा , कोई व्यक्ति इन बातों को जाने
चाहे नहीं जाने किन्तु यदि वह अनन्यभाव से मेरा भजन करता हैं ,
मेरे विचार से वह मेरा परम भक्त हैं !"
(श्रीमद भागवत महापुराण के अ० ११ के श्रीकृष्ण उद्धव संवाद से प्रेरित )
====================================
निवेदक: व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती (डाक्टर) कृष्णा श्रीवास्तव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें