गुरुवार, 30 जून 2011

जोड़े रहो गुरुदेव से तुम तार दोस्तों # 3 9 4

राम कृपा से सद्गुरु पाओ 
आजीवन आनंद मनाओ 
उंगली कभी न  उनकी  छोडो 
जीवन पथ पर बढ़ते जाओ 


प्रियजन , हमारे कल के सन्देश का पहला वाक्य था ,"जोड़े रहो गुरुदेव से तुम तार दोस्तों" और मैंने कल के पूरे सन्देश में अपने निजी अनुभव के आधार पर आपको यह बताया था कि परमपुरुष देवाधिदेव सर्वशक्तिमान परमात्मा की असीम अनुकम्पा से ही साधक को सद्गुरु का सान्निध्य प्राप्त होता है ! गुरुजन के सत्संग से साधक को आत्मोन्नति की राह नजर आती है और उसे अपने जीवन को साधनामय बनाने की प्रेरणा मिलती है !  

USA में आयोजित यह त्रि दिवसीय साधना -सत्संग एक ऎसी प्रयोगशाला थी जहाँ पर साधको के हृदय तंत्री की ध्वनि सद्गुरु अपने इकतारे के स्वर से मिला कर एक ऐसा दिव्य नाद गुंजरित करते है जो साधक को सीधे सर्वशक्तिमान परमेश्वर से जोड़ देता है !सद्गुरु के बताये साधना पथ पर चल कर साधक भोतिक-जीवन में तो उन्नति करता ही है वह उसके साथ साथ अपने इष्ट का सतत चिन्तन स्मरण भजन कीर्तन करता हुआ उस आध्यात्मिक स्थिति को पा लेता है जो उसे उसके इष्टदेव के निकटतम पहुंचा देता है और साधक का जीवन परमानन्द से भरपूर हो जाता है ! 

सत्संगों में सद्गुरु स्वयम गाता है ,मस्ती में झूम झूम कर  नाचता है और अपने साथ साथ साधकों को भी नचाता और गवाता है ! मैंने स्वयम देखा और अनुभव किया है यह दिव्य आनंद श्रद्धेय स्वामी जी महराज तथा श्री प्रेमजी महाराज और डोक्टर विश्वामित्र जी महाराज के द्वारा आयोजित सत्संगों में ! स्वामी जी महाराज को मैंने उनकी ही धुनों पर मस्ती से नाचते हुए साधकों के ह्रदय में राम नाम की लौ लगा कर उनके मन मन्दिर की  सुसुप्त भक्ति भवानी को जगाते हुए देखा है -

राम नाम लौ लागी अब मोहे रामनाम लौ लागी
उदय हुआ शुभ नाम का भानु भक्ति भवानी जागी
अब मोहे रामनाम लौ लागी

हमारे आदि ग्रन्थों ने "नारदमुनि " को विश्व का सबसे प्राचीन एवं सफल सद्गुरु बताया  है!नारद जी से मार्गदर्शन पाकर ध्रुव और प्रहलाद ने सर्वव्यापी परमेश्वर को पा लिया था ! उन दोनों बाल भक्तों की प्रेमाभक्ति से द्रवित होकर निराकार ब्रह्म भी साकार बनने को  विवश हो गए !नारद जी के बताये हुए साधना पथ पर चलने पर पार्वतीजी को भगवान शंकर मिल गये ! 

मार्ग सद्गुरु दर्शा देता है ;पर साधना पथ पर चलना तो साधक को ही पड़ता है ! प्रियजन  साधको को गुरु द्वारा निर्धारित साधन करते समय सदैव अपने सद्गुरु के अंग-संग ही रहना चाहिए , उनका आश्रय पल भर को भी नहीं छोड़ना चाहिए,सतत उनसे जुड़े रहना चाहिए ! अबोध बालक की देख भाल जैसे उसकी माँ करती है वैसे ही सद्गुरु साधक की सहज -संभार करता है ! प्रियजन , पर किसी साधक को नारदजी जैसे सद्गुरु मिलें कहाँ ?

इस सन्दर्भ में कृष्णा जी ने अभी मेरा ध्यान हमारे सद्गुरु दिवंगत परम पूज्यनीय श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के निम्न्नाकित कथन की ओर आकृष्ट किया :-

देव दया जब होनी चाहे !  सहज सुयोग सभी बन जाये !!
संत सुघड़ जिसको मिल जाये ! पुण्य उदय उसके हो आयें !!


स्वामी जी महाराज का यह दृढ मत था कि पूर्व निर्धारित सुयोग होने पर , देवाधिदेव परम पुरुष परमेश्वर की दिव्य अनुकम्पा से साधकों के लिए पहले से ही नियुक्त गुरुजन उनके  समक्ष प्रगट हो जाते हैं ! साधक को केवल उन्हें पहचानना शेष रहता है ! भैया , मैं मानता हूँ कि यह पहचानना सचमुच एक अति कठिन काम है ! पर यहाँ भी हमारा प्यारा प्रभू हमे उचित प्रेरणाओं से वंचित नहीं रखता !

सदगुरु स्वरूपनी अपनी जननी "माँ" को भी यदि कोई पहचान न सका तो उसके समान 
अभागा कौन होगा ! ऐसे व्यक्ति के लिए तो यह निश्चित ही जानिए कि उसके जीवन में सद्गुरु मिलन का सुयोग तब तलक नहीं आएगा जब तक उसके पूर्व जन्मों के संचित अनुचित कर्म फलों तथा इस जन्म में किये उसके पुन्य कर्मों के फलों का लेखा जोखा बराबर नहीं हो जाता ! 

प्रियजन ,मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे समान आपने भी निश्चय ही इस जीवन मेंअब तक अपना सद्गुरु पा लिया है ! ऐसा न होता तो कदाचित आपने आज तक मेरे इस शुष्क और 
नीरस ब्लॉग श्रंखला में पिछले १४ महीनों में मेरे द्वारा प्रेषित इन लगभग ४०० आलेखों को इतनी शांति और सुगमता से न झेला होता ! हार्दिक धन्यवाद और आभार प्रगट करता हूँ , स्वीकार कर अनुग्रहित करें !

