सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

दैनिक प्रार्थना (मंगलवार)

दैनिक प्रार्थना
(गतांक से आगे)

कल पहली अक्टूबर को , पूज्यनीय "बाबू"- दिवंगत श्रद्धेय श्री शिवदयाल जी की पुण्यतिथि पर , हमने गीता व राम चरित मानस के वे विशेष सूत्र आपको बताये थे जिनका पालन करके श्री राम परिवार का सर्वान्गीण विकास हुआ ! स्वयम मैं ,तथा मेरे परिवार के सभी जन इनसे प्रतिपादित सूत्रों को सच्चाई से अपने जीवन में उतार कर कितने लाभान्वित हुए हैं , अपने मुंह से कहना उचित नहीं है !

चलिए आगे बढते हैं , हमारी अगले दिन की प्रार्थना में "गीता" से "इन्द्रियों व मन का निग्रह" तथा "मानस" से "सदाचार" के सूत्रों को उध्रत किया गया है ! सर्वप्रथम "गीता" प्रस्तुत है :



उपरोक्त श्लोकों का भावार्थ

इन सूत्रों से श्री कृष्ण ने हमसे कहा : वह व्यक्ति जो कर्म का त्याग करके विषय के चिंतन में लगा रहता है वह दम्भी है 'पाखंडी" है और वह व्यक्ति जो मन से अपनी इन्द्रियों को काबू में करके अपने कर्म करता रहता है वह "श्रेष्ट" है !!वह व्यक्ति दृढ़ प्रग्य है जो अपनी इन्द्रियों को वश में कर के योग युत होकर अपने सभी कर्म करता है !! चंचल और संशयवान मन को साधना कठिन है परन्तु नियमित अभ्यास से यह साधना सम्भव है !! आपका मन जहां जहां से भागता है , उसे रोक कर ,पुनः वहीं ले आओ और फिर उसे अपनी आत्मा के आधींन कर दो !! जो सभी को मुझ में देखता है और सर्वत्र ,सब में मुझे देखता है "मैं" उस व्यक्ति से दूर नहीं और वह "मुझसे" दूर नहीं !! द्वेश और इच्छाओं से मुक्त व्यक्ति ही नित्य सन्यासी है ! द्वनदों को तज कर मानव सर्व बंधन मुक्त हो जाता है !!

प्रार्थना और माधव की आवाज़ में उपरोक्त गीता का पाठ वैसे ही सुनिये
जैसे उनोने अपने बड़े मामा से बचपन में सीखा था !


मानस से "सदाचार"के सूत्र :-

मानस के निम्नांकित सूत्रों में तुलसी का कहना है कि "प्यारे प्रभु" तब ही प्रसन्न होते हैं जब साधक पूरी श्रद्धा से उनकी चरन वन्दना करते हैं ! वह व्यक्ति जो काम क्रोध मद मान मोह लोभ क्षोभ राग द्रोह दम्भ कपट और माया का परित्याग करता है उसके हृदय में ही "प्रभु" का निवास होता है !! जो सबके प्रति प्रेम रखे और सबका हितकारी हो , जो दुःख-सुख , प्रसंशा और बदनामी में सम भाव रहे , सोच विचार कर सत्य और प्रिय वचन बोले ,और एक मात्र प्रभु की शरण में ही रहे ,ऐसे जन के मन में "प्रभु" का निवास होता है !! जो पर स्त्री को मा तथा पर धन को "विष" समझे तथा अन्य लोगों की समृद्धि से प्रसन्न हो , जिनका मन दुखियों को देख कर व्यथित हो जाए ,और जो अपने प्रभु से असीम प्रीति करे ऐसे व्यक्तियों के "मन सदन" में "प्रभु" का निवास होता है !"( हम इन प्रभु को "राम नाम" से सम्बोधित करते हैं - आप अपने "इष्ट" को सिमर कर इसे पढ़ें - अवश्य कल्याण होगा )

मानस से "सदाचार" के सूत्र

सब करि मांगहि एक फलु राम चरन रति होउ !
तिन के मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदन दोउ !!

काम कोह मद मान न मोहा , लोभ न छोभ न राग न द्रोहां !!
जिन्ह के कपट दम्भ नहि माया, तिन्ह के हृदय बसों रघुराया !!
सब के प्रिय सबके हितकारी , दुःख सुख सरिस प्रसंसा गारी !!
कहहि सत्य प्रिय वचन बिचारी ,जागत सोवत सरन तुम्हारी !!
तुम्हहि छाड़ी गति दूसर नाहीं ,राम बसहु तिन्ह के मन माही !!
जननी सम जानहिं पर नारी , धन पराव विष तें विष भारी !!
जे हरषहिं पर सम्पति देखी , दुखित होहिं प्र विपति विशेषी !!
जिनहि राम तुम प्रानपियारे, तिन के मन सुभसदन तुम्हारे !!

