शनिवार, 20 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 2

हनुमत कृपा अनुभव

चलिए देखें कि १९४२ में जब बड़े भैया के साथ चौपाटी में ये घटना घटी तब देश की स्थिति कैसी थी !

प्रियजन ,हमारे राष्ट्र पिता बापू द्वारा चलाये शांति पूर्ण असहयोग आन्दोलन का बर्बरता से दमन करने की अपनी पशुवत क्षमता प्रदर्शित करने के लिए अंग्रेज सरकार ने उस दिन,चौपाटी पर ही नहीं वरन देश के विभिन्न भागों में निहत्थी भारतीय जनता पर बड़े बड़े ज़ुल्म किये ! सब प्रकार से हमे दुःखी करके उन्होंने यह लोकोक्ति सही साबित कर दी क़ि "पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं "

देशविदेश में खाद्य सामग्री के प्रचुर भंडार होते हुए भी भारतीयों को भूखा मरने प़र मजबूर किया गया ! देश के अनाज के भंडार जला दिए गये ! अमेरिका से आयातित गेहूँ भारत पहुंचने ही नहीं दिया , अन्यत्र भेज दिया गया ! हमें याद है एक अमरीकी जहाज़ का गेंहू तो हिंद महासागर में डाल दिया गया था ! पूरा देश एक भयंकर भुखमरी के कगार प़र खड़ा था ! बंगाल में दुर्भिक्ष से हजारों लोग भूख से प्राण गँवा चुके थे ! इसके अलावा "महात्मा गांधी जिंदाबाद " का नारा लगाने भर से लोगों को बड़ी बेरहमी से पीटा जाता था और !जेलों में डाल दिया जाता था !

हमारी जन्म भूमि ,बलिया की स्थिति थोड़ी भिन्न थी ! बलिया के ,नौजवान शेर नेता "चीतू पाण्डे" ने अंग्रेजों की दमन नीति से खीझ कर उन्हें "गुरिल्ला लड़ाई " में ऐसा फँसाया कि उनके नाक में दम हो गयी ! यहाँ तक कि कुछ दिनों के लिए उन्होंने बलिया को अंग्रेजी शासन से मुक्त ही करा लिया ! बलिया जेल के सभी राजनैतिक कैदी छोड़ दिए गये ! कलेक्टर साहिब और पुलिस कप्तान ने जिले की बागडोर कांग्रेसियों के हाथ में सौंप दी और उनसे आज्ञा ले ले कर राज काज चलाने लगे ! लेकिन दोबारा बलिया प़र कब्ज़ा कर लेने के उपरांत अंग्रेजों ने जो दमन नीति अपनाई और जितने जघन्य अत्याचार किये उन्हें याद करते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं ! 


अंग्रेज़ी सरकार के हाथों नाना प्रकार के कष्ट झेल कर भी अधिकाश भारतवासी अपनी बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय भावना से प्रेरित हो विश्व कल्याण हेतु प्रार्थना करते रहे
ॐ सर्वेषाम स्वस्तिर भवतु , सर्वेषाम शांतिर भवतु , 
 सर्वेषाम पूर्णं भवतु सर्वेषाम मंगलम भवतु " तथा 
 "ॐ शांति शांति शांति" 
इन वेद मन्त्रों के उच्चारण से अदम्य सहनशक्ति ,शांतिप्रियता,एवं निष्काम सेवा करने की प्रवृत्ति अर्जित कर शांति प्रिय भारतीय अपने शोषक शासक की भी सेवा करने को सदा तत्पर रहे ! इसी भावना से प्रेरित हो उन्होंने उस समय चल रहे विश्व युद्ध (द्वितीय) में अंग्रेजों के साथ कंधे से कंधा मिला कर दुश्मनो से लड़ना स्वीकार किया !

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