अभी आपकी सेवा में आज प्रातः ही "परमपुरुष" की प्रेरणा से पूरी हुई अपनी यह रचना 
प्रेषित कर रहा हूँ ! एक छोटी सी अर्ज़ भी आपसे कर रहा हूँ कि " मेरे अतिशय प्रिय पाठकों प्रभू की विशेष कृपा से जब आपको आपके  मार्ग दर्शक गुरु मिल गये है तो आप अब भूले से भी उनकी उंगली न छोड़ें ,जहाँ कहीं भी वह आपको लेजाना चाहे आप उनके साथ साथ निर्भय हो कर जाएँ !आपका कल्याण होगा ! अर्ज़ है -
  
जोड़े  रहो गुरुदेव से तुम तार दोस्तों 
छेड़े रहो हरि नाम की झंकार दोस्तों 
छूटे न कभी नाम का उच्चार दोस्तों
जोड़े रहो गुरुदेव से तुम तार दोस्तों

हो जाय तार तार चाहे तन का गरेबा, 
टूटे  नहीं उस तार की झंकार दोस्तों 
छूटे न कभी नाम का उच्चार दोस्तों 
छेड़े रहो हरि नाम की झंकार दोस्तों

सद्गुरु ने दिया है तुझे जो मन्त्र "नाम"का
उस तार को थामे करो भव पार दोस्तों
छेड़े रहो हरि नाम की झंकार दोस्तों
छोडो न कभी नाम का उच्चार दोस्तों 

"भोला" 
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती डोक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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मंगलवार, 28 जून 2011

केवल गुरु कृपा # 3 9 3

परम गुरु राम मिलावन हार


"जोड़े रहो तुम तार गुरुजनों से दोस्तों " ,यह संदेश मैंने अपने पिछले ब्लॉग के माध्यम से आपके पास भेजा था ! क्यों ? मैंने महापुरुषों से सुना है कि हम जैसे साधारण प्राणियों के लिए ,इस संसार में जगत व्यवहार निभाते  हुए परम सत्य स्वरूप "ईश्वर" का दर्शन कर पाना असंभव है ! सर्वशक्तिमान परमात्मा के तार से हमारी आत्मा का तार जोड़ने का कार्य केवल साधूसंत और महात्माजन ही कर सकते  हैं !
   
यह सर्वमान्य सत्य है  कि ,हमें ईश्वर की उपस्थिति का अहसास  केवल हमारे सदगुरु ही करा सकते है ! और प्रभु की कृपा के बिना सद्गुरु मिलन भी दुर्लभ है ! अस्तु मानवता की सहायता हेतु परम कृपालु प्रभु हम सब पर अति करुणा कर के समय समय पर श्रेष्ठतंम  गुरुजनों के रूप में अनेकानेक संत महात्माओं को धरती पर भेजते हैं ! प्रियजन, विभिन्न  धर्म -शास्त्रों में इसी कारण ,धरती पर, मानव स्वरूप में अवतरित हुए ऐसे महापुरुषों  को  निराकार "ब्रह्म" का साकार प्रतिनिधि कहा गया है !

मानवता के उद्धार का मार्ग प्रशस्त करने वाले ऐसे अनगिनत श्रेष्ठ महापुरुष पृथ्वी पर समय समय पर अवतरित होते रहे हैं ! नाम कहाँ  तक गिनाये ? योगेश्वर कृष्ण , भगवान बुद्ध , महावीर स्वामी , लोर्ड क्राइष्ट (ईसा मसीह), हजरत मोहम्मद साहेब , आदिगुरु श्री शंकराचार्य से लेकर संत रैदास ,गुरु नानकदेव  ,स्वामी हरिदास जी , की श्रंखला  में आज तक भारत भूमि पर जन्मे अनेकानेक युग प्रवर्तक गुरुजनों ने अपनी अपनी विधि से तथा युक्ति से  जन साधरण को जीवन का श्रेय और प्रेय  पाने का मार्ग बताया है ! इन गुरुजनों ने साधारण से साधारण व्यक्ति का तार, भली भांति निज -धर्म निभाते हुए 'परम पिता सर्वव्यापी सृष्टिकर्ता' से जोड़ा तथा समस्त मानवता को मुक्त करके परमात्मा के परम धाम तक पहुचने का साधन बताया !       

विद्वानों के  मतानुसार "गुरु" वह  है जो अज्ञान का अंधकार मिटा कर ज्ञान की ज्योति जलावे !("गु" का अर्थ है  अंधकार और "रु" का अर्थ है प्रकाश)! संतशिरोमणि तुलसीदास ने रामचरितमानस के  मंगलाचरण में गुरु-वंदना करते हुए कहा है-

बन्दों गुरु पद कंज कृपा सिन्धु नररूप हरि 
महा मोह तम पुंज जासु वचन रविकर निकर

गुरु की वाणी मोह रूपी घने अन्धकार को मिटा कर ज्ञान का प्रकाश साधक के हृदय में वैसे ही  भर देतीं है  जैसे सूर्य की किरणें रात्रि के अन्धकार को दूर कर जगत को प्रकाश से चमकृत कर देतीं हैं ! 

इस संसार में साधारण मानव का  जीवनपथ अनगिनत अवरोधों से भरा हुआ है ! जीवन के इस अँधेरे कंटकों एवं चुभते कंकरपत्थरों से भरे मार्ग पर सुविधा से चल पाना आज के मानव के लिए बड़ा कठिन है !  बिना किसी हादसे के गन्तव्य तक पहुंचना मानव क्षमता से परे है ! इसके लिए जीव को एक कुशल मार्ग दर्शक और संचालक की आवश्यकता होती है ! गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्ग दर्शन करते हुए कहा  "योग :कर्मसु कौशलम" अर्थात कुशलता से, युक्तिसंगत विधि से कल्याणकारी कर्म करना ही योग है ! इस "युक्ति" का ज्ञान या बोध और उसका अभ्यास "गुरु" ही कराते  हैं ! गुरु ही ऐसे श्रेष्ठ  महापुरुष है जो सुख -शांति से पूरित जीवन जीने की विधि बतलाते हैं और आत्मिक शांति प्राप्ति का साधन बताते है ! गुरु ही हमे अपनी वृत्तियौं को साधनामयी बनाने की युक्ति समझाते हैं! इसी कारण ज्ञानीजन ,साधको को 'युक्ति' अथवा 'विधि' बता कर मुक्त कर ने वाले श्रेष्ठ व्यक्ति को "गुरु" कह कर पुकारते  हैं !  

प्रियजन, गुरु ही हमें सत्य और धर्म पर चलने की राह दिखाते हैं ;वे ही हमें अहंता और ममता के बंधन से मुक्त हो कर जगत व्यवहार करते हुए प्रभु का स्मरण करते रहने का सन्देश देते हैं ! गुरुजन हमे ,युक्ति संगत ल्याणकारी पथ पर दृढ़तापूर्वक चलने की प्रेरणा देते हैं ;जब हमारे कदम डगमगाते हैं गुरु ही हमारी उंगली पकड़ कर हमे सम्हाल लेते हैं हमे गिरने नहीं देते !

