मंगलवार, 28 जून 2011

केवल गुरु कृपा # 3 9 3

परम गुरु राम मिलावन हार


"जोड़े रहो तुम तार गुरुजनों से दोस्तों " ,यह संदेश मैंने अपने पिछले ब्लॉग के माध्यम से आपके पास भेजा था ! क्यों ? मैंने महापुरुषों से सुना है कि हम जैसे साधारण प्राणियों के लिए ,इस संसार में जगत व्यवहार निभाते  हुए परम सत्य स्वरूप "ईश्वर" का दर्शन कर पाना असंभव है ! सर्वशक्तिमान परमात्मा के तार से हमारी आत्मा का तार जोड़ने का कार्य केवल साधूसंत और महात्माजन ही कर सकते  हैं !
   
यह सर्वमान्य सत्य है  कि ,हमें ईश्वर की उपस्थिति का अहसास  केवल हमारे सदगुरु ही करा सकते है ! और प्रभु की कृपा के बिना सद्गुरु मिलन भी दुर्लभ है ! अस्तु मानवता की सहायता हेतु परम कृपालु प्रभु हम सब पर अति करुणा कर के समय समय पर श्रेष्ठतंम  गुरुजनों के रूप में अनेकानेक संत महात्माओं को धरती पर भेजते हैं ! प्रियजन, विभिन्न  धर्म -शास्त्रों में इसी कारण ,धरती पर, मानव स्वरूप में अवतरित हुए ऐसे महापुरुषों  को  निराकार "ब्रह्म" का साकार प्रतिनिधि कहा गया है !

मानवता के उद्धार का मार्ग प्रशस्त करने वाले ऐसे अनगिनत श्रेष्ठ महापुरुष पृथ्वी पर समय समय पर अवतरित होते रहे हैं ! नाम कहाँ  तक गिनाये ? योगेश्वर कृष्ण , भगवान बुद्ध , महावीर स्वामी , लोर्ड क्राइष्ट (ईसा मसीह), हजरत मोहम्मद साहेब , आदिगुरु श्री शंकराचार्य से लेकर संत रैदास ,गुरु नानकदेव  ,स्वामी हरिदास जी , की श्रंखला  में आज तक भारत भूमि पर जन्मे अनेकानेक युग प्रवर्तक गुरुजनों ने अपनी अपनी विधि से तथा युक्ति से  जन साधरण को जीवन का श्रेय और प्रेय  पाने का मार्ग बताया है ! इन गुरुजनों ने साधारण से साधारण व्यक्ति का तार, भली भांति निज -धर्म निभाते हुए 'परम पिता सर्वव्यापी सृष्टिकर्ता' से जोड़ा तथा समस्त मानवता को मुक्त करके परमात्मा के परम धाम तक पहुचने का साधन बताया !       

विद्वानों के  मतानुसार "गुरु" वह  है जो अज्ञान का अंधकार मिटा कर ज्ञान की ज्योति जलावे !("गु" का अर्थ है  अंधकार और "रु" का अर्थ है प्रकाश)! संतशिरोमणि तुलसीदास ने रामचरितमानस के  मंगलाचरण में गुरु-वंदना करते हुए कहा है-

बन्दों गुरु पद कंज कृपा सिन्धु नररूप हरि 
महा मोह तम पुंज जासु वचन रविकर निकर

गुरु की वाणी मोह रूपी घने अन्धकार को मिटा कर ज्ञान का प्रकाश साधक के हृदय में वैसे ही  भर देतीं है  जैसे सूर्य की किरणें रात्रि के अन्धकार को दूर कर जगत को प्रकाश से चमकृत कर देतीं हैं ! 

इस संसार में साधारण मानव का  जीवनपथ अनगिनत अवरोधों से भरा हुआ है ! जीवन के इस अँधेरे कंटकों एवं चुभते कंकरपत्थरों से भरे मार्ग पर सुविधा से चल पाना आज के मानव के लिए बड़ा कठिन है !  बिना किसी हादसे के गन्तव्य तक पहुंचना मानव क्षमता से परे है ! इसके लिए जीव को एक कुशल मार्ग दर्शक और संचालक की आवश्यकता होती है ! गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्ग दर्शन करते हुए कहा  "योग :कर्मसु कौशलम" अर्थात कुशलता से, युक्तिसंगत विधि से कल्याणकारी कर्म करना ही योग है ! इस "युक्ति" का ज्ञान या बोध और उसका अभ्यास "गुरु" ही कराते  हैं ! गुरु ही ऐसे श्रेष्ठ  महापुरुष है जो सुख -शांति से पूरित जीवन जीने की विधि बतलाते हैं और आत्मिक शांति प्राप्ति का साधन बताते है ! गुरु ही हमे अपनी वृत्तियौं को साधनामयी बनाने की युक्ति समझाते हैं! इसी कारण ज्ञानीजन ,साधको को 'युक्ति' अथवा 'विधि' बता कर मुक्त कर ने वाले श्रेष्ठ व्यक्ति को "गुरु" कह कर पुकारते  हैं !  

