सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

गुरुवार, 2 जून 2011

आत्म कथा # 3 7 6

असफलता में भी प्यारे प्रभु की कृपा का दर्शन

(गतांक के आगे) 

जब मैं भारत में था दूरर्दर्शन पर एक कार्यक्रम प्रसारित होता था "जनता की अदालत " जिसमे रजत शर्मा जी alleged दोषियों को सच बोलने की शपथ दिलाते थे !आज कल "जो कहूँगा सच कहूंगा" में दीपक चौरसिया जी तथा "आप की कचहरी " में किरन बेदी जी भी ऐसे ही शपथ दिलाने का नाटक करते हैं ! मेरी "आत्म कथा"  के प्रमुख सम्पादक व प्रकाशक महोदय -"मेरे प्यारे प्रभु" ने मुझसे ऎसी कोई शपथ नहीं ली है फिर भी अपने को परम राम भक्त समझने वाला ,स्वनाम धनी , अहंकारी "मैं" इस प्रकरण में यहाँ तक सत्य बोल लेने  के बाद इसके आगे और सत्य  बोलने का साहस नहीं कर सकता इसलिए अब " मुहं पे लगा के मुहरे खमोशी" मैं चुप रहना ही बेहतर मानता हूँ !

आप ही कहो मेरे प्यारे पाठकों कि आज मैं किसी को उन "कार वाली देवी" का शुभ नाम तथा उन्हें न पाकर मैं किन किन अभिशापों विपदाओं कष्टों से बच गया , क्यों बताऊँ ?  - कारण - यह कि अब उनकी निष्कलंक पवित्र आत्मा , मानव देह में धरती पर अपनी जीवन लीला समाप्त कर प्यारे प्रभु के परम धाम पहुच चुकी है ! अस्तु बीती ताहि बिसार कर आइये हम सब मिलकर मन ही मन में , अपने अपने इष्ट देव से , उन देवीजी की दिवंगत पवित्र आत्मा की चिरशांति के लिए प्रार्थना करें और क्या खोया है उसे न याद करके , क्या पाया है उसे सम्हालने का प्रयास करें !


जो खोया उसकी क्या चिंता , जो पाया है उसे संजो ले

इससे बड़ी न कोई पूजा, और नहीं कोई आराधन .
"उनकी" कृपा सिमर कर मन में, अपने दोनों नैन भिगोले ..

जो खोया उसकी क्या चिंता , जो पाया है उसे संजो ले

जरा सोच कर देख सुदामा, तू उनको कितना प्यारा है .
कल तक तू पैदल चलता था, आज चढ़ा है उड़न खटोले ..

जो खोया उसकी क्या चिंता , जो पाया है उसे संजो ले

("भोला")
 
क्या पाया

मैं इस उधेड़ बुन में था कि आगे क्या लिखूँ कि ५५-५६ वर्ष से प्यारे प्रभु से वरदान स्वरूप प्राप्त मेरी  धर्मपत्नी कृष्णा जी, ( जो उस दुर्घटना के लगभग ६ वर्ष बाद १९५६ में मेंरी जीवन संगिनी बनी ) ने मुझे याद दिलाया कि  पहिले मुझे "मुकेश"जी का एक गीत बहुत पसंद था और मैं उसे बड़े भाव से गाया करता था ! उनका इसरार था कि मैं आज वही गीत गा कर आपको सुनाऊँ ,लेकिन जब वह सम्भव न हो सका तो कृष्णा जी ने खोज कर के ओरिजिनल मुकेश जी की ही आवाज़ में वह गीत यहाँ लगा दिया ! उनका कहना है कि इस गीत के शब्दों में आपको मेरी तत्कालीन मनःस्थिति का वास्तविक आभास हो जायेगा ! नीचे बने मुकेशजी के चित्र पर बने प्ले चिन्ह पर क्लिक  कर के सुने :




बहुत दिया देने वाले ने तुझको , आंचल ही न समाय तो क्या कीजे .
बीत गये जैसे ये दिन रैना , बाक़ी भी कट जाये दुआ कीजे ..

बहुत दिया देने वाले ने तुझको , आंचल ही न समाय तो क्या कीजे ...

जो भी दे दे मालिक तू कर ले क़ुबूल , कभी कभी काँटों में भी खिलते हैं फूल
वहाँ  देर भले है , अंधेर नहीं , घबरा के यूं गिला मत कीजे

बहुत दिया देने वाले ने तुझको , आंचल ही न समाय तो क्या कीजे ...

देंगे दुःख कब तक भरम के ये चोर , ढलेगी  ये रात प्यारे फिर होगी भोर
कब रोके रुकी है समय की नदिया, घबरा के यूं गिला मत कीजे

बहुत दिया देने वाले ने तुझ को,  आंचल ही न समाय तो क्या कीजे .
बीत गये जैसे ये दिन रैना , बाक़ी भी कट जाये दुआ कीजे ..

(शैलेद्र)

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 क्रमशः
निवेदक  : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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