किसी संत ने कितना सच कहा,है

गुरु बिन ज्ञान न ऊपजे , गुरु बिन भगति न होय 
गुरु बिन संशय ना मिटे , गुरु बिन मुक्ति न होय  

मैंने  पहले कहीं कहा है एक बार फिर कहने को जी कर रहा है कि ,मनुष्य को मानव जन्म प्रदान कर धरती पर भेजता तो परमेश्वर है लेकिन उसको इन्सान बना कर उसे अहंकार और ममता से मुक्ति (मोक्ष) का मार्ग दिखाता है उसका "सद्गुरु" ! उसे शांतिमय जीवन जीने की कला सिखाता है उसका सद्गुरु ! मेरे जीवन का अनुभव है 


रस्ते में पड़ा था मैं खाता था ठोकरें
गुरुदेव नें कंकड़ को जवाहर बना दिया 

तुकबन्दियाँ करता रहा जो अबतलक बेनाम
दे "राम नाम" उसको शायर बना दिया

"भोला"
  

प्रियपाठकगण, शाश्वत सत्य तो यह है कि साधको द्वारा किसी भी साधन से की हुई कोई साधना तब तक सफल नहीं होगी जब तक साधक को अपने मार्ग दर्शक 'सद्गुरु" पर,अपने 'साध्य' पर,अपने 'साधन' पर, अपनी 'साधना' पर और स्वयं अपने आप पर अटूट भरोसा (विश्वास) नही होग़ा ! अस्तु ह्म साधकों को अपने सद्गुरु एवं अपने 'इष्ट' परमेश्वर पर सदा एक अविचल भरोसा (सजीव विश्वास) रखना चाहिए !      

हमारे गुरू महाराज जी ने सेलार्स्बर्ग के खुले सत्संग के अपने प्रवचनों में इस बार इस "भरोसे" पर ग़हन प्रकाश डाला ! उन्होंने हमे बताया कि हम साधक ,भरोसा कैसे करें, किस पर करें ;क्यों करें ? विस्तार से उसका विवरण पाठकों को श्रीराम शरणंम लाजपत नगर नयी दिल्ली के वेब साईट पर प्रवचनों पर क्लिक करने से मिल जायेगा ! कृपया समय निकाल कर सुनने का प्रयास अवश्य करें !
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निवेदक : व्ही . एन . श्रीवास्तव 'भोला"
सहयोग :डॉ.श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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सोमवार, 27 जून 2011

भजन - राम राम काहे न बोले # 3 9 2


मोडम में तकनीकी समस्या के कारण पापा ब्लॉग नहीं लिख पा रहे हैं . पर उनकी हार्दिक इच्छा है आप सबको 'महावीर बिनवउँ हनुमाना" की पोस्ट मिलती रहे , इसलिए मैं उनका लिखा और गाया हुआ भजन पोस्ट कर रही हूँ. यह भजन सुप्रसिद्ध गायक, मिश्र बंधु, द्वारा गाये 'कृष्ण कृष्ण काहे न बोले' पर आधारित है .



राम राम काहे ना बोले ।
व्याकुल मन जब इत उत डोले।

लाख चौरासी भुगत के आया ।
बड़े भाग मानुष तन पाया।
अवसर मिला अमोलक तुझको।
जनम जनम के अघ अब धो ले।
राम राम ...

राम जाप से धीरज आवै ।
मन की चंचलता मिट जावै।
परमानन्द हृदय बस जावै ।
यदि तू एक राम का हो ले।
राम राम ...

इधर उधर की बात छोड़ अब ।
राम नाम सौं प्रीति जोड़ अब।
राम धाम में बाँह पसारे ।
श्री गुरुदेव खड़े पट खोले।
राम राम ...
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शब्दकार , गायक -  व्ही  . एन.  श्रीवास्तव "भोला"
वीडिओ रेकोर्डिंग -  रानी बेटी मोहिनी , राम रंजन श्रीवास्तव 
वीडिओ सम्पादन - रिरेकोर्डिंग - श्री देवी कुमार , चेन्नई 
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शुक्रवार, 24 जून 2011

गुरु कृपा -केवल- गुरु कृपा # 3 9 1

गुरु कृपा -केवल- गुरु कृपा 


परम प्रिय पाठकगण , आप कुछ भी सोचें ,कुछ भी कहें लेकिन जो चमत्कारिक अनुभव मुझे जून २०११ में  USA के त्रिदिवसीय खुले सत्संग में हुए ;उन्हें चमत्कार की संज्ञा देकर, मैं अपने गुरुजन की कृपा की महत्ता को घटाना नहीं चाहता ! सच पूछो तो अपने  जीवन में घटी हुई   प्रत्येक घटना में ही गुरुजन की अहेतुकी करुणा से मुझे उपलब्ध हुए प्यारे प्रभु की असीम कृपा का दर्शन करता हूँ !  

अपने जीवन के पिछले आठ दशकों (८२ वर्षों) के अनुभव के आधार पर मैं पूरी दृढ़ता से आपको यह बता रहा हूँ कि गुरुजन की करुणा एवं उनकी अनुकम्पा के बिना हम जैसे किसी भी  साधारण जीवधारी को प्रभु की कृपा पाना असंभव है !और उनकी कृपा की गणना कर पाना हमारे लिए असंभव है !


नहीं गिन सकूंगा मैं उपकार उनके 
कृपा  इस कदर वह किये जा रहें हैं

पतित हम पुरातन अधर्मी सनातन
उन्ही  की  कृपा से  जिए जा रहे  हैं !      

अधम हम पुरातन पतित नीच प्राणी 
गरेबान पुराना सिये जा रहे हैं 

न जीने का दम न कुछ करने की ताकत 
उन्ही  की  कृपा से  जिए जा  रहे  हैं  


महराज जी ने वादा किया था कृष्णा जी से, कि देश निकाला के दौरान वह मुझे यहाँ दर्शन देंगे, मेरी नयी रचनाएँ सुनेंगे ! २००९ में महाराज जी ने दर्शन देकर हमे अनुग्रहीत किया था. अब २०११ में उनके दर्शन की तीव्र अभिलाषा जग गयी थी ! मन में एक यह चाह थी कि कब महाराज जी अमेरिका आयेंगे , कब दर्शन देंगे और अपनी सुधामयी वाणी से हम सब को तृप्त करेंगे ! मैं ही क्या U S A  के सभी साधकों को उनके आगमन की प्रतीक्षा करते हुए जो भाव था वह यही था  ------,
                      -
हे गुरुदेव  विलम्ब न कीजे !
साधक जन को दर्शन दीजे !!


दो  वर्षों से  साधक  सारे दर्शन  अभिलाषा  उर धारे 
ठाढें हैं गुरु मन्दिर द्वारे नाथ सनाथ इन्हें कर दीजे !


हे गुरुदेव  विलम्ब न कीजे ! 

पद परसन की चाह लिए मन,आतुर हैं  सारे साधक गन  !
गुरुवर उन्हें जान अपना जन,अवसर एक सबहि को दीजे !

हे गुरुदेव  विलम्ब न कीजे !


मानव मन  दुर्गुण का डेरा ,पल पल करता पाप घनेरा !
गुरु तजि और न  कोई मेरा ,भव सागर से पार करीजे !

हे गुरुदेव  विलम्ब न कीजे !


मुझको दुर्लभ है तव दर्शन , निर्बल  तन मेरा  दूषित मन !
एक बार कर अमृत  वर्शन , मेरे  सब  अवगुण धो    दीजे !


