गुरुवार, 16 जून 2011

गुरू आज्ञा में निश दिन रहिए # 3 8 6

                                               जो गुरु चाहे  सोई सोई  करिए 


प्रियजन, अकारण ही गुरु को "गुरुर्ब्रह्मा '' नहीं कहां जाता ! गुरु साक्षात् ब्रह्मा के स्वरूप होते हैं ! गुरुजन साधकों पर भविष्य में आने वाले संकट को पहले से ही जान जाते हैं और 
उन्हें सावधान करते रहते  हैं और वह समय आने पर शिष्य की रक्षा क़ी भी पूरी व्यवस्था कर देते हैं ! अब आगे का वृतांत सुनिए :

सन २००५ में जब मैं भारत से बोस्टन लौटने के पहले गुरुदेव पूज्यनीय डोक्टर विशवमित्र जी महाजन का आशीर्वाद लेने श्री राम शरणम् गया तब भेंट हो जाने के बाद महाराज जी मुझे आश्रम के मुख्य द्वार तक स्वयम पहूँचाने आये ! यह ही नहीं,अपितु उन्होंने  इशारे से वाचमेंन को पास बुलाकर दूर खड़ी मेरी गाड़ी को आश्रम के द्वार पर लगवाने का आदेश दिया और जब तक गाड़ी नही आई, महाराजजी वहीं खड़े रहे !  मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं  हुआ था, मेरे जैसे साधारण साधक को श्री महराज जी ने इतना स्नेह और सम्मान दिया ! आज भी उस समय क़ी अपनी  विदाई क़ी याद आते ही  मेरा मन गद गद हो रहा है ! मैं कितना भग्यशाली हूँ ? अपने मुख से बखानना अच्छा नहीं लगता  ! फाटक तक ही नहीं अपितु गाड़ी तक आकर  महाराज जी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझसे कहा "श्रीवास्तव जी अपनी सेहत का ख्याल रखियेगा !"

अब सुनिए प्रियजन,यहाँ बोस्टन पहुंचते ही मुझे मेरे जीवन का पहला हार्ट अटेक हुआ ,दो बार एन्जिओप्लस्टी हुई , तीन "स्टंट " लगे !  जीवन रक्षा हुई , प्रभु की अपार कृपा का दर्शन हुआ ! गुरुदेव श्री विश्वमित्र जी द्वारा चलते समय दिया हुआ अपने स्वास्थ के प्रति सावधानी बरतने के सुझाव का महत्व सहसा समझ में आ गया ! 

महाराज जी का मुझ जैसे साधारण प्राणी के प्रति इतना स्नेह उनके हृदय क़ी विशालता तथा मानवता के प्रति उनके अथाह प्रेम तथा जन-कल्याण क़ी चिंता एवं  उनकी सेवा भावना की और प्रतिलक्षित करता है !

प्रियजन ,सद्गुरु स्वभावतः साधकों पर अहेतुकी कृपा करते हैं ! किस भाव से और कैसे वह  कृपा कर देते हैं , यह समझना मानवीय बुद्धि से परे है ! सद्गुरु स्वामी जी महाराज की वाणी में ही मैं अपने मनोभाव प्रस्तुत कर रहा हूँ 

गुरुवर  
तेरे गुण उपकार का पा सकूं नहीं पार !
राम राम कृतग्य हो करे सो धन्य पुकार !

महाराज जी ने  मेरी आध्यात्मिक प्रगति के लिए अपना वरदहस्त सदैव  मेरे मस्तक  पर रक्खा और मुझे बारम्बार अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने का सुझाव दिया ! हमारे गुरुजन का कथन है कि प्रभु क़ी असीम कृपा से प्राप्त इस मानव शरीर को स्वस्थ रखना भी पूजा ही है , निरंतर भजन गा कर अपने प्यारे प्रभु को रिझा सकने के लिए हमारा स्वस्थ रहना अति आवश्यक है !

एक रविवार को आदरणीय महराज जी ने मुझे मेरे गुरु शीर्षक भजनों में गुरु चरण कमलों का उल्लेख पढ़ कर मुझे एक अनमोल उपहार दिया ! वह था स्वामीजी महाराज के चरण कमलों का एक चित्र ! प्रियजन वह चित्र हमारे USA  के निवास में वैसे ही स्थापित है जैसे नंदी ग्राम में भैया राम क़ी चरनपादुका भरत जी ने स्थापित कर रखी थी ,उनके जीवन के एक मात्र अवलम्बन के रूप में !

महाराज जी क़ी एक अन्य कृपा का द्रष्टान्त सुना दूँ :

जब जंब हम दोनो (कृष्णाजी और मैं) USA से नयी दिल्ली जाते हैं  हम प्रत्येक रविवार को गुरुदेव श्री विश्वमित्र जी महाराज के दर्शनार्थ श्री रामशरणम लाजपतनगर जाने का  प्रयास अवश्य करते हैं ! वहाँ सत्संग में मैं भजन भी गाता हूँ ! २००८   की बात है ,भजन गाते हुए बीच में खांसी आ जाने के कारण मुझे कई बार रुकना पड़ा ! परम कृपालु श्री महाराज जी मेरी दशा निकट से देख रहे थे ! एक रविवार महराज जी ने मेरी पत्नी  कृष्णा जी से कहा कि वह मुझे शीघ्रातिशीघ्र अमेरिका वापस ले जाएँ वहीं मेरा स्वास्थ्य ठीक रहेगा !उनका यह विचार था कि भारत के प्रदूषन भरे वातावरण में मेरे स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं होगा ,उल्टा वह अधिक बिगड़ ही सकता है ! मैंने अति दुखी हो कर पूछा कि "महाराज जी मुझे क्यों अपने से दूर करना चाहते हैं ?" ! महाराजजी बोले "आप नहीं आ पाओगे तो हम वहां आकर आपसे मिल लिया करेंगे,वहीं आपके भजन भी सुनेंगे" 

