सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

दैनिक प्रार्थना- विजय दशमी

जय श्री राम
विजय दशमी की हार्दिक बधाई
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श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताये
तीन प्रकार के "कर्म" और "कर्ता'
"सात्विक , राजस , तामस"
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फल की आशा त्याग कर,बिना किसी राग द्वेष के , असंग हो कर किये गए नियमित सभी कर्म "सात्विक" कहे जाते हैं !! जो कर्म अहंकार बुद्धि से , फल की आश लगा कर, अधिक परिश्रम से किये जाते हैं , वे "राजस कर्म " है !! अज्ञानता से किये हुए कर्म , जिन्हें करते समय हानि लाभ, पौरुष, परिणाम तथा हिंसा का विचार न हो उसे "तामस कर्म" कहते हैं !

जो धीरजवान व्यक्ति , उत्साह से , बिना किसी लाग लगाव के , सिद्धि असिद्धि के विकारों से मुक्त हो कर अपने सभी कर्म करता है वह "सात्विक कर्ता" कहा गया है !! वह कर्ता जो विषयी हो, लोभी हो तथा हर्ष विषाद की मलिन भावनाओं से युक्त हो और कर्म करते समय फल प्राप्ति की कामना में लींन रहे उसे "राजस कर्ता" कहा गया है !! जो कर्ता स्वभाव से ही आलसी ,शठ , विषादी , घमंडी, लम्बी हांकने वाला , हिंसक प्रवृत्ति का हो , अशिक्षित और अविवेकी हो ,वह "तामसी" कह्लाता है !

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विजय रथ


विजयदशमी का यह गौरवपूर्ण पर्व , सात्विक=दैवी-शक्ति के हाथों तामसी-आसुरी- शक्ति की पराजय का एक जीवंत कथानक है ! नंगे पाँव बनवासी राम ने रथारूढ़ लंकापति रावण को पराजित कर के यह साबित कर दिया कि छोटी से छोटी दिखने वाली , दैवी शक्ति भी बड़ी से बड़ी आसुरी शक्ति को बात ही बात में पराजित कर सकती है !

राम चरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री राम की वाणी से ऐसे धर्ममय "विजय रथ" के गुणों की उद्घोषणा करवाई है जिस पर सवार हो कर एक साधारण पैदल सिपाही बड़े बड़े अभेद सैन्य उपकरणों से सुसज्जित ,अजेय रिपुओं को भी पराजित कर सकता है !

श्री राम ने बताया कि " इस धर्म मय ,विजय रथ के पहिये हैं -शौर्य और धैर्य ; ध्वजा पताका हैं सत्य और शील ! इस रथ के घोड़े हैं : बल , विवेक , इन्द्रीय दमन और परोपकार - इन घोड़ों को क्षमा , दया और समता रूपी डोरी से जोडा गया है ! ईश्वर का भजन इस रथ का सारथी है ! वैराग्य उसकी ढाल है और संतोष तलवार है ; दान फरसा है, बुद्धि शक्ति है तथा विज्ञानं धनुष है ; निर्मल मन तरकस है जिस में संयम , अहिंसा ,पवित्रता के वाण पड़े हैं !सद्गुरु का आधार कवच है ! श्री राम ने अंततः कहा कि जिस वीर के पास इन दिव्य सनातन जीवन मूल्यों से लैस रथ है , उसे कोई सांसारिक शत्रु परास्त नहीं कर सकता !"


मानस में तुलसीदास जी ने निम्नांकित पदों में उपरोक्त सन्देश दिया है :


विजय रथ के इस विवरण को "भोला" की भोजपुरी धुन में सुनिए !

पुनः
प्यारे स्वजनों , अतिशय प्रिय ब्लोगर बंधुओं
राम राम
विजय दशमी के शुभ अवसर पर हमारी हार्दिक बधाई स्वीकार करें
प्यारे प्रभु की असीम कृपा आप पर सदा सर्वदा बनी रहे
आप धर्ममय विजय रथ पर आरूढ़ हो सफलता के उच्चतम शिखर चढ़ लें !
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क्रमशः
निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा जी तथा रानी बेटी श्री देवी (चेन्न्यी)
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दैनिक प्रार्थना (नव रात्रि))

श्रीमदभगवत गीता में निरूपित "देवता तथा असुर" के लक्षण
तथा
रामचरित मानस से , मानव के लिए निर्धारित "सद्नीति"
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श्रीमदभगवद गीता में श्रीकृष्ण ने दैवी सम्पदा युक्त सत्व गुणी मानव को उनके सत्कर्मों के कारण "देव" की संज्ञा दी है और आसुरी सम्पदा युक्त तमोगुणी मानव को उनके दुष्कर्मों के कारण "असुर" कह कर संबोधित किया है !


