बुधवार, 9 मार्च 2011

आत्म कथा ( # 3 1 3)

अनुभवों का रोजनामचा 
आत्म कथा 

पिछले दो तीन दिवसों में ही "उनकी" कृपा के  दो अनुभव हुए ! पहला था उनके द्वारा  मुझे मेरी अपनी न्यूनताओं का ज्ञान कराना , प्रियजन जो बिना हरि कृपा के हो ही नहीं सकता ! आपने देखा ,"उन्होंने" मेरे जैसे अज्ञानी प्राणी को जो अपने आप को "ज्ञान का भण्डार" मान  कर इठलाता फिरता है  उसे उसकी वास्तविकता से परिचित करवा  दिया ! मेरी आँखें खोल दीँ !


मेरे कृपानिधान इष्ट देव ने जो मुझपर दूसरी कृपा की वह बड़ी चमत्कारिक थी ! ज़रा देखिये "उन्होंने" मुझे सावधान तो किया पर हताश होकर मुझे "राम काज" छोड़ने नहीं दिया ! यह उनकी दूसरी कृपा थी ! मुझ साधारण मरकट को मेरी क्षमताओं का ज्ञान कराते हुए उन्होंने पहले कहा कि "राम काज लगि तव अवतारा"और इस प्रकार मुझे प्रोत्साहित करने  के बाद , मुझ पर पूरा भरोसा जता कर "उन्होंने" मुझे आशीर्वाद दिया और कहा " राम काज सब करिहो तुम बल बुद्धि निधान"!

कहां मिलेगा किसी को ऐसा उदार स्वामी जो "बिनु सेवा ही द्रवे दीँन पर", जो मुझ जैसे  साधन हींन व्यक्ति  पर इतनी कृपा , इतना अनुग्रह , इतने उपकार करेगा ? 



ऐसो को उदार जग माही
बिनु सेवा जो द्रवे दीँन पर , राम सरिस  कोऊ नाहीं !!
ऐसो को उदार जग माही


प्रियजन, स्वर से उन्हें रिझाने का प्रयास करने वाला  साधक हूँ ,
संत शिरोमणि रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास जी की  
रचनाएँ बरबस ही कंठ से प्रस्फुटित होने लगीं हैं 

हरि तुम बहुत अनुग्रह कीनी
 साधन हींन विविध दुर्लभ तन मोहिं कृपा कर दीन्हीं !!
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कोटिन मुख कहि जात न प्रभु के एक एक उपकार  
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हरि तुम बहुत अनुग्रह कीनी 

मेरे प्यारे पाठकों आपको बता दूँ ,गुरुजनों से जो सुना है 
और जो मुझे अक्षरश: सत्य लगा

बिनु हरि कृपा  विवेक न होई
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई

और 

गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन,
बिनु हरि कृपा न  ह़ोई  सो  गावहीं  वेद  पुराण 


मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे सिद्ध सद्गुरु मिले, और आजीवन आप जैसे स्वजनों का ऐसा सत्संग मिला जो साधारणत: दुर्लभ है !

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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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