प्रगटे हैं रघुराई अवध में बाजे गजब बधाई
डगर डगर में नौबत बाजे औ बाजे शहनाई
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बधैया बाजे आंगने में , बधैया बाजे , बधैया बाजे
बधैया बाजे आंगने में
राम लखन शत्रुघ्न भरत जी झूलें कंचन पालने में
बधैया बाजे
बधैया बाजे
प्रेममुदित मन तीनों रानी सगुन मनावें मन हि मन में
बधैया बाजे
राजा दसरथ रतन लूटावें ,लाजे ना कोऊ मांगने में
बधैया बाजे
राम जन्म को कौतुक देखत बहु दिन बीते जागने में
बधैया बाजे आंगने में
कोसलपुर के सब नर नारी , राग द्वेष मत भेद बिसारी
भांति भांति के साज सवाँरी , नाचें घर घर आंगने में
बधैया बाजे आंगने में
"भोला"
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मेरे परम प्रिय पाठकगण , मैं जानता हूँ , आप मेरे कथन पर विश्वास करते हैं इसलिए आप को बता रहा हूँ -आज प्रात: से ही आपके इस बुज़ुर्ग स्नेही स्वजन के हृदय में एक अति विचित्र आनंद की अनुभूति हो रही है ! शब्दों के कलेवर में उस आनंद को अंकित कर पाना , मुझे असंभव लग रहा है ! सच तो यह है कि मैं स्वयम भी ये समझ नहीं पा रहा हूँ कि सहसा यह आनंदघन मेरे मन के शुष्क आंगन में क्यों और कैसे बरस पड़े हैं ?
क्या इस लिए कि हजारों वर्ष पूर्व आज के दिन अवध में राम आये थे ? यदि हाँ , तो उन श्रीराम के अवतरण से सर्वत्र इतना हर्षोल्लास क्यों ?
कौन हैं ये श्रीरामजी ! त्रेता युग में जिनके आगमन पर ,सूर्यदेव के अश्व भी ठिठक कर खड़े हो गये थे ; महीने भर तक रात्रि नहीं हुई थी ! कोशलेश दसरथ को वृद्धावस्था में एक साथ चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी , उनके साम्राज्य भर में "घर घर मंगल" बधावे बजे ,दीप जले ,नाच गाने हुए, न्योछावर की लूट हुई , उनका आनंदित होना स्वाभाविक था ; पर आजकल के घोर कलियुग में ,हम और आप, उनके अवतरण के हज़ारों वर्ष बाद भी इतने प्रसन्न और प्रफुल्लित क्यों हो रहे हैं ?
!! राम जन्म जग मंगल हेतू !!
हमारे प्रश्नं का उत्तर रामचरितमानस की निम्नांकित चौपाई में भली भांति व्यक्त है जिसमे गोस्वामी तुलसीदास ने राम जन्म का प्रयोजन बताया है
सत्यसंध पालक श्रुति सेतू ! रामजन्म जग मंगल हेतू !!
हेतु-"जगमंगल" तो निश्चित हुआ ,
पर राम जन्म से उस हेतु की प्राप्ति कैसे होगी ?
"जग मंगल" होगा कैसे ?
श्रीराम ने अपने स्वभाव ,आचार विचार और व्यवहार में ,अपनी रहनी सहनी करनी और कथनी में ,सत्य ,प्रेम ,समता ,दया ,सेवा ,मर्यादा ,नीति ,कर्तव्य-निष्ठा जैसे सर्वकालिक एवं सार्वभौमिक जीवन मूल्यों का पालन करके दिखाया ! उनका स्वभाव ही था --
कोमल चित अति दीन दयाला ! कारन बिनु रघुनाथ कृपाला !!
को रघुबीर सरिस संसारा ! सील सनेहू निबाहन हारा !!
करुनामय रघुनाथ गुसाईं ! बेगि पाइअहिं पीर पराईं !!
रहति न प्रभु चित चूक कियेकी !करत सुरत सयबार हिये की !!
राम सदा सेवक रूचि राखी ! बेद पुरान साधु सुर साखी !!
सुनहु बिभीषन प्रभु के रीती !करहिं सदा सेवक सन प्रीती !!
यह न अधिक रघुबीर बडाई ! प्रनत कुटुंब पाल रघुराई !!
स्वयम मानव धर्म की मर्यादाओं का पालन करके राम ने अपने मानव स्वरुप में केवल अपने युग के प्राणियों का ही मार्ग दर्शन नहीं किया बल्कि उन्होंने भविष्य में आने वाले सब युगों के जीव् धारियों के लिए मंगलमय कल्याण की राह भी प्रशस्त कर दी !
स्वभाववश स्वधर्म का पालन करते हुए जीवन में पड़ी कठिन से कठिन समस्या को सहजता से हल करके श्रीराम ने अपने आचरण द्वारा मानवता के आगे ऐसे आदर्श पेश किये ,जिसका पालन और अनुकरण करने वालों का मंगल सुनिश्चित है !
हम इतने सौभाग्यशाली कहाँ हैं कि आज राम नवमी के दिन हमारे सन्मुख दसरथ नंदन मर्यादापुरुषोत्तम राम का अवतरण हो ! गुरुजन ने बताया है कि आज के दिन यदि हम उनका स्मरण करते हुए अपने दैनिक जीवन में ,चिन्तन में तथा चरित्र में "श्री राम" की मर्यादाएं उनके सद्गुण तथा उनका स्वभाव अवतरित कर सकें तो हमारा मानव जन्म धन्य हो जायेगा !
मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों का अनुकरण करने वालों को कैसे दुःख कैसी पीडाएं ? ऐसे जन सर्वदा चिंतामुक्त ,प्रसन्न और प्रफुल्लित रहते हैं ! उनका जीवन सदा परमानंद से भरपूर रहता हैं ! उनके जीवन का प्रत्येक दिवस उनके लिए "राम नवमी" का पर्व है !
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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2 टिप्पणियां:
श्रीमती कृष्ण जी और भोला जी ,
राम जन्म का सुन्दर वर्णन है ...यदि हम श्री राम के जीवन को अपना लें तो कैसी पीड़ा ...बहुत सार्थक सन्देश
आभार आपका कि आप मेरे ब्लॉग पर आए ...कभी मेरे दूसरे ब्लॉग पर भी दर्शन दें --
http://geet7553.blogspot.com/
काका और काकी जी को सतुवान की शुभ कामनाये ! बैशाखी की शुभेक्षा ! राम माय होना ..सफलता के धोत्तक है ! बहुत ही शिक्षाप्रद रचना ! पढ़ कर शांति अनुभव होता है !फिर से एक बार प्रणाम !
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