अनुभवों का रोजनामचा
आत्म कथा
दुनिया वालों की नजर में पिताश्री को शनिदेव की कुदृष्टि के कारण कष्ट थे ! लेकिन वास्तव में उन्हें कोई कष्ट महसूस नहीं होता था ! वह अपने इष्टदेव श्री हनुमान जी की क्षत्रछाया में सदा आनंदित ही रहते थे ! जब कभी हम बच्चे और अम्मा तनिक भी दुखी दीखते वह हमें समझाते और कहते थे कि, " बेटा जब "उन्होंने'" दिया हमने खुशी खुशी ले लिया , आज वापस मांग लिया तो हम दुखी क्यों हो रहे हैं ? मैंने किसी गलत तरीके से कमाई नहीं की थी ये बात 'उनसे' अच्छी तरह और कौन जानता है ? हमे "उनकी" कृपा पर पूरा भरोसा है ! आप लोगों की भी सारी आवश्यकताएँ और उचित आकांक्षाएँ वह समय आने पर अवश्य पूरी करेंगे ! आप लोग भविष्य की सारी चिंता उन पर ही छोड़ दें !"
नीम करौली बाबा
मै वो कथा कहने जा रहा था जिसमे एक अन्य रेल दुर्घटना में श्री हनुमान जी ने मेरे ऊपर एक बार और कृपा की थी ! तभी कदाचित हनुमान जी की ही प्रेरणा ने मेरा ध्यान 'उनके' एक अति चमत्कारी भक्त की और घुमा दिया ! मुझे याद आयी वह विशेष घटना जिसने मानवता को एक ऐसे दिव्य संत से परिचित कराया जो कालान्तर में नीम करोली अथवा नीव करोरी बाबा के नाम से विश्व विख्यात हुआ!लीजिये पहले वह कथा ही सुन लीजिये
यह घटना भारत के स्वतंत्र होने से पहले की है ! मैं बहुत छोटा था ! मेरे एक चाचाजी उन दिनों मैनपुरी (यु.पी) में रहते थे , वह इस घटना के प्रत्यक्ष दर्शी थे मैंने उनसे ही यह कथा सुनी थी !चाचा जी ने बताया की एक दिन वह रेल में शिकोहाबाद से कहीं जा रहे थे ! एक बहुत छोटे बिना प्लेटफार्म वाले "halt" पर उनकी ट्रेन अकारण ही काफी देर के लिए खड़ी हो गयी !इंजिन ड्राइवर की लाख कोशिशो के बावजूद भी उसका कनेडियन इंजिन गाड़ी खींचने में असमर्थ हो गया था ! बार बार भट्टी में कोयला झोका गया , स्टीम का दबाव पूरा लगा दिया गया , गाड़ी टस से मस नहीं हुई !
ट्रेन का एंग्लो इंडियन गोरा गार्ड बार बार सीटी बजा कर हरी झंडी दिखा रहा था ! जब बहुत देर तक गाड़ी आगे नहीं बढी तब उसने एक टी सी को ड्राईवर के पास दौड़ाया ! ड्राइवर ने अपनी बेबसी बता कर टी सी को गार्ड के पास वापस भेज दिया ! काफी देर तक बेचारा टी. सी., 'शटल कोक' की तरह आगे पीछे भागता रहा ! बौखलाकर गोरा गार्ड स्वयम इंजिन पर चढ़ कर अपने हाथ से इंजिन चालू करने का प्रयास करने लगा ! पर गाड़ी नही चली !
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आज इतना ही ,पाठकों ,गाड़ी कल चल जायेगी और कहानी भी आगे बढ़ जायेगी !
निवेदक: व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
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