महाराज जी के स्नेहिल आदेश का पालन हम तत्काल नहीं कर सके ,कुछ मजबूरियां थीं ! 
रिटर्न एयर टिकट में यात्रा की तिथि बदलने का प्रावधान ही नहीं था ! हम दोनों को वापसी के दो नये टिकट लेने पड़ते, जो उस समय हमे कठिन लग रहा था ! अस्तु हमने महाराज 
जी के आदेश का मजबूरन उल्लंघन किया !

अब देखिये कि महाराजजी का आदेश न मानने का क्या परिणाम हुआ :

शीतल प्रदूशण मुक्त प्रकृति का आनंद लूटने तथा स्वास्थ्य -लाभ एवं एकांत में सत्संग का लाभ उठाने के विचार से हम दोनों कुछ दिनों के लिए ऋषिकेश के वानप्रस्थ आश्रम गये ! माँ गंगा के सुरम्य तट पर ,आवश्यक आधुनिक सुविधाओं से युक्त इस आश्रम में हम कुछ दिवस ही रहे ! पर बजाय सुधरने के सभी सावधानी बरतने के बाबजूद भी मेरा स्वास्थ्य दिन पर दिन बिगड़ता  गया !जो  कष्ट नोयडा में नहीं थे , ऋषिकेश में उभर कर सामने आ गये !

हम ऋषिकेश यह सोच कर गये थे कि वहाँ के सेनिटोरियम जैसे स्वास्थ्यवर्धक मौसम का आनंद लूटेंगे और प्रातः से शाम तक वहाँ के वायु मंडल में तरंगित भजन कीर्तन धुनें तथा संत महात्माओं के प्रवचनों से नवजीवन प्राप्त करेंगे ! पर हुआ उल्टा ही ! मुझे क्रिटिकल स्टेट में लाद -लूद कर ऋषिकेश से नोयडा वापस लाया गया !मुझे वहां के मेट्रो हॉस्पिटल में भर्ती किया गया जहाँ मैं लगभग ३ सप्ताह तक, कोमा में पड़ा हुआ , बेबस जीवन मरण के बीच झूलता रहा ! अन्ततोगत्वा ,किसी तरह मुझे "खड़ा करके" ( जी हाँ प्रियजन दिल्ली के स्पेसिअलिस्ट डोक्टर जो हावर्ड मेडिकल स्कूल से प्रशिक्षित थे उन्होंने  मुझसे यही कहा था "अंकल हमने आपको खड़ा कर दिया अब आप जल्दी अमेरिका लौट जाएँ आपका उचित इलाज वहीं हो सकेगा " 

प्रियजन ,महाराज जी ने जो बात ३ महीने पहले कही थी ( जिसे न मान कर हम भारत में रुके रहे और फलस्वरूप इतने कष्ट सहन किये) वह अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई ! यही नहीं , पिछले तीन वर्ष में मैं  भारत नहीं जा सका हूँ लेकिन महाराज जी के कथनानुसार हमें श्री महाराज जी के सुदर्शन स्वरूप के मधुर दर्शन का सौभाग्य यहाँ USA में ही ,सेलुस्बुर्ग के दोनो साधना सत्संगों में प्राप्त हुआ और श्री महाराजजी को भजन सुनाने क़ी मेरी हार्दिक इच्छा क़ी पूर्ति भी हुई तथा इस प्रकार परम पुरुष श्री राम के श्री चरणों पर अपने भजनों के पत्र पुष्प अर्पित करने का सौभाग्य भी मुझे मिला !

इन दोनों सत्संगों  में मुझे जितना आनंद प्राप्त हुआ उसको वाणी से या शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए असम्भव हैं फिर भी ब्लॉग के माध्यम से ,मैं उस आनन्द को आप सबके साथ बाँटने का प्रयास कर रहा हूँ  !

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क्रमशः 
निवेदक: व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
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4 टिप्‍पणियां:

Patali-The-Village ने कहा…

ग्रुरु चरणों में जो सुख मिलता है वह दुनियां में कहीं भी नहीं मिलता है|

Shikha Kaushik ने कहा…

गुरु कृपा का अद्भुत प्रसंग आपने हमारे साथ साझा कर हमें भी गुरु भक्ति का महत्व सहसा ही समझा दिया है .हार्दिक धन्यवाद .

Shalini kaushik ने कहा…

भोला जी आपके अनुभव हमें काफी kuchh सिखा रहे हैं और बता रहे हैं की गुरु भगवान से भी बढ़कर hote हैं और वे अपने शिष्य की स्थिति को samjhte hain aur use samay samay पर sajag bhi करते रहते हैं देखा जाये तो bhagwan धरती पर गुरु स्वरुप me hi हमारे sath रहते hain .

अभिनव ने कहा…

'गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागों पांय' .. बहुत सुन्दर आलेख. अनेक धन्यवाद्.