हे गुरुदेव विलम्ब न कीजे  !


"भोला"

और फिर चिर प्रतीक्षित  वह दिन आ ही गया; मैं सेल्सबर्ग में आयोजित खुले सत्संग में सम्मिलित हो सका और महाराजजी के दर्शन का , एवं उनके सानिध्य का लाभ उठा सका !  जिन जिन साधकों का सहयोग मुझे मिला उनका मैं आजीवन आभारी रहूँगा !  यहाँ तो जो मैंने पाया , बस  वही बताना चाहता हूँ !

सद्गुरु मिलन से मुझे जो उत्कृष्ट उपलब्धि हुई वह अविस्मरणीय है और शब्दों में उसका वर्णन कर पाना कठिन है ! वह आनंद जो हमे वहां मिला उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे लिए असंभव है ! संत सूरदास  के शब्दों में 

ज्यों गूँगहि मीठे फल को रस अंतर्गत ही भावे 
अविगत गत कछु कहत न आवे !!

जब सूर जैसे महापुरुष उसे नहीं कह पाए मैं कैसे कहूँ ! 

सद्गुरु मिलन से मेरा यह मानव जन्म धन्य हो गया सार्थक हो गया ! "सद्गुरु दर्शन" के उपरांत मेरी सर्वोच्च उपलब्धि थी सद्गुरु के "कृपा पात्र" बन पाने का सौभाग्य ! जो बिरले साधकों को मिलता है /.मुझे उनकी वाणी से ,उनके दृष्टिपात से तथा उनके सानिध्य से मिली उनकी हार्दिक शुभ कामनाएं और उनका वरदायक आशीर्वाद, लिनसे मेरे रुग्ण तन को सुद्रढ़ आत्मिक बल मिला और अनिवर्चनीय आनंद ;ऐसा आनंद जिसे  पाने के लिए ऋषी मुनि गृह त्यागते हैं और अथक साधना करते हैं! इसलिए मुझे आपसे कहना है ---

जोड़े रहो तुम तार  गुरुजनों से दोस्तों 
छेड़े रहो झंकार  उस नाम की  दोस्तों

यहाँ बस  इतना ही कहना पर्याप्त होगा की  अपनी साधना में हमे पल भर भी ये न भुलाना चाहिये कि हमारा सद्गुरु  सदैव ह्मारे अंग संग है !

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निवेदक: व्ही. एन.श्रीवास्तव "भोला" 
सहयोग : श्रीमती कृष्णा 'भोला'श्रीवास्तव 


मोडम में तकनीकी समस्या के कारण पापा यह ब्लॉग पोस्ट नहीं कर पा रहे हैं,
अतः उनकी इच्छानुसार मैं इस ड्राफ्ट को पब्लिश कर रही हूँ . - श्री देवी 
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मंगलवार, 21 जून 2011

गुरु कृपा - अथवा - चमत्कार # 3 9 0

 मेरे परमप्रिय पाठकगण    
बनते हैं गुरुकृपा से साधक के सब काम
  मूरख "कर्ता" बन ,करे झूठे ही अभिमान ?   
 "भोला"
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Dear ones 
It is due to our Gurujans Grace that we achieve success in our endeavours 
but ignorant as we are we think that we have achieved those on our own
VNS "BHOLA" 
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सत्सग में शामिल होने के दिन जैसे जैसे निकट आये ,हम अवरोध के पर्वतों से घिरते गये ! हमारी स्वास्थ्य की परेशानियाँ ,अकेले बिना किसी सबल सहायक के यात्रा कर पाने में हम दोनों की असमर्थता की भावना हमे पूर्णतः निराश कर रही थीं ! प्रियजन आप जानते ही हैं , वर्तमान दशा यह है कि मुझे २४ घंटे किसी न किसी व्यक्ति के सहायता की दरकार रहती है ! घर पर तो  कृष्णा जी हर घड़ी मेरी देखरेख करती रहती हैं लेकिन सत्संग में ये संभव नहीं होता ! २००९ के USA के सत्संग में पुत्र राघव जी मेरे साथ मेरे कमरे में थे !इस वर्ष यह कठिन लग रहा था !

लगभग तीन वर्ष के बाद श्री महाराज जी के दर्शन तथा सानिध्य का यह सुअवसर हम किसी कीमत पर गंवाना नही चाहते थे ! पर हम विवश थे , किसी प्रकार भी यहाँ से हमारे सुविधापूर्वक निकलने का कार्यक्रम पक्का नहीं हो पा रहा था ! दोनों पुत्र , हमारी यात्रा की व्यवस्था के जोड़ तोड़ में लगे थे पर  व्यवधान तो व्यवधान ही थे ! हमे लग रहा था मानो हमारे सभी द्वार  बंद हो गये हैं और परम गुरु की कृपा के बिना उनका खुलना संभव नहीं है ! प्रियजन ऐसे में अभी हमे श्री राम शरणम के हमारे एक अनुभव की याद आ रही है , पहले आपको सुना दूं :

पाठकगण , २००६ के अंत में एक रविवार , हम दुसह दुःख से पीड़ित अपने पूरे परिवार के सहित महाराज जी के दर्शनार्थ श्री राम शरणंम गये !दैवी प्रेरणा से ही शायद उस दिन श्री महाराज जी ने अपने प्रवचन में मानव शरीर की नश्वरता एवं जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था और सब भजन गायकों ने भी कुछ इसी भाव के भजन प्रस्तुत किये थे ! क्यों और कैसे यह हुआ गुरुजन ही जाने ! पर उस दिन हम कुछ वैसी ही एक दुखद बिछोह की  पीड़ा झेल रहे थे !

हमारे ऊपर ,विशेषतः हमारी छोटी बेटी पर कुछ दिन पहले ही दुखों की एक भयंकर गाज गिरी थी ! उस दिन की भेंट में महाराज जी ने हम सब को और हमारी बेटी प्रार्थना को बड़ी आत्मीयता से समझाया और चलते चलते केवल  इतना  कह कर आश्वस्त कर दिया कि बेटा जब हमें ऐसा लगता है कि हमारे सब दरवाज़े बंद हो गये हैं ,परम कृपालु प्रभू हमारे  लिए एक के बाद एक अनेकों नये दरवाजे खोल देता है ! बेटा भरोसा बनाये रखो , देखना भविष्य में वह तुम्हे तुम्हारी अपेक्षाओं और अभिलाषाओं से कहीं अधिक  देगा "गुरुदेव के इस वचन की सच्चाई हमे उस दिन से ही नजर आने लगी थी,- कैसे ? ,आपको अपनी आत्म कथा में शीघ्र ही बताउंगा , अभी पहले USA के खुले सत्संग का ब्योरा पूरा कर लूं !   

