मंगलवार, 1 मार्च 2011

ॐ नमः शिवाय # 3 0 6

           महा शिवरात्रि
  "ॐ नमः शिवाय"                                                                            
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जी में आरहा है कि आज हम आप सब प्रियजनों के साथ मिल कर समवेत स्वरों में पूरी श्रद्धा एवं निष्ठां से ,गुरुजनों के भी सद्गुरु ,सर्व गुण सम्पन्न ,सर्व शास्त्रों के ज्ञाता ,
सर्वकला पारंगत , राम भक्त , देवाधिदेव , भोले नाथ शिव शंकर की वन्दना करें :

    कर्पूरगौरम  करुणावतारम  संसारसारं  भुजगेंद्रहारम  
     सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि 

कर्पूर के समान चमकीले गौर वर्णवाले ,करुणा के साक्षात् अवतार, इस असार संसार के एकमात्र सार, गले में भुजंग की माला डाले, भगवान शंकर जो माता भवानी के साथ 
भक्तों के हृदय कमलों में सदा सर्वदा बसे रहते हैं ,हम उन देवाधिदेव की वंदना करते हैं !!


नमामि    देवं  वरदं  वरेण्यम , नमामि  देवं  च सनातनम !
नमामि देवाधिपमीश्वरम हरे , नमामि शम्भुम जगदैकबन्धुम   !!

              सब को (निःसंकोच) वर देने वाले, (निश्चय ही) देवताओं में सर्व श्रेष्ठ 
                       (वास्तव में) सब देवताओं (समस्त सृष्टि) के पालन हारे 
                                 शंकर शिव शम्भु को मैं प्रणाम करता हूँ !

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आइये आज से लगभग ६० वर्ष पूर्व रचित एक "शंकर वंदना" आपको सुनाऊ ! कोलकता की एक रेकार्डिंग कम्पनी 'स्टार हिन्दुस्तान',लखनऊ आयी थी, शिवरात्रि के अवसर पर वह एक शिव वंदना मेरी छोटी बहन माधुरी के स्वर में रिकार्ड करना चाहती थी ! माधुरी का संगीत निदेशक मैं था ,अस्तु इस वन्दना की सस्वर रचना प्रभु आज्ञा से मेरे द्वारा हुई !


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शंकर शिवशम्भू साधु संतन सुखकारी !
सतत जपत राम नाम अतिशय सुखकारी !!
शंकर शिवशम्भु साधू संतन सुखकारी !!

राम नाम मधुबन का भ्रमर बना मन शिव का !
निश दिन सुमिरन करता नाम पुण्यकारी !!
शंकर शिवशम्भु साधु संतन सुखकारी !!

लोचानत्रय अति विशाल, सोहे नव चन्द्र भाल !
रुंड मुंड  व्याल  माल,  जटा  गंग  धारी !!
शंकर शिवशम्भु साधु संतन सुखकारी !!

पार्वती पति सुजान , प्रमथराज बृषभ यान !
सुरनर मुनि सेव्य मान, त्रिविधि ताप हारी !!
शंकर शिवशम्भु साधु संतन सुखकारी!! 

औघड़ दानी महान , कालकूट कियो पान !
आरतहर  तुम समान , को   है त्रिपुरारी !!
शंकर शिवशम्भु साधु संतन सुखकारी !!

(भोला)
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प्रियजन ! उपरोक्त शब्द स्वर रचना के विषय में ,अपने "इष्टदेव" की अहेतुकी कृपा का एक अनुभव यदि आपको नहीं बताऊंगा तो बड़ा अन्याय होगा , इसलिए सुना देता हूँ :

इस रेकार्डिंग के लगभग २० वर्ष बाद १९७५-७८ में ,मेरी पोस्टिंग गयाना (साऊथ अमेरिका) में हुई ! वहाँ एक शिवरात्रि को हम बालबच्चों के साथ जोर्जटाऊन के हिन्दू मन्दिर में पूजा करने गये ! वहां एक स्थानीय स्कूल की भारतीय मूल की कुछ गयाना की  ही बालिकाएं भजन एवं नृत्य के कार्यक्रम पेश कर रही थीं ! हम सब को बहुत ही आश्चर्य हुआ जब उन बच्चों ने स्टेज पर आकर शंकर जी की वन्दना में मेरा उपरोक्त भजन गाया ! कार्यक्रम के अंत में उनके गुरु जी ने बताया कि उन्होंने यह वन्दना "रेडिओ सूरीनाम" से सीखी थी !  ( सूरीनाम साउथ अमेरिका में गयाना के उत्तर पूर्वव में स्थित एक डच उपनिवेश था )

अगली सुबह जब हमने "रेडिओ सूरीनाम" ट्यून किया हमारा रात वाला विस्मय (थोडा गर्व मिश्रित ) हर्ष में परिणित हो गया क्योंकि मेरी वह शंकर वन्दना उस विदेशी रेडिओ स्टेशन की "सिगनेचर" ट्यून  के रूप में कार्यक्रम के शुरू होने से पहले बजायी गयी! बाद में जाना की वह वन्दना उस स्टेशन के स्थापित होने वाले दिन से रोज़ बज रही है !

मैं नत मस्तक प्रभु को याद कर रहा था उनका नमन कर रहा था , उनको धन्यवाद दे रहा था ! मेरे जैसे अनाड़ी कवि गायक स्वर संयोजक को जिसे भारत में ही कोई नही जानता उसकी रचना उन्होंने भारत से हजारों मील दूर उस देश में ,मेरे वहां पहुचने के पन्द्रह बीस वर्ष पहिले ही भेज दी ! 
                       
                          हे प्रभु तुम्हारी जय होवे ! जय होवे !जय होवे!

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                             निवेदक:  व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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