बुधवार, 17 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 0

हनुमत कृपा  
अनुभव 

अगस्त १९४२ के  वे दिन बहुत महत्वपूर्ण थे !  बम्बई की एक विशाल जन सभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने महात्मा गांधी का ब्रिटिश सरकार से असहयोग करने का प्रस्ताव सर्व सम्मति से मंज़ूर कर लिया था ! इसके फलस्वरूप बापू के नेतृत्व में पूरे देश में "अंग्रेजों भारत छोडो" नाम से एक शांति पूर्ण आन्दोलन (QIIT INDIA MOVEMENT)  का श्री गणेश हुआ !उस आन्दोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने आनन् फानन दफा १४४ और Defence of India Rules नामक एक दमन कारी कानून देश भर में लगा दिया ! आम जनता पर बर्बरता से लाठी चार्ज हुए और कहीं कहीं तो गोलियां भी चलीं! कांग्रेस के बड़े छोटे सभी नेता जेल मे डाल दिए गये !जन साधारण ने भी बड़ी तादाद में गिरफ्तारी दी ! 

उस शाम जब भैया ओपेरा हाउस से चौपाटी पहुंचे उस समय वहाँ कांग्रेस की असहयोग आन्दोलन से संबंधित एक बड़ी रेली चल रही थी! भैया तो एक मात्र फिल्म स्टार बनने का संकल्प संजो कर कानपूर से बम्बई आये थे ! उन्हें राजनीति से कोई लेना देना कभी भी नहीं था ! वह केवल फिल्मों मे अपना केरिअर बनाने के विषय में ही सोचते थे !,आस पास संसार में क्या हो रहा है उससे उनका कोई सरोकार नहीं था !


भेलपूरी का दोना अभी उन्होंने हाथ में लिया ही था क़ि वहाँ भगदड़ मच गयी ! जनता का एक जबर्दस्त रेला दरिया के ज्वार (High tide) के समान लहरा कर"अंग्रेजों भारत छोडो", "महात्मा गाँधी क़ी जय" और  "वन्दे मातरम" ,के नारे लगाता  हुआ उनकी तरफ ही आ रहा था ! जनता के पीछे पुलिस का घुड़सवार दस्ता बंदूक ताने उन्हें खदेड़ रहा था और सैकड़ों पैदल सिपाही बर्बरता से लाठी भांजते हुए निहत्थे नागरिकों के हाथ पैर तोड़ने की धमकी दे रहे थे ! "भागो ,भागो,पुलिस आयी" की पुकार और भागती हुई जनता के आर्तनाद से चौपाटी का वातावरण बड़ा उत्तेजक हो गया था !


बड़ी मनौतियों और मेहनत से कमायी ,तिजोरियों में बंद संपत्ति के समान भैया नें तब तक एक बहुत ही संरक्षित जीवन (Protected Life) जिया था ! कानपूर में ,पढाई छोड़ने के बाद वह सुबह से शाम तक कमरा बंद करके हारमोनियम पर स्वर छेड़ कर घंटों गाना गाते रहते थे ! इसके सिवाय उन्हें और कोई दूसरा काम था ही नहीं! कानपूर में वह घर से अधिक बाहर निकलते ही नहीं थे !सडकों पर क्या क्या होता है ,कैसे उपद्रव और अपराध होते रहते हैं वह इन सब से अनिभिग्य थे !


उस दिन भैया ने हिंसा का जो वीभास्त दृश्य चौपाटी पर देखा वैसा उन्होंने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था ! वह घबडा कर सोचने लगे :" ये सब क्या है ? मैं कैसे फंस गया ?अब मेरा क्या होग़ा ? क्या करुं? कहाँ जाऊं ?


क्रमशः 
निवेदक:व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
!

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