सत्संग में पहुचने के सभी मार्ग हमे अवरुद्ध दीख रहे थे ! ऐसे में  हम पर भी  गुरुजन की कृपा हुई , हमारे बंद दरवाजे एक एक कर खुल गये ! आयोजकों ने मेरी दशा का विचार कर के आश्रम में हमारे लिए उचित व्यवस्था कर दी ! इधर हमारे दोनों पुत्रों ने  हमे भरोसा दिला रखा था कि वे हमे किसी प्रकार सेलार्स्बर्ग पहुंचवा  देंगे पर  बड़े पुत्र राम रंजन को सहसा टूर पर विदेश जाना पड़ा , छोटे पुत्र राघव रंजन के पास भी विदेश से उसके अनेक एसोशिएट्स आये हुए थे और उसका बोस्टन में रहना अनिवार्य था फिर भी उसने उस दिन हमारे लिए एक दिन  में लगभग १००० किलोमीटर की यात्रा स्वयम कार द्वारा ,प्रचंड  थंडर और आंधी तूफान में तै की , हमे सत्संग में पंहुचाया और वापस लौट गया !

हमारे सत्संग का एक एक साधक राममय है ! प्रभु श्री राम के से सद्गुण  सभी श्री राम- शरणंम के साधकों में प्रलक्षित होते हैं ! प्रियजन आप दूर से श्री राम शरणंम के साधकों को पहचान सकते हैं ! उनका प्रेम मय व्यवहार , उनकी करुणा तथा सेवा करने की उनकी आतंरिक प्रवृत्ति उन्हें साधारण व्यक्तियों से भिन्न, दैवी गुणों से सम्पन्न बना  देती है !   

व्यवस्थापकों ने आश्रम में ठहरने के लिए मेरे दो bed वाले कमरे में जिस नवयुवक को मेरे साथ जगह दी थी उसने वहा मुझे अपने पुत्रों की कमी नहीं महसूस होने दी ! मैं तो यह कहूंगा कि उसने मेरी जैसी सेवा की वैसी कदाचित मेरे अपने पुत्र भी नहीं कर पाते ! उसके  सेवा की तुलना हम केवल श्री हनुमान जी द्वारा प्रभु राम जी की सेवा से कर सकते हैं !कैसे किन शब्दों में मैं उस व्यक्ति को धन्यवाद दूँ ! केवल प्रभु से प्रार्थना कर सकता हूँ कि मेरे राम उस व्यक्ति को पूर्णतः संपन्न एवं सदासर्वदा  प्रसन्न रखें !

इस प्रकार श्री राम कृपा से एवं गुरुदेव के आशीर्वाद से मुझे इस सत्सग में कोई भी कष्ट नहीं हुआ ! आप कहेंगे कि ये तो बहुत साधारण सी बात है इसमें कौन सी विशेष कृपा मेरे गुरुजन ने मुझ पर की ? प्रियजन यह तो केवल भूमिका है मैं विस्तार से श्री राम "कृपा" के सभी द्रष्टान्त अगले अंकों में दूँगा !आज यहीं समाप्त करने की आज्ञा चाहता हूँ ! 

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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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रविवार, 19 जून 2011

जो गुरु चाहे सोई सोई करिये ! # 3 8 9

श्री गुरुवे नमः 


सद्गुरु चरण सरोज रज जो जन लावें माथ ,
श्री हरि की करुणा-कृपा तजे न उनका साथ !!
सुख समृद्धि सद्बुद्धि से सजे सकल संसार   
उनके माथे पर रहे सदा "इष्ट" का हाथ !!
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!!"ऐसे जन पर सर्वदा कृपा करे रघुनाथ"!!
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("भोला'')

मेरे अतिशय प्रिय पाठकगण,

दिनांक १६ जून २०११ के सन्देश # ३ ८ ६ - "गुरु आज्ञा में निशदिन रहिये" , में मैंने अर्ज़ किया कि कैसे गुरुदेव विश्वामित्र जी महाराज की आज्ञा का उल्लंघन करके मैंने भयंकर  कष्ट उठाये और दुसह दारुण दुःख झेलने के बाद  ,अन्ततोगत्वा वही किया जो महाराज जी ने सुझाया था !

[उपरोक्त कथन के सम्बन्ध में एक और बात बताने की प्रेरणा हो रही है !  इस  सन्दर्भ में मैंने श्रीमहाराज जी के श्री मुख से एक बार कहीं यह सुना था कि "गुरु 'आज्ञा' नहीं देते है" (कदाचित मेरी  बारह दवाइयों का असर है कि अब मेरी स्मरण शक्ति इतनी क्षीण हो रही है कि आज मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है कि  महाराज जी ने कब कहाँ और किस सन्दर्भ में ये बात कही थी )  लेकिन आज मैं अपने ८१- ८२ वर्ष के अनुभव के आधार पर पूरी दृढ़ता से कह सकता हूँ कि उसे चाहे आप आज्ञा कहें, आदेश - सन्देश - सुझाव  कुछ भी कहें ,गुरु के मुख से निकला प्रत्येक वचन और उसका एक एक अक्षर हमारे लिए अति  महत्वपूर्ण है ;चाहे वह हमारे जगत व्यवहार से सम्बन्धित हो अथवा आध्यात्मिक प्रगति  से , हमें  शिला लेख के समान उसे अपने मन बुद्धि पर अंकित कर लेना चाहिए ]

गुरु हमारे मार्गदर्शक हैं ;वह हमें जो राह दिखाते हैं उस पर चलना हमारा एकमात्र धर्म है ! केवल उस पथ पर चल कर ही हम अपनी मंजिल पा सकते हैं ! अस्तु -


गुरु आज्ञा में निशिदिन रहिये 
  जो गुरु चाहे सोइ सोइ करिये !!

गुरु चरणन रज मस्तक दीजे, निज मन बुद्धि शुद्ध कर लीजे ,
आँखिन ज्ञान सुअंजन दीजे, परम सत्य का दर्शन करिए !!
गुरु आज्ञा में निशिदिन रहिये!! 

गुरु अंगुरी दृढ़ता से धरिये ,साधक नाम सुनौका चढिये 
खेवटिया गुरुदेव सरन में भव सागर हंस हंस कर तरिये 
गुरु आज्ञा में निशिदिन रहिये!!

गुरु की महिमा अपरम्पार ,परम धाम में करत बिहार ,
ज्योति स्वरूप राम दर्शन को , गुरु के चरण चीन्ह अनुसरिये ,
गुरु आज्ञा में निशदिन रहिये
जो गुरु चाहे सोई सोई करिये!! 

("भोला")

प्रियजन , उपरोक्त रचना में मैंने गुरुजन से प्राप्त प्रेरणा के आधार पर एक सन्देश दिया है ! यह रचना २००३ में यहाँ USA में हुई थी - श्रद्धेय पंडित जसराज जी द्वारा गाये राग सिन्धु भैरवी के एक छोटे ख़याल के आधार पर  मेरे मन में भावों का ज्वार उठा और इन शब्दों की संरचना हुई !