प्रियजन, गुरु ही हमें सत्य और धर्म पर चलने की राह दिखाते हैं ;वे ही हमें अहंता और ममता के बंधन से मुक्त हो कर जगत व्यवहार करते हुए प्रभु का स्मरण करते रहने का सन्देश देते हैं ! गुरुजन हमे ,युक्ति संगत ल्याणकारी पथ पर दृढ़तापूर्वक चलने की प्रेरणा देते हैं ;जब हमारे कदम डगमगाते हैं गुरु ही हमारी उंगली पकड़ कर हमे सम्हाल लेते हैं हमे गिरने नहीं देते !

किसी संत ने कितना सच कहा,है

गुरु बिन ज्ञान न ऊपजे , गुरु बिन भगति न होय 
गुरु बिन संशय ना मिटे , गुरु बिन मुक्ति न होय  

मैंने  पहले कहीं कहा है एक बार फिर कहने को जी कर रहा है कि ,मनुष्य को मानव जन्म प्रदान कर धरती पर भेजता तो परमेश्वर है लेकिन उसको इन्सान बना कर उसे अहंकार और ममता से मुक्ति (मोक्ष) का मार्ग दिखाता है उसका "सद्गुरु" ! उसे शांतिमय जीवन जीने की कला सिखाता है उसका सद्गुरु ! मेरे जीवन का अनुभव है 


रस्ते में पड़ा था मैं खाता था ठोकरें
गुरुदेव नें कंकड़ को जवाहर बना दिया 

तुकबन्दियाँ करता रहा जो अबतलक बेनाम
दे "राम नाम" उसको शायर बना दिया

"भोला"
  

प्रियपाठकगण, शाश्वत सत्य तो यह है कि साधको द्वारा किसी भी साधन से की हुई कोई साधना तब तक सफल नहीं होगी जब तक साधक को अपने मार्ग दर्शक 'सद्गुरु" पर,अपने 'साध्य' पर,अपने 'साधन' पर, अपनी 'साधना' पर और स्वयं अपने आप पर अटूट भरोसा (विश्वास) नही होग़ा ! अस्तु ह्म साधकों को अपने सद्गुरु एवं अपने 'इष्ट' परमेश्वर पर सदा एक अविचल भरोसा (सजीव विश्वास) रखना चाहिए !      

हमारे गुरू महाराज जी ने सेलार्स्बर्ग के खुले सत्संग के अपने प्रवचनों में इस बार इस "भरोसे" पर ग़हन प्रकाश डाला ! उन्होंने हमे बताया कि हम साधक ,भरोसा कैसे करें, किस पर करें ;क्यों करें ? विस्तार से उसका विवरण पाठकों को श्रीराम शरणंम लाजपत नगर नयी दिल्ली के वेब साईट पर प्रवचनों पर क्लिक करने से मिल जायेगा ! कृपया समय निकाल कर सुनने का प्रयास अवश्य करें !
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निवेदक : व्ही . एन . श्रीवास्तव 'भोला"
सहयोग :डॉ.श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

रस्ते में पड़ा था मैं खाता था ठोकरें
गुरुदेव नें कंकड़ को जवाहर बना दिया

तुकबन्दियाँ करता रहा जो अबतलक बेनाम
दे "राम नाम" उसको शायर बना दिया

"
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आभार

Patali-The-Village ने कहा…

गुरु कृपा के बिना साधक अधूरा है|

शिखा कौशिक ने कहा…

गुरु की महत्ता को बहुत सरल शब्दों में आपने अभिव्यक्त कर हमारे ह्रदय में गुरु के प्रति श्रद्धा भाव को जाग्रत करने का सफल प्रयास किया है .हम आपके आभारी है .