प्रेम प्रीति को बांध घूँघरू प्रियतम आगे नाचो रे .
आनंदित मन सजल नयन से पाओ दर्शन वाको रे ..
प्रेम ही इस जगत का आधार है . प्रेम मानवता की मौलिक मांग है. इस सृष्टि का बीजतत्व प्रेम है. भगवान् श्री राम को केवल प्रेम और प्रेमी ही प्रिय हैं. तुलसी ने उद्घोषित किया है "राम ही केवल प्रेम पियारा" जहाँ कहीं भी प्रेम -होगा हमारे प्रभु वहां होंगे ही होंगे. प्रेम से उनको जिस किसी ने , जहां कहीं से-- राज प्रासादों से, ऋषि मुनिओं के आश्रमों से ,भिलिनी शबरी की कुटिया से अथवा आदिवासियों और पिछड़ी जाति वालों की झुग्गी झोपरियों से अथवा केवट की काठ की "पात भरी सहरी" से अश्रु पूरित नैनो और गद गद कंठ से पुकारा, हमारे प्यारे प्रभु , नंगे पाँव वहां पहुँच गए . और भक्तों का उद्धार कर दिया.
हमारे सौभाग्य से कलि युग में, विधि ने हमारे लिए प्रभु मिलन का मार्ग इतना सुगम कर दिया है, हम तो केवल प्रेम से उन्हें पुकारे , वह तुरंत दर्शन देंगे .प्रियजन हमें नाम की अखंड ज्योति जगानी है जन-मन में और प्रेम की गंगा बहानी है.
"राम नाम मणि दीप धरु जीहँ देहरी द्वार
तुलसी भीतर बाहरहु जो चाहसि उजियार"
नाम दीप के प्रकाश में,नाचते नाचते अपने इष्ट को रिझाइए और उनके परमानन्द स्वरुप का दर्शन करिये.
निवेदक :व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
1 टिप्पणी:
प्रेम ही ईस्वर है प्रीती उपासना
आपने अतिसुन्दर वर्णन किया है
जय सियाराम
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