[ये भजन मैंने २००५ में श्री राम शरणम् के केसेट # १२ के लिए रेकोर्ड किया था और  इसे आपने मेरे सन्देश # ३ ८ ७ में सुन लिया होगा (जहाँ "गुरु चरणन  में ध्यान लगाऊँ "  के स्थान पर यह भजन भूल से लग गया था ]

संत तुलसीदास  ने कितना सच कहा है " पर उपदेश कुशल बहुतेरे",  इसके अतिरिक्त और भी अनेको लोकोक्तियाँ जैसे, "थोथा चना बाजे घना" और "कहना आसान है कर के दिखाना कठिन " आप हमारे ऊपर थोप सकते हैं ,  मैं कोई शिकायत नहीं करूँगा !मैं दोषी हूँ ! मैं स्वयम यह बात भूल गया ,तभी तो महाराज जी की मेरे ही हित में दी हुई हिदायत मैंने बलाए ताख कर दी और साल में ६-६ महीने के लिए हर दो साल में भारत आता रहा !

जानता हूँ बाल बच्चों से अधिक मेरा एक अन्य स्वार्थ था ,जो मुझे भारत बुलाता था ! वह था ,श्री राम शरणम् में महाराज जी के दर्शनकी ललक  तथा ब्रह्मलीन स्वामी जी महाराज के वंशज सभी बुज़ुर्ग और नवजात प्यारे प्यारे साधकों से मिलन की लालसा ! मेरे मन में एक यह अभिलाषा ही प्रबल रहती थी ! मेरा यह स्वार्थ सर्वोपरि  था जिसके कारण ( अवश्य कोई कहेगा झूठी बहाने बाज़ी कर रहा हूँ ), खैर मैंने महाराज जी की आज्ञा का उल्लंघन किया परम प्रिय पाठकों , मैंने किया तो किया, प्यारे बच्चों ,आप ऐसा कभी न करना अपने गुरुजनों की बातें ध्यान से सुनना , उनके एक एक अक्षर में ज्ञान का भंडार भरा है -आपको मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की दिनच्रर्या का उदाहरण देता हूँ : 

प्रात पुनीत काल प्रभु जागे , अरुण चूड बर  बोलन लागे !
प्रात काल उठि के रघुनाथ ,मात पिता गुरु नावही माथा !
मात पिता गुरु प्रभु के बानी, बिनहि बिचार करइ शुभ जानी ! 
सुनु जननी सोई सुत बडभागी,जे पितु मातु वचन अनुरागी !  



"तुलसी कृत मानस से"


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माता पिता गुरुजन की आज्ञा मान कर चलने वाले बडभागी होंगे ! प्रियजन स्वयम श्रीराम द्वारा दिए इस आश्वासन से अधिक और कौन सा आश्वासन चाहिए हमे ,जीवन में , सफल होने के लिए !
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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शनिवार, 18 जून 2011

मेरे प्यारे हे पिता ! # 3 8 8


सर्व शक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः 
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परम पिता परमात्मा बिनती एक न आन !
 सब की विपदाएं हरो ,करो विश्व कल्यान !
पिताश्री ,परम शांति दो दान !!
("भोला")
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O Divine Father we have just a single prayer to make
Vanish miseries and bless the entire humanity with peace and prosperity.) 
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परम पिता परमात्मा से हमारी नित्य प्रति की अनुरोधात्मक प्रार्थना-
श्री स्वामी सत्यानन्द जी महराज के शब्दों में  

मेरे   प्यारे  हे  पिता ,परम  पुरुष  भगवान ,
तुझसे बिछड़ा विषम बन मैं भूला निज ज्ञान !! 

जन्म जन्म भूला फिर ,पाया राम न नाम ,
अबकी यदि संयोग हो , सिमरूं आठों याम !! 

बालक बिछड़ा भूल से ,चल कर उलटे पंथ ,
अब तो मार्ग दीजिये , पढूँ नाम मय ग्रन्थ !!


अपने जन की सार ले, अपना बिरद बिचार ,
भूल चूक को कर क्षमा , पूरी करो सम्भार !!


रोये   बिरही  रातदिन  ले  ले लम्बी साँस ,
परम पिता से दूर कर ,लिया काल ने फांस !!

इस अटवी अति घोर में ,भटक भटक दुःख पाय ,
तुम  बिन  मेरा  कौन  है, पथ  जो  मुझे  बताय !!

(रचयिता : ब्रह्मलीन , गुरुदेव श्री स्वामी सत्यानंदजी महराज)

प्रियजन अब पिताश्री के श्रीचरणों की वन्दना में एक पद और सुने 


तेरे चरणों में प्यारे ऐ पिता मुझे ऐसा दृढ बिस्वास हो
कि मन में मेरे सदा आसरा तेरी दया व  मैहर की आस हो.

"Beloved Father Bless me with an unfaltering FAITH in your GRACE
so that I always depend upon your kindness."

चढ़ आये जो कभी दुःख की घटा या पाप करम की होये तपन
तेरा नाम रहे मेरे मन बसा ,तेरी दया व मेहर की आस हो.
तेरे चरणों में प्यारे ऐ पिता -----------------------

"If clouds of misery compel me to adopt unholy practices .
O my Beloved Father  
May I be reminded to remember your name inviting your GRACE"

यह काम जो हमने है सर लिया करें मिल के ह्म तेरे बाल सब,
तेरा हाथ जो ह्म पर रहे सदा तेरी दया व मैहर की आस हो.
तेरे चरणों में प्यारे ऐ पिता -------------------

"We-Your loving children be enabled to carry out the jobs assigned to us,
as a team, and your BLESSINGS be always available to us."

मनसा वाचा कर्मना सब को सुख पहुचाय
अपने मतलब कारने दुक्ख न दे तू काहु
यदि  सुख तू नहीं दे सके तो दुःख काहू मत दे
ऎसी रहनी जो रहे सो ही आत्म सुख ले

"May we be enabled to serve, with our heart and soul, the needy,
to make them feel happy. Our acts should not cause pain to any one.
If we are not able to provide the unhappy ones with happiness 
we have no right to cause pain to any one.
Those who follow this divine principle will be blessed "


(आभार - राधास्वामी  सत्संग दयालबाग आगरा )
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सोमवार से पुनः USA के खुले सत्संग के विषय में लेखन प्रारंभ करूंगा !
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निवेदन:  व्ह़ी . एन.  श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग
श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव  एवं  सुपुत्री -श्रीमती श्री देवी कुमार (मद्रास से)
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शुक्रवार, 17 जून 2011

गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ # 3 8 7


गुरु की कृपा न कभी भुलाऊँ 
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ
ऎसी सुमति हमे दो स्वामी

"भोला"
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परमगुरु "प्रभु श्री रामजी" के आदेश से , श्री राम शरणंम , लाजपत नगर , नई दिल्ली ,के दिव्य प्रांगण में, ब्रह्मलीन गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महाराज एवं , सद्गुरु  श्री प्रेम जी महाराज तथा  वर्तमान गुरुदेव डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज के पावन संगत  में व्यतीत किये इस जीवन के कुछ अविस्मरनीय क्षणों के मधुर संस्मरण आपकी सेवा में प्रस्तुत करने की प्रेरणा हुई और मैं U S A में आयोजित इस वर्ष के खुले सत्संग के अपने दिव्य अनुभव लिखने बैठ गया !

