शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते
नवरात्रि - नौ देवियों की आराधना
नारायणी -"लक्ष्मी माता" के "शरण" की अपेक्षा
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कल "धनतेरस' की रात जब सोने चला उस समय भारत से प्रसारित सभी टेलीविजंन चेनलों पर दीप लड़ियों से जगमगाती भारतीय बाजारों की चमक दमक विशेषकर सोने चांदी के सिक्कों और आभूषणों के खरीदारों से खचाखच भरे बाज़ारों में चमचमाते जौहरियों के शो रूम देख कर आँखें चकाचौधिया गयीं !
इस विचार से कि आज धनतेरस के दिन , न तो हम् दोंनों ने , न हमारी जानकारी में हमारी यहाँ ,'यू . एस' वाली बहुओ ने ही लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने के लिए कोई ऐसी खरीदारी करी ,मैं इस सोच में पड़ गया कि " क्या हम सब इस प्रकार "लक्ष्मीमैया" को रुष्ट करके 'पाप' के भागी नहीं बन रहे हैं ? क्या आज यह भयंकर भूल करके हम दोनों ने अपने तथा अपने बच्चों के भौतिक - दुनियावी तरक्की के दरवाजे ,अगले पूरे वर्ष के लिए बंद तो नहीं कर दिए ?
!! श्री महाललक्षम्याष्टकम् !!
नमोस्तेsस्तु महामाये श्रीपीठे सुर पूजिते !
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुर भयंकरि !
सर्व पाप हरे देवि महा लक्ष्मी नमोस्तु ते !!
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( बीच के श्लोक फिर कभी )
महालक्ष्यअष्टकम स्त्रोतं य: पठेदुभक्तिमान्नर !
सर्वसिद्धमवाप्नोति राज्यम प्राप्नोति सर्वदा !!
भावार्थ
महालक्ष्मी जी की आठ पदों वाली यह स्तुति जो कोई साधक भक्ति सहित पढे अथवा लिखे ( जिसका सौभाग्य मुझे आज मैया की ही कृपा से मिला ) वह आठों सिद्धियों की प्राप्ति का अधिकारी बन जायेगा और उसे सब सांसारिक सम्पदा सहज में ही मिल जायेगी )
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उपरोक्त संस्कृत के श्लोकों में रचित लक्ष्मी माता की वन्दना के अतिरिक्त भारत की अन्य जन भाषाओँ में भी , "लक्ष्मी माता" की अनेकों पारंपरिक 'आरतियाँ' विश्व भर में प्रचलित हैं, परन्तु उन सब रचनाओं का भी भावार्थ उपरोक्त वन्दना के समान ही है ! यहाँ केवल एक आरती के ही कुछ अंश दे रहा हूँ :
लक्ष्मी जी की आरती
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ओम जय लक्ष्मी माता ,ओम जय लक्ष्मी माता
तुमको निसिदिन सेवत हर विष्णू धाता !!
ब्रह्माणी , रुद्राणी ,कमला तुम ही जग माता !
सूर्य - चन्द्रमा ध्यावत ,नारद ऋषि गाता !!
(बीच की अनेक चौपाइयां फिर कभी)
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि पाता !
रत्न चतुर्दिश तुम बिन कोई नहीं पाता !!
महालक्ष्मी जी की आरती , जो कोई नर गाता !
उर आनद समाता , पाप उतर जाता !!
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आज सबेरे सबेरे क्यों आई याद लक्ष्मी जी की ? कहीं रात के सपने में भी तो मुझे वे चमकते हुए स्वर्ण के आभूषण नहीं दिखे ? कहीं मैं रातोरात भारत पहुच कर टहलते टहलते "गौतम या "नानावती ,"भगतराम" अथवा "गुप्ता" अथवा केवल "राम" ज्वेलर्स के शो रूम में तो नहीं भटक गया ? या यहीं अमेरिका में "शेनेल" या "क्रिश्चन डॉयर" के परफ्यूम से गमकते किसी "माल" के ज्वेलरी आउटलेट में अकारण ही दाखिल हो गया ?
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था !
हुआ ऐसा कि यहाँ की ठंढक में आलस और शारीरिक कमजोरियों के कारण मुझे देर तक सोने की इजाजत है , सो मैं सबेरे आठ बजे से पहले उठ ही नहीं पाता हूँ ! इस बीच धर्मपत्नी एवं सहधर्मिणी कृष्णा जी नहा धो कर , हम् दोनों की तरफ से ,सम्पूर्ण परिवार के कल्याणार्थ देवी देवताओं को मनाने का अपना दैनिक नियम निभा लेती हैं !
सो आज जब मैं उठा उस समय मेरे कानों में कृष्णा जी के स्वर में "लक्ष्मीमैया" की उपरोक्त वन्दना और आरती पड़ी और ऐसा लगा जैसे पर्दे के पीछे से उस ऊपर वाले ने मेरे कानों में मेरे आज के ब्लॉग के लिए "शरणागति" का यह विशेष विषय "प्रोम्प्ट" कर दिया !
(शेष कल)
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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