हनुमत कृपा - निज अनुभव
HANUMAAN's GRACE - EXPERIENCE
प्रियजन ! किसी कथा के प्रारंभ में उसके अंत का अनुमान नहीं लग सकता.! कथा की समाप्ति पर ही उसमे निहित नैतिक उपदेश उजागर होता है ! चलिए बड़े भैया की कथा आगे बढायें !ह्मारे भैया केवल संगीतज्ञ ही नहीं थे ! वह लेखन में भी प्रवीण थे !मुझे याद आ रहा है ,१९३४-३५ में जब वह ११ -१२ वर्ष के थे और मैं ६-७ वर्ष का ,वह घर से ह़ी एक हस्त लिखित मासिक बालोपयोगी पत्रिका निकालते थे ! उस पत्रिका में समाचारों के अतिरिक्त ज्ञान विज्ञानं धर्म और सिनेमा की जानकारी होती थी ! हिन्दी बोलती फिल्मे (talkies) हाल में ही भारत में चालू हुईं थीं ,उनके latest समाचार भी वह उस पत्रिका में देते थे ! कैसे ? (पिताश्री कानपुर के रीगल और निशात टाकीज के पार्टनर थे !सिनेमा के मेनेजर भैया को नयी फिल्मों के पोस्टर ,पेम्फलेट और चित्र आदि समय समय पर पहुंचाते रहते थे )
पत्रिका पढने वालों में सर्वप्रथम थे ह्म उनके तीनो भाई बहेन ! लगभग ६- ७ वर्ष का मैं ,मेरी बड़ी दीदी जो ह्म से दो वर्ष बड़ी हैं और हमारी छोटी बहेन जो तब साल भर की थी ! इसके अतिरिक्त उनके मित्रगण और अडोस पडोस के बालवृन्द मांग मांग कर उसे पढ़ते थे !तब मुझे हिन्दी का अक्षर ज्ञान तो था पर मेरे लिए उस पत्रिका के सब विषयों को समझ पाना कठिन था !अस्तु जितना वह जानते थे,वह सब हमे बता देने के लिए और मुझे Well Informed बनाने के लिए वह मुझे अपने डेस्क पर साथ में बैठा कर अपनी मैगज़ीन का एक एक पृष्ठ पढ़ कर सुनाते और समझाते थे ! इसके अतिरिक्त पिताश्री के म्योर मिल वाले बंगले के ड्राइव वे पर ,सायंकाल सूर्यास्त के बाद अंगुली पकड़ कर मुझे टहलाते हुए गृह नक्षत्रों,आकाश गंगा ,सप्त ऋषि एवं ध्रुव तारे के दर्शन करवाते थे और उनसे सम्बंधित जानकारी देते थे !इस प्रकार बारह वर्ष की छोटी अवस्था में वह मुझे अपनी छत्र छाया में रख कर अपने अनुभवों द्वारा मेरी प्रभु दत्त प्रतिभाओं का उन्नयन करन चाहते थे !
पाठकगण यह ब्लॉग मूलतः मेरी "आत्म कथा" है जिसे मैं अपने प्यारे प्रभु की आज्ञा से उनसे ही प्राप्त प्रेरणा के सहारे लिख रहा हूँ ! उनका कहना है क़ि प्रत्येक जीवन कथा में कुछ न कुछ अनुकरणीय होता ही है और वह मुझसे वही लिखवा रहे हैं जिसे वह उचित मानते हैं! हमारे बड़े भैया के जीवन में भी उन्होंने जो कुछ अनुकरणीय जाना मुझसे लिखवा दिया ! आज इतना ही शेष a,गले अंकों में क्रमशः
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
HANUMAAN's GRACE - EXPERIENCE
प्रियजन ! किसी कथा के प्रारंभ में उसके अंत का अनुमान नहीं लग सकता.! कथा की समाप्ति पर ही उसमे निहित नैतिक उपदेश उजागर होता है ! चलिए बड़े भैया की कथा आगे बढायें !ह्मारे भैया केवल संगीतज्ञ ही नहीं थे ! वह लेखन में भी प्रवीण थे !मुझे याद आ रहा है ,१९३४-३५ में जब वह ११ -१२ वर्ष के थे और मैं ६-७ वर्ष का ,वह घर से ह़ी एक हस्त लिखित मासिक बालोपयोगी पत्रिका निकालते थे ! उस पत्रिका में समाचारों के अतिरिक्त ज्ञान विज्ञानं धर्म और सिनेमा की जानकारी होती थी ! हिन्दी बोलती फिल्मे (talkies) हाल में ही भारत में चालू हुईं थीं ,उनके latest समाचार भी वह उस पत्रिका में देते थे ! कैसे ? (पिताश्री कानपुर के रीगल और निशात टाकीज के पार्टनर थे !सिनेमा के मेनेजर भैया को नयी फिल्मों के पोस्टर ,पेम्फलेट और चित्र आदि समय समय पर पहुंचाते रहते थे )
पत्रिका पढने वालों में सर्वप्रथम थे ह्म उनके तीनो भाई बहेन ! लगभग ६- ७ वर्ष का मैं ,मेरी बड़ी दीदी जो ह्म से दो वर्ष बड़ी हैं और हमारी छोटी बहेन जो तब साल भर की थी ! इसके अतिरिक्त उनके मित्रगण और अडोस पडोस के बालवृन्द मांग मांग कर उसे पढ़ते थे !तब मुझे हिन्दी का अक्षर ज्ञान तो था पर मेरे लिए उस पत्रिका के सब विषयों को समझ पाना कठिन था !अस्तु जितना वह जानते थे,वह सब हमे बता देने के लिए और मुझे Well Informed बनाने के लिए वह मुझे अपने डेस्क पर साथ में बैठा कर अपनी मैगज़ीन का एक एक पृष्ठ पढ़ कर सुनाते और समझाते थे ! इसके अतिरिक्त पिताश्री के म्योर मिल वाले बंगले के ड्राइव वे पर ,सायंकाल सूर्यास्त के बाद अंगुली पकड़ कर मुझे टहलाते हुए गृह नक्षत्रों,आकाश गंगा ,सप्त ऋषि एवं ध्रुव तारे के दर्शन करवाते थे और उनसे सम्बंधित जानकारी देते थे !इस प्रकार बारह वर्ष की छोटी अवस्था में वह मुझे अपनी छत्र छाया में रख कर अपने अनुभवों द्वारा मेरी प्रभु दत्त प्रतिभाओं का उन्नयन करन चाहते थे !
पाठकगण यह ब्लॉग मूलतः मेरी "आत्म कथा" है जिसे मैं अपने प्यारे प्रभु की आज्ञा से उनसे ही प्राप्त प्रेरणा के सहारे लिख रहा हूँ ! उनका कहना है क़ि प्रत्येक जीवन कथा में कुछ न कुछ अनुकरणीय होता ही है और वह मुझसे वही लिखवा रहे हैं जिसे वह उचित मानते हैं! हमारे बड़े भैया के जीवन में भी उन्होंने जो कुछ अनुकरणीय जाना मुझसे लिखवा दिया ! आज इतना ही शेष a,गले अंकों में क्रमशः
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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