कल वाले सन्देश में मैंने कहा था कि एक रविवासरीय सत्संग के बाद गुरुदेव डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज ने परम श्र्दध्येय श्री स्वामी जी महाराज के श्री चरणों का एक चित्र अपने वरद हस्त से हमे (मुझे और कृष्णा जी) को प्रदान किया ! चित्र देते समय महाराज जी ने मेरे गुरु संबंधी भजनों को इंगित कर के कहा "आप बहुधा बाबा गुरु के श्री चरणों की   चर्चा अपने भजनों में करते हैं , ये चित्र ले जाएँ " (शब्द ठीक से याद नहीं हैं क्षमा प्रार्थी हूँ . उस समय हमारी सजल आँखों के साथ साथ शायद हमारे कान भी बंद हो गये थे )

आइये आपको अपनी वह रचना बताऊँ जिसक़ी ओर गुरुदेव डॉक्टर विश्वमित्रजी महाराज का  इशारा था !

गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ , ऎसी सुमति हमे दो दाता !!
(स्वामीजी महराज के शब्दों में हमारा एकमात्र हितकारी शुभचिंतक "दाता" "राम" है)

इस  भजन  को  सुनने  के लिए आप श्री राम शरणम् के ऑडियो डाउनलोड पेज  से "गुरु चरनन में ध्यान लगाऊं" लिंक को क्लिक करें . 
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गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ , ऎसी सुमति हमे दो दाता 

मैं अधमाधम , पतित पुरातन , किस विधि भव सागर तर पाऊँ 
ऎसी दृष्टि हमे दो दाता , खेवन हार गुरू को पाऊँ
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ

गुरुपद नख की दिव्य ज्योति से, अपने मन का तिमिर मिटाऊँ 
गुरु पद पद्म पराग कणों से , अपना मन निर्मल कर पाऊँ 
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ

शंख नाद सुन जीवन रण का , धर्म युद्ध में मैं लग जाऊं ,
गुरु पद रज अंजन आँखिन भर ,विश्व रूप हरि को लाख पाऊँ ,
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ

भटके नहीं कहीं मन मेरा , आँख मूँद जब गुरु को ध्याऊँ,
पीत गुलाबी शिशु से कोमल, गुरु के चरण कमल लख पाऊँ 
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ

"भोला"
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प्रियजन इस रचना की अंतिम पंक्ति   :
"पीत गुलाबी शिशु से कोमल, गुरु के चरण कमल लख पाऊँ "
से सम्बंधित अनुभव मैंने गुरुदेव श्री विश्वामित्र जी महाराज को बताया था !
 आइये आज आपको भी बता दूँ :

१९५९ में श्री स्वामी जी महाराज से ग्वालियर (मुरार) में डॉक्टर बेरी के पूजा गृह में अकेले ही नाम दीक्षा प्राप्त करते समय मैं एक अज्ञानी व अबोध नवयुवक इतना भयभीत और  नर्वस था कि जमीन पर दुसरे आसन पर ठीक मेरे सामने बैठे श्री स्वामी जी महाराज की ओर देखने का साहस मुझमे नहीं था ! मेरी आँखें बंद हो रहीं थीं और जब पल दो पल को खुलती थीं तो मुझे केवल स्वामी जी के दो चरण ही नजर आते थे , जिनका चित्रण मैंने अपनी रचना की उपरोक्त पंक्ति में किया है ! 

प्रियजन, मेरे लिए तो श्री स्वामी जी के वे दोनों चरण ही मार्गदर्शक हैं!, 

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निवेदक :  व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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गुरुवार, 16 जून 2011

गुरू आज्ञा में निश दिन रहिए # 3 8 6

                                               जो गुरु चाहे  सोई सोई  करिए 


प्रियजन, अकारण ही गुरु को "गुरुर्ब्रह्मा '' नहीं कहां जाता ! गुरु साक्षात् ब्रह्मा के स्वरूप होते हैं ! गुरुजन साधकों पर भविष्य में आने वाले संकट को पहले से ही जान जाते हैं और 
उन्हें सावधान करते रहते  हैं और वह समय आने पर शिष्य की रक्षा क़ी भी पूरी व्यवस्था कर देते हैं ! अब आगे का वृतांत सुनिए :

सन २००५ में जब मैं भारत से बोस्टन लौटने के पहले गुरुदेव पूज्यनीय डोक्टर विशवमित्र जी महाजन का आशीर्वाद लेने श्री राम शरणम् गया तब भेंट हो जाने के बाद महाराज जी मुझे आश्रम के मुख्य द्वार तक स्वयम पहूँचाने आये ! यह ही नहीं,अपितु उन्होंने  इशारे से वाचमेंन को पास बुलाकर दूर खड़ी मेरी गाड़ी को आश्रम के द्वार पर लगवाने का आदेश दिया और जब तक गाड़ी नही आई, महाराजजी वहीं खड़े रहे !  मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं  हुआ था, मेरे जैसे साधारण साधक को श्री महराज जी ने इतना स्नेह और सम्मान दिया ! आज भी उस समय क़ी अपनी  विदाई क़ी याद आते ही  मेरा मन गद गद हो रहा है ! मैं कितना भग्यशाली हूँ ? अपने मुख से बखानना अच्छा नहीं लगता  ! फाटक तक ही नहीं अपितु गाड़ी तक आकर  महाराज जी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझसे कहा "श्रीवास्तव जी अपनी सेहत का ख्याल रखियेगा !"

अब सुनिए प्रियजन,यहाँ बोस्टन पहुंचते ही मुझे मेरे जीवन का पहला हार्ट अटेक हुआ ,दो बार एन्जिओप्लस्टी हुई , तीन "स्टंट " लगे !  जीवन रक्षा हुई , प्रभु की अपार कृपा का दर्शन हुआ ! गुरुदेव श्री विश्वमित्र जी द्वारा चलते समय दिया हुआ अपने स्वास्थ के प्रति सावधानी बरतने के सुझाव का महत्व सहसा समझ में आ गया ! 

महाराज जी का मुझ जैसे साधारण प्राणी के प्रति इतना स्नेह उनके हृदय क़ी विशालता तथा मानवता के प्रति उनके अथाह प्रेम तथा जन-कल्याण क़ी चिंता एवं  उनकी सेवा भावना की और प्रतिलक्षित करता है !

