गुरुवार, 4 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 0

हनुमत कृपा
पिताश्री के अनुभव 
बलिया के सीधे सादे पर विलक्षण  बुद्धिमत्ता के धनी विद्यार्थियों को उनकी सिधाई  के कारण सारे भारतवर्ष में  "बलियाटिक" कह कर संबोधित किया जाता था ,उनका मजाक उड़ाया जाता था ! प्रियजन !जिस प्रकार अभी भी अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति श्री "बुश" जी के "बुशीज्म" के अनेकानेक गुद्गुदीकारक "जोक्स" ,बाज़ार की मंदी के कारण वहाँ की दुख़ी जनता के उदास चेहरे पर हल्की मुकस्कराहट ला देते हैं, वैसे ही उस जमाने मे बलिया के "टिक्स" के नाम से प्रचलित"जोक्स "से जनसाधारण का मनोरंजन होता था !
ह्म भी "बलियाटिक" हैं पर हमें  इसका कोई गम नहीं है ! रादर , हमें तो गर्व है कि और कुछ नहीं तो ह्म अपना मज़ाक उड़वाकर ही ,कुछ उदास चेहरों पर थोड़ी सी हँसी ला देते हैं जिसे ह्मारे धर्म ग्रन्थ पुण्यकारी कर्म कहते हैं!
प्रियजन ! हाल में ही एक संत के प्रवचन में सुना था ,"मन्दिरों ,  मस्जिदों ,गुरुद्वारों और गिरजाघरों में  पूजा पाठ कर के अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रार्थनाएं करने के बजाय एक रोटी का टुकडा देकर किसी अनाथ बालक को जीने का सहारा प्रदान कर दो, उसके गाल पर खिंची आंसुओं की रेखा को अपने रूमाल से पोंछ दो ,और फिर देखो और महसूस करो क़ि तुम्हारा मन कैसी अद्भत शांति से भर गया, अनायास ही तुम्हारा हृदय कितना प्रफुल्लित हो गया ! ,विश्वास करो तुम्हे जिस आनन्द की अनुभूति होगी वह सर्वथा  अनिर्वचनीय  है !" इस सन्दर्भ में मेरा यह कहना है क़ि ----
एक   रोते   को   जरा  सा  हि   हंसा   दो  यारों ,
पुन्य  जन्मों के फकत इससे  कमा लो  यारों!! 
Just make a crying baby smile and earn GODs FAVOUR for ever.
है   कहीं  धूप  ,  कहीं  छाँव  , कहीं  बारिश  है ,
कोई भूखा ,किसी को व्यंजनों की ख्वाहिश है!!
It is sunny here but dark and rainy elsewhere. While one starves the other enjoys a sumptuous meal.
क्या   मिलेगा  तुझे   काबे में औ बुतखाने  में 
तेरे   मन में  हि   तेरे   "राम"  की  रिहाईश है!
What will you gain through visits to temples ? The LORD sits within  your heart . Lean forward and see HIM there., 
सर   झुका  के  जरा   उस ओर  निहारो  यारों  
पुन्य जन्मों  के फकत  इससे कमा लो यारों!!  
Lean forward and look within yourself  (You will see HIM) and thus you will earn HIS favour for ever.
अभी पिताश्री की कथा समाप्त  नहीं हुई है ! प्रसंगवश मेरी कहानी उसमें जुड़ गयी है ! कारण यह है क़ि दोनों कथाओं में बहुत समानता है ! सबसे प्रमुख समानता  है यह क़ि ह्म दोनों के ही इष्ट देव श्री महाबीर जी हैं ! अन्तर केवल यह है क़ि पिताश्री के समक्ष वह साकार रूप में प्रगट हुए थे और ,मेरे समक्ष वह सूक्ष्म रूप में अवतरित हुए !





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