श्री गुरुवे नमः
सद्गुरु चरण सरोज रज जो जन लावें माथ ,
सद्गुरु चरण सरोज रज जो जन लावें माथ ,
श्री हरि की करुणा-कृपा तजे न उनका साथ !!
सुख समृद्धि सद्बुद्धि से सजे सकल संसार
उनके माथे पर रहे सदा "इष्ट" का हाथ !!
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!!"ऐसे जन पर सर्वदा कृपा करे रघुनाथ"!!
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!!"ऐसे जन पर सर्वदा कृपा करे रघुनाथ"!!
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("भोला'')
मेरे अतिशय प्रिय पाठकगण,
दिनांक १६ जून २०११ के सन्देश # ३ ८ ६ - "गुरु आज्ञा में निशदिन रहिये" , में मैंने अर्ज़ किया कि कैसे गुरुदेव विश्वामित्र जी महाराज की आज्ञा का उल्लंघन करके मैंने भयंकर कष्ट उठाये और दुसह दारुण दुःख झेलने के बाद ,अन्ततोगत्वा वही किया जो महाराज जी ने सुझाया था !
[उपरोक्त कथन के सम्बन्ध में एक और बात बताने की प्रेरणा हो रही है ! इस सन्दर्भ में मैंने श्रीमहाराज जी के श्री मुख से एक बार कहीं यह सुना था कि "गुरु 'आज्ञा' नहीं देते है" (कदाचित मेरी बारह दवाइयों का असर है कि अब मेरी स्मरण शक्ति इतनी क्षीण हो रही है कि आज मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है कि महाराज जी ने कब कहाँ और किस सन्दर्भ में ये बात कही थी ) लेकिन आज मैं अपने ८१- ८२ वर्ष के अनुभव के आधार पर पूरी दृढ़ता से कह सकता हूँ कि उसे चाहे आप आज्ञा कहें, आदेश - सन्देश - सुझाव कुछ भी कहें ,गुरु के मुख से निकला प्रत्येक वचन और उसका एक एक अक्षर हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है ;चाहे वह हमारे जगत व्यवहार से सम्बन्धित हो अथवा आध्यात्मिक प्रगति से , हमें शिला लेख के समान उसे अपने मन बुद्धि पर अंकित कर लेना चाहिए ]
गुरु हमारे मार्गदर्शक हैं ;वह हमें जो राह दिखाते हैं उस पर चलना हमारा एकमात्र धर्म है ! केवल उस पथ पर चल कर ही हम अपनी मंजिल पा सकते हैं ! अस्तु -
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[उपरोक्त कथन के सम्बन्ध में एक और बात बताने की प्रेरणा हो रही है ! इस सन्दर्भ में मैंने श्रीमहाराज जी के श्री मुख से एक बार कहीं यह सुना था कि "गुरु 'आज्ञा' नहीं देते है" (कदाचित मेरी बारह दवाइयों का असर है कि अब मेरी स्मरण शक्ति इतनी क्षीण हो रही है कि आज मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है कि महाराज जी ने कब कहाँ और किस सन्दर्भ में ये बात कही थी ) लेकिन आज मैं अपने ८१- ८२ वर्ष के अनुभव के आधार पर पूरी दृढ़ता से कह सकता हूँ कि उसे चाहे आप आज्ञा कहें, आदेश - सन्देश - सुझाव कुछ भी कहें ,गुरु के मुख से निकला प्रत्येक वचन और उसका एक एक अक्षर हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है ;चाहे वह हमारे जगत व्यवहार से सम्बन्धित हो अथवा आध्यात्मिक प्रगति से , हमें शिला लेख के समान उसे अपने मन बुद्धि पर अंकित कर लेना चाहिए ]
गुरु हमारे मार्गदर्शक हैं ;वह हमें जो राह दिखाते हैं उस पर चलना हमारा एकमात्र धर्म है ! केवल उस पथ पर चल कर ही हम अपनी मंजिल पा सकते हैं ! अस्तु -
गुरु आज्ञा में निशिदिन रहिये
जो गुरु चाहे सोइ सोइ करिये !!
गुरु चरणन रज मस्तक दीजे, निज मन बुद्धि शुद्ध कर लीजे ,
आँखिन ज्ञान सुअंजन दीजे, परम सत्य का दर्शन करिए !!
गुरु आज्ञा में निशिदिन रहिये!!