प्रियजन ,सद्गुरु स्वभावतः साधकों पर अहेतुकी कृपा करते हैं ! किस भाव से और कैसे वह  कृपा कर देते हैं , यह समझना मानवीय बुद्धि से परे है ! सद्गुरु स्वामी जी महाराज की वाणी में ही मैं अपने मनोभाव प्रस्तुत कर रहा हूँ 

गुरुवर  
तेरे गुण उपकार का पा सकूं नहीं पार !
राम राम कृतग्य हो करे सो धन्य पुकार !

महाराज जी ने  मेरी आध्यात्मिक प्रगति के लिए अपना वरदहस्त सदैव  मेरे मस्तक  पर रक्खा और मुझे बारम्बार अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने का सुझाव दिया ! हमारे गुरुजन का कथन है कि प्रभु क़ी असीम कृपा से प्राप्त इस मानव शरीर को स्वस्थ रखना भी पूजा ही है , निरंतर भजन गा कर अपने प्यारे प्रभु को रिझा सकने के लिए हमारा स्वस्थ रहना अति आवश्यक है !

एक रविवार को आदरणीय महराज जी ने मुझे मेरे गुरु शीर्षक भजनों में गुरु चरण कमलों का उल्लेख पढ़ कर मुझे एक अनमोल उपहार दिया ! वह था स्वामीजी महाराज के चरण कमलों का एक चित्र ! प्रियजन वह चित्र हमारे USA  के निवास में वैसे ही स्थापित है जैसे नंदी ग्राम में भैया राम क़ी चरनपादुका भरत जी ने स्थापित कर रखी थी ,उनके जीवन के एक मात्र अवलम्बन के रूप में !

महाराज जी क़ी एक अन्य कृपा का द्रष्टान्त सुना दूँ :

जब जंब हम दोनो (कृष्णाजी और मैं) USA से नयी दिल्ली जाते हैं  हम प्रत्येक रविवार को गुरुदेव श्री विश्वमित्र जी महाराज के दर्शनार्थ श्री रामशरणम लाजपतनगर जाने का  प्रयास अवश्य करते हैं ! वहाँ सत्संग में मैं भजन भी गाता हूँ ! २००८   की बात है ,भजन गाते हुए बीच में खांसी आ जाने के कारण मुझे कई बार रुकना पड़ा ! परम कृपालु श्री महाराज जी मेरी दशा निकट से देख रहे थे ! एक रविवार महराज जी ने मेरी पत्नी  कृष्णा जी से कहा कि वह मुझे शीघ्रातिशीघ्र अमेरिका वापस ले जाएँ वहीं मेरा स्वास्थ्य ठीक रहेगा !उनका यह विचार था कि भारत के प्रदूषन भरे वातावरण में मेरे स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं होगा ,उल्टा वह अधिक बिगड़ ही सकता है ! मैंने अति दुखी हो कर पूछा कि "महाराज जी मुझे क्यों अपने से दूर करना चाहते हैं ?" ! महाराजजी बोले "आप नहीं आ पाओगे तो हम वहां आकर आपसे मिल लिया करेंगे,वहीं आपके भजन भी सुनेंगे" 

महाराज जी के स्नेहिल आदेश का पालन हम तत्काल नहीं कर सके ,कुछ मजबूरियां थीं ! 
रिटर्न एयर टिकट में यात्रा की तिथि बदलने का प्रावधान ही नहीं था ! हम दोनों को वापसी के दो नये टिकट लेने पड़ते, जो उस समय हमे कठिन लग रहा था ! अस्तु हमने महाराज 
जी के आदेश का मजबूरन उल्लंघन किया !

अब देखिये कि महाराजजी का आदेश न मानने का क्या परिणाम हुआ :

शीतल प्रदूशण मुक्त प्रकृति का आनंद लूटने तथा स्वास्थ्य -लाभ एवं एकांत में सत्संग का लाभ उठाने के विचार से हम दोनों कुछ दिनों के लिए ऋषिकेश के वानप्रस्थ आश्रम गये ! माँ गंगा के सुरम्य तट पर ,आवश्यक आधुनिक सुविधाओं से युक्त इस आश्रम में हम कुछ दिवस ही रहे ! पर बजाय सुधरने के सभी सावधानी बरतने के बाबजूद भी मेरा स्वास्थ्य दिन पर दिन बिगड़ता  गया !जो  कष्ट नोयडा में नहीं थे , ऋषिकेश में उभर कर सामने आ गये !

हम ऋषिकेश यह सोच कर गये थे कि वहाँ के सेनिटोरियम जैसे स्वास्थ्यवर्धक मौसम का आनंद लूटेंगे और प्रातः से शाम तक वहाँ के वायु मंडल में तरंगित भजन कीर्तन धुनें तथा संत महात्माओं के प्रवचनों से नवजीवन प्राप्त करेंगे ! पर हुआ उल्टा ही ! मुझे क्रिटिकल स्टेट में लाद -लूद कर ऋषिकेश से नोयडा वापस लाया गया !मुझे वहां के मेट्रो हॉस्पिटल में भर्ती किया गया जहाँ मैं लगभग ३ सप्ताह तक, कोमा में पड़ा हुआ , बेबस जीवन मरण के बीच झूलता रहा ! अन्ततोगत्वा ,किसी तरह मुझे "खड़ा करके" ( जी हाँ प्रियजन दिल्ली के स्पेसिअलिस्ट डोक्टर जो हावर्ड मेडिकल स्कूल से प्रशिक्षित थे उन्होंने  मुझसे यही कहा था "अंकल हमने आपको खड़ा कर दिया अब आप जल्दी अमेरिका लौट जाएँ आपका उचित इलाज वहीं हो सकेगा " 

प्रियजन ,महाराज जी ने जो बात ३ महीने पहले कही थी ( जिसे न मान कर हम भारत में रुके रहे और फलस्वरूप इतने कष्ट सहन किये) वह अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई ! यही नहीं , पिछले तीन वर्ष में मैं  भारत नहीं जा सका हूँ लेकिन महाराज जी के कथनानुसार हमें श्री महाराज जी के सुदर्शन स्वरूप के मधुर दर्शन का सौभाग्य यहाँ USA में ही ,सेलुस्बुर्ग के दोनो साधना सत्संगों में प्राप्त हुआ और श्री महाराजजी को भजन सुनाने क़ी मेरी हार्दिक इच्छा क़ी पूर्ति भी हुई तथा इस प्रकार परम पुरुष श्री राम के श्री चरणों पर अपने भजनों के पत्र पुष्प अर्पित करने का सौभाग्य भी मुझे मिला !

इन दोनों सत्संगों  में मुझे जितना आनंद प्राप्त हुआ उसको वाणी से या शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए असम्भव हैं फिर भी ब्लॉग के माध्यम से ,मैं उस आनन्द को आप सबके साथ बाँटने का प्रयास कर रहा हूँ  !

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क्रमशः 
निवेदक: व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
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