स्वामि सखा पितु मातु गुरु जिनके सब तुम तात
मनमंदिर तिनके बसहु सीय सहित दोउ भ्रात !!
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सदाचार के उपरोक्त सूत्र अपनाकर अपना जीवन सुधारने की मंत्रणा हमारे पूज्यनीय बाबु ने हम सब को दी थी ! हमे गर्व है कि राम परिवार के अधिकाधिक सदस्य इससे लाभान्वित हुए चलिये इन सूत्रों को एक बार मेरे साथ गा लीजिए


धन्यवाद !
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा जी, श्री देवी , प्रार्थना , माधव

गृहस्थ संत "शिवदयाल जी" की पुण्य तिथि

ब्रह्मलीन गृहस्थ संत
(मेरी धर्मपत्नी कृष्णा जी के बड़े भाई)
माननीय शिवदयाल जी श्रीवास्तव
भूतपूर्व चीफ जस्टिस (म .प्र . हाईकोर्ट ) की पुण्य तिथि पर ,
उनके द्वारा
श्रीमद भगवद गीता एवं रामचरित मानस से "उत्थान पथ" में संकलित
''उन्नति'' के मार्ग" तथा 'परम धर्म' के अमूल्य सूत्र

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श्रीकृष्ण ने गीता के उपरोक्त सूत्रों में अर्जुन से कहा था:
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"मानव स्वयम ही अपना शत्रु है और स्वयम अपना मित्र भी है ! वह स्वयम ही अपना उद्धार कर सकता है ! अपने आपको जान लेने वाला व्यक्ति स्वयम अपना बन्धु है और वह जो अपने को नहीं जानता वह अपना ही शत्रु है ! व्यक्ति का अधिकार केवल अपने कर्म करने तक है ,फल पर उसका अधिकार नहीं है अस्तु फल की इच्छा त्याग कर कर्म करते रहिये ! कर्म फल की वासना त्याग कर ,योग में स्थित हो कर , सिद्धि और असिद्धि में समभाव रख कर , अपने कर्म करिये ! आपके सभी व्यवहार परिमित हों ! आपका सोना, जागना तथा आपके आहार विहार सभी उचित मात्रा में हो ! भोजन के जो पदार्थ आयु , बल, सुख, प्रीति, सात्विक बुद्धि, तथा स्वास्थ्य प्रदान करे वैसे रसमय भोज्य पदार्थ ही खायें ! शूरवीरता और तेजस्वीता के साथ धीरज से युद्ध करते रहना क्षत्रियों का "धर्म" है एवं स्वामी भाव में स्थिर रह कर "प्रजापालन" करना तथा "दान" देना ही क्षत्रीय "कर्म" है ! ऐसे उन्नति के मार्ग पर चलने वालो का मानव जीवन सफल समझिए !


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अब "मानस" से अपनाये "परम धर्म" के कुछ सूत्र :

सत्य के समान कोई धर्म नहीं है और "अहिंसा" ही "परम धर्म" है ! "परनिंदा" करना सबसे नीच कर्म है ! परहित वह ऊंचा धर्म है जिसके आचरण से मानव के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं रहता ! दूसरों को पीड़ा देने के समान कोई नीच कर्म नही है ! साधू पुरुष , वह है , जो "कपास" के समान नाना प्रकार के कष्ट झेल कर भी दूसरों के दुर्गुणों को ढंकता है ! सर्व विदित है कि वस्त्रों में रूपांतरित होने से पहले "कपास" को कितनी कष्टप्रद स्थितियों से गुजरना पडता है ! कपास को मशीनों में धुना जाता है, काता जाता है, बुना जाता है रंगा जाता है और इतने दुःख सह कर भी वह अपना स्वधर्म निभाता है ! वह दूसरों की गोपनीयता को गोपनीय रखने में उनकी मदद करता है ! ( The beautiful but odourless , "Cotton" flower is subjected to various painful mechanical and chemical processing like Carding, Spinning , Weaving , Dyeing and Bleaching etc. BUT ignoring all these pains , Cotton Clothes COVER such parts of human body which need no exposure .) दूसरों के दोष जान कर उसकी चर्चा करने के समान कोई अन्य "अघ"अर्थात दुष्कर्म नहीं है और "दया" करना सबसे ऊंचा पुण्य कर्म ( धर्म ) है !

प्रियजन , मैं तो नवरात्रि के बहाने मानस के दोहे चौपाइयां गाने जा रहा हूँ , यदि आप भी मेरे साथ गाते तो कितना अच्छा लगता ? नीचे ऐरो पर क्लिक कर के बजा लीजिए , मानस की शब्दावली वीडियो के नीचे दी है :






RAMAYANA


तुलसी ने मानस में तथा श्रीमद भागवत गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने जिस प्रकार मानवता का परिचय सरल तम व्यावहारिक जीवन दर्शन से करवाया है उसी प्रकार हमारे पूज्यनीय बाबू  ( शिवदयाल जी ) ने हमारे पूरे राम परिवार का मार्ग दर्शन करके हमारे सर्वांगी विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया ! मेरे जैसे कंकड़ को , लोह बुद्धि व्यक्ति को उन्होने अपने पारस मणि के समान स्पर्श करके क्या से क्या बना दिया !

दैनिक प्रार्थना का क्रम नव रात्रि भर चालू रहेगा ! प्रति दिन मैं मानस के अंश गा कर आपको सुनाऊंगा आप भी मेरे साथ गायेंगे तो अच्छा लगेगा मुझे और मेरे "प्यारे इष्ट" को भी !

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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णाजी ,श्रीदेवी ,प्रार्थना तथा माधव जी
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