गुरु अंगुरी दृढ़ता से धरिये ,साधक नाम सुनौका चढिये
खेवटिया गुरुदेव सरन में भव सागर हंस हंस कर तरिये
गुरु आज्ञा में निशिदिन रहिये!!
गुरु की महिमा अपरम्पार ,परम धाम में करत बिहार ,
ज्योति स्वरूप राम दर्शन को , गुरु के चरण चीन्ह अनुसरिये ,
गुरु आज्ञा में निशदिन रहिये
जो गुरु चाहे सोई सोई करिये!!
("भोला")
प्रियजन , उपरोक्त रचना में मैंने गुरुजन से प्राप्त प्रेरणा के आधार पर एक सन्देश दिया है ! यह रचना २००३ में यहाँ USA में हुई थी - श्रद्धेय पंडित जसराज जी द्वारा गाये राग सिन्धु भैरवी के एक छोटे ख़याल के आधार पर मेरे मन में भावों का ज्वार उठा और इन शब्दों की संरचना हुई !
[ये भजन मैंने २००५ में श्री राम शरणम् के केसेट # १२ के लिए रेकोर्ड किया था और इसे आपने मेरे सन्देश # ३ ८ ७ में सुन लिया होगा (जहाँ "गुरु चरणन में ध्यान लगाऊँ " के स्थान पर यह भजन भूल से लग गया था ]
संत तुलसीदास ने कितना सच कहा है " पर उपदेश कुशल बहुतेरे", इसके अतिरिक्त और भी अनेको लोकोक्तियाँ जैसे, "थोथा चना बाजे घना" और "कहना आसान है कर के दिखाना कठिन " आप हमारे ऊपर थोप सकते हैं , मैं कोई शिकायत नहीं करूँगा !मैं दोषी हूँ ! मैं स्वयम यह बात भूल गया ,तभी तो महाराज जी की मेरे ही हित में दी हुई हिदायत मैंने बलाए ताख कर दी और साल में ६-६ महीने के लिए हर दो साल में भारत आता रहा !
जानता हूँ बाल बच्चों से अधिक मेरा एक अन्य स्वार्थ था ,जो मुझे भारत बुलाता था ! वह था ,श्री राम शरणम् में महाराज जी के दर्शनकी ललक तथा ब्रह्मलीन स्वामी जी महाराज के वंशज सभी बुज़ुर्ग और नवजात प्यारे प्यारे साधकों से मिलन की लालसा ! मेरे मन में एक यह अभिलाषा ही प्रबल रहती थी ! मेरा यह स्वार्थ सर्वोपरि था जिसके कारण ( अवश्य कोई कहेगा झूठी बहाने बाज़ी कर रहा हूँ ), खैर मैंने महाराज जी की आज्ञा का उल्लंघन किया परम प्रिय पाठकों , मैंने किया तो किया, प्यारे बच्चों ,आप ऐसा कभी न करना अपने गुरुजनों की बातें ध्यान से सुनना , उनके एक एक अक्षर में ज्ञान का भंडार भरा है -आपको मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की दिनच्रर्या का उदाहरण देता हूँ :
प्रात पुनीत काल प्रभु जागे , अरुण चूड बर बोलन लागे !
प्रात काल उठि के रघुनाथ ,मात पिता गुरु नावही माथा !
मात पिता गुरु प्रभु के बानी, बिनहि बिचार करइ शुभ जानी !
सुनु जननी सोई सुत बडभागी,जे पितु मातु वचन अनुरागी !
"तुलसी कृत मानस से"
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माता पिता गुरुजन की आज्ञा मान कर चलने वाले बडभागी होंगे ! प्रियजन स्वयम श्रीराम द्वारा दिए इस आश्वासन से अधिक और कौन सा आश्वासन चाहिए हमे ,जीवन में , सफल होने के लिए !
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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3 टिप्पणियां:
बहुत ज्ञानवर्धन कर रही हैं आपकी सभी पोस्ट लिखते रहिये और हमसे शेयर करते रहिये.आपका और कृष्णा जी का स्वास्थ्य अच्छा रहे यही इच्छा है.और साथ ही हम सभी पर आपका आशीर्वाद भी.
काकाजी प्रणाम ...आप की पिछली पोस्ट भी पढ़ा था ...! गुरु तो एक भगवान का रूप और हमारे जीवन का सारथी होते है ! गुरु जी को प्रणाम !
बहुत सुन्दर भजन और संसमरण|
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