श्रीमद भगवत गीता के उपरोक्त श्लोकों का रानीबेटी प्रार्थना तथा पुत्र माधव द्वारा पाठ



श्रीमदभगवत गीता के उपरोक्त श्लोकों का भावार्थ

निर्भयता , अन्तःकरण की शुद्धि ,ज्ञान और योग में स्थिति ,सात्विक दान , इन्द्रिय-दमन, यज्ञ ,स्वाध्याय , तप, सरलता , अहिंसा , सत्य , अक्रोध , त्याग ,शांति ,अपैशुन ,भूतों में दया भाव ,लोभ् - लालसा रहित होना , कोमलता ,लज्जा , अचंचलता , तेज , क्षमा, धैर्य , पवित्रता , द्रोह न करना , अभिमानी न होना; ये गुण जिस मानव के आचार -व्यवहार में पाए जाते हैं ,वे देवता की श्रेणी में आते हैं !अज्ञानी होकर , दम्भ -दिखावा करना , घमंड और अभिमान करना , अकारण क्रोध करना , तथा अतिशय कठोर स्वभाव का होना आदि अवगुण से भरपूर मानव असुर की श्रेणी में आते हैं ! काम, क्रोध और लोभ ही नरक के तीन दरवाजे हैं ;जो आत्मा का नाश करने वाले हैं ! अस्तु विवेकी व्यक्ति को इन तीनों को छोड़ देना चाहिए !(अ - ६, श.२१)!

स्वार्थ की सिद्धि में बाधा आने पर ,आपसी कलह और क्लेश होने पर क्रोध आता है , क्रोध के आवेश में मनुष्य को उचित अनुचित कर्तव्य -कर्म का विचार नहीं रहता ! ऐसे अविवेक से उसकी स्मृति भ्रष्ट हो जाती है और उसकी बुद्धि का नाश हो जाता है, और अंत में उसकी आत्मा का उत्थान नहीं हो पाता इसलिए यह त्याज्य है अ-२,श ६३) !!

जिस मनुष्य ने शरीर छोड़ने से पहले (मृत्यु से पूर्व) ही कामना और क्रोध से उत्पन्न वेग को सहन कर लिया ,जो तृष्णा और वैर के वशीभूत नहीं हुआ ,वह योगी पुरुष ही वास्तव में सुखी है !(अ-५ श.२३)

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मानस में परिलक्षित मानवता के लिए अनुकरणीय नीति
रामचरितमानस में दैवी गुणों की सम्पदा प्राप्त करने के लिए कुछ नीतिप्रद सूत्रों का निरूपण
इन पदों में हुआ है :---

मानस के उपरोक्त प्रसंग का "भोला" द्वारा नवरात्रि में सस्वर गायन


मानस के उपरोक्त अंश का भावार्थ

ग्रह-नक्षत्र ,औषधियां, जल, पवन आदि शक्तिशाली विभूतियाँ भी सूक्ष्म से सूक्ष्म कुयोग से बिगड़ जाती हैं तथा सुयोग से संवर जाती हैं ! कुलक्षण व्यक्तियों के संग से सुवस्तु भी बिगड कर कुवस्तु बन जाती है ! अस्तु विचारशील सात्विक व्यक्ति को कुमित्रों का परित्याग करना और सद्गुणी मित्रों का संग करना चाहिए !

सरल स्वभाव,निर्मल चित्त ,संतोष,निर्बैर, राग द्वेष रहित हो,सुख -दुःख में सम-व्यवहार करना ,मीठी वाणी बोलना आदि गुणों को जो मानव जीवन में चरितार्थ कर लेता है ;वह दैवी गुणों की सम्पदा पा लेता है !इसके लिए सदनीति है कि "कुपंथ पर मत चलो अपितु श्रेष्ठ महापुरुषों के द्वारा दिखाई राह पर चलो ! ऐसे कुमित्र का परित्याग करो जो धर्म और सत्य की राह पर चलने में बाधा उपस्थित करे! अपने सामर्थ्य के अनुसार सबकी सेवा करो ! किसी से द्रोह करना ,पराई स्त्री और पराये धन पर अपना अधिकार जमा कर उसे हड़प लेना , दुसरे की निंदा करना आदि त्यागने योग्य दुष्कर्म है ! ऐसे दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों को मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने राक्षस अर्थात असुर की संज्ञा दी है !
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क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा जी , श्रीदेवी (चेन्न्यी) ,प्रार्थना (दिल्ली) ,माधव (हंगरी)
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