हनुमत कृपा - अनुभव
हमारे सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महराज
कभी कभी सोचता हूँ कि हमारा क्या होता यदि हमारे "सद्गुरु" इस जीवन में हमें नहीं मिले होते ? और हम पर इतनी कृपा करके उन्होंने हमें अपने परिवार में सम्मिलित नहीं किया होता और "नाम दान " देकर हमारा जीवन न सुधारा होता ?
बचपन में एक पारंपरिक भजन गाता था
नैया पड़ी मझधार , गुरु बिन कैसे लागे पार ,
नैया पड़ी मझधार !
मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार ,
तुम दाता दुःख भंजना मेंरी करो सम्हार !
अवगुण दासकबीर के बहुत गरीब निवाज ,
जो मैं पूत कपूत हौं तहूँ पिता की लाज !
गुरू बिन कैसे लागे पार
नैया पड़ी मझधार , गुरु बिन कैसे लागे पार , नैया पड़ी मझधार !
साहेब तुम मत भूलियो लाख लोभ लगिजायं
हमसे तुमरे और हैं तुमसा हमरा नाहिं!
अंतरजामी एक तुम आतम के आधार
जो तुम छोडो हाथ गुरू जी कौन लगावे पार !
गुरु बिन कैसे लागे पार
नैया पड़ी मझधार , गुरु बिन कैसे लागे पार , नैया पड़ी मझधार !
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सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त करने के बाद महराज जी के निजी अनुभव तथा वेदादि पौराणिक शास्त्रों के गहन अध्धयन से उनके द्वारा उपार्जित ज्ञान को उनके साहित्य में पढने, प्रवचनों में सुनने एवं जीवन में प्रत्यक्ष अनुभव करने का अवसर मुझे मिला ! बोनस सदृश्य मुझे उनकी प्रेरणा और आशीर्वाद से जीवन भर अन्य सिद्ध महात्माओं के सानिध्य के सुअवसर भी मिलते रहे ! इन संतों से भी मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला ! इसका श्रेय महाराज जी को इस लिए देता हूँ क्योंकि उनकी कृपा से प्राप्त प्रेरणा ने मुझे कभी किसी अयोग्य - असंत व्यक्ति से मिलने ही नहीं दिया !! परम गुरू तेरी जय होवे !!
!!स्वामी जी महाराज से प्राप्त उपदेशों का सारांश !!
महाराज जी ने केवल राम नाम आराधना का प्रचार प्रसार ही नहीं किया , उन्होंने मानव जीवन के समग्र विकास की ओर सभी साधकों का ध्यान आकर्षित किया !उन्होंने अपने
प्रवचनों में साधकों को उनके चार अभीष्ट , चार कर्तव्य , तथा उन चार साधनों के विषय में बताया है जिनके द्वारा साधक अपना जीवन सार्थक कर सकते है !
हमारे चार अभीष्ट
१. दैनिक प्राथमिक आवश्यकताएं : रोटी, कपड़ा और मकान
२. इन्द्रियों का सुख
३. मन को शांति
४. आत्मा को आनंद
हमारे चार कर्तव्य
१. स्वास्थ्य रक्षा
२. आराधना - सुमिरन भजन मनन
३. स्वधर्म पालन
४. सेवा
हमे उपलब्ध चार साधन
१. मानव शरीर
२. क्रिया --शक्ति
३. विवेक -शक्ति
४. भाव -- शक्ति
महाराज जी ने अपने विभिन्न प्रवचनों में उपरोक्त " मानव दर्शन " के सार, इन बारह तथ्यों की विस्तार से व्याख्या की है ! आज्ञा मिली , तो मैं महराज जी के उन वचनों के संक्षिप्त सारांश अगले संदेशों में आपकी सेवा में प्रेषित करूँगा !
सादर आभार -- श्री महाराज जी के अनन्य भक्त , राम नाम में अटूट श्रद्धावांन स्वर्गीय माननीय श्री शिवदयाल जी ,भूतपूर्व चीफ जस्टिस , म.प्र. !!
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निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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