शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 7

 हनुमत कृपा- अनुभव 

हम बड़े भैया की कथा कह रहे थे!आज भी उन्ही की कथा होगी क्योंकि "ऊपरवाले"ने हरी झंडी उसी लाइन पर गाड़ी ले जाने को दी है ! आप की भी आज्ञा हो तो आगे चलें,,,,,,
चित्रकला ,आधुनिक संगीत और लेखन आदि में तो वह पारंगत थे ही साथ साथ वह एक अति स्वरुपवांन व्यक्तित्व के धनी थे! गौरवर्ण सुडौल काठी ,घने ,काले, घुंघुराले बाल, कागज़ी बादाम सा धवल सन्तुलित नाकनक्शे दार चेहरा ! अड़ोसी पड़ोसी ,स्कूल के मित्रगण ,निकट और दूर के संबंधी खास कर जान पहचान के युवक - युवतियां हर समय उन्हें घेरे रहते थे !उनके स्कूल  के मित्रों में सबसे प्रिय थे ,नगर के दो उच्च शिक्षसन्स्थानो के मराठी मूल के अध्यापकों के पुत्र अशोक हुब्लीकर और वसन्त अठावले ! मोहल्ले की गली में ईंटों के विकेट बना कर लकड़ी के तख्ते के बल्ले से क्रिकेट खेलना उन्हें पसंद नहीं था ! खाली समय में वह ग्रामाफोंन पर नये नये फिल्मों के गाने सुनते थे और उस के साथ साथ गा कर सीख लेते थे !
स्कूल में ,१९३७ से १९४१ तक बड़े भैया अपने आकर्षक व्यक्तित्व और संगीत कला के कारण हमेशा प्रशंसकों से घिरे रहते थे ! वह अपनी मित्रमंडली को नयी फिल्मों की कहानियाँ और गाने सुनाते थे और "सिने संसार" की ताज़ी खबरे बताते थे !  मित्रमंडली की हर ऎसी बैठक के बाद भैया के मित्रगण एक स्वर में  उन्हें बम्बई जा कर फ़िल्मो  मे काम करने की मन्त्राणा देते थे !
यहाँ एक विशेष बात बता दूँ , विवाह के बारह वर्ष बाद तक ह्मारे अम्मा पिताश्री  निःसंतान थे !!ह्मारे भैया लम्बी प्रतीक्षा कराके के ,बड़ी मनौतियों के फलस्वरूप मिले थे !प समझ सकते हैं कि इसीलिये  कुछ न कुछ विशेषता तो उनमें थी ही ! हमारे माता पिता के लिए वह "कोहिनूर" हीरे के समान अनमोल थे ! कभी कभी पिताश्री उन्हें Prince of Wales  कहकर पुकारते थे ! उनकी सारी इच्छाएं व्यक्त करने से पहले ही पूरी कर दी  जातीं थीं !अस्तु ,१७ वर्ष की छोटी अवस्था में ही उन्हें  सन.१९४१-४२ में सिनेमा जगत में प्रवेश करने के लिए  बंबई जाने की अनुमति मिल गयी !

क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"




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