आभार (२)
मेरे ब्लॉग की भाषा के विषय में चर्चा चल रही थी ! ये बताना भूल गया था कि भाषा की क्लिष्टता से दुखी मेरे नाती पोतों की दादी श्रीमती डोक्टर कृष्णा श्रीवास्तव जी भी हुईं !
हाँ आपको बता दूं ,मैं तो मगर्वारा -संडीला के बीच डोलता रह गया ,वो "मानस" पर शोध करके बंबई यूनिवर्सिटी से "डाक्टरेट" झटक भी लायीं ! योग्यता के आधार पर मेरे ब्लॉग के "चीफ एडिटर",मेरे प्रेरणा स्रोत "प्यारे प्रभु " ने उनको ही धरती के प्रकाशनों के लिए अपना डेपुटी एडिटर नियुक्त करके मेरे लेख के सम्पादन का भार उन्हें ही सौंप दिया !
वैसे ही पिछले ५ ४ -५ ५ वर्षों से उनकी निगरानी झेल रहा हूँ ! प्रियजन मैं जानता हूँ वह बुरा नहीं मानेंगी क्योकि वो जानती हैं कि वास्तव में मैं उनके सहारे ही जी रहा हूँ ! (थोड़ी बहुत नोक झोक तो अमरीकी दम्पत्तियों के बीच भी चल जाती है - इतनी छोटी सी बात पर हमारा अर्ध शताब्दी से भी लम्बा नाता वो नहीं तोड़ेंगी )
उनका कहना है कि मेरी भाषा (कठिन या क्लिष्ट ही नहीं बल्कि) "जटिल"है ! कहती हैं कि शंकर जी कि जटाओं के समान मेरे वाक्य उलझे पुलझे होते हैं ! सोचता हूँ उनसे कहूँ कि "कृष्णा जी , कभी उनमें सुरसरि की अमृत धारा का प्रवाह भी देखिये "
देखा आपने कि उस ऊपरवालों ने कहाँ मोड़ दिया मुझे ! अब कह रहे हैं "वत्स , अपनी- उनकी ५५ वर्ष की कथा लिखने बैठोगे तो दिवस ढल जायेगा ,जो लिख रहे हो वही कथा आगे बढाओ !"
अपनी "ग्रांड डाटर"(यदि पोती कहता तो कोई पूछता "पोती ? व्हाट बाबा ?" इसलिए सीधे 'जी.डी.' ही कह दिया) ,शिवानी की परेशानी कम करने की कोशिश कर रहा हूँ ! कल से ही अपने ब्लॉग की हिन्दी भाषा में लखनउआ जुबान का तड़का लगा रहा हूँ ! आशा है हमारे बच्चों को अब उनके बाबा की भाषा कुछ समझ में आयेगी !
अब बताऊँ अपनी मनः स्थिति के विषय में ! पारिवारिक "ब्लोगर्स मीट" में 'कमेंट्स' सुन कर मन उदास हुआ ! मैं तो अपने "राम का काम"कर रहा हूँ, "उनकी" ही प्रेरणा से और उनकी ही इच्छा के अनुसार ! "वह" अपना पूर्णाधिकार भी गाहे-बगाहे जताने से नहीं चूकते ! जब भी जितना भी जी में आता है 'सेंसरिया' कैंची चला ही देते हैं !मुझे दुःख तो इसका है कि करे कोई और भरे कोई ! प्रियजन ,आप समझदार हैं जानते ही होंगे :
"करे दोष सब '"ऊपर वाला" ! फंस जाता 'भोला' बेचारा "
सच तो यह है कि
नाहक ही यूं बदनाम हुए जा रहा हू मैं !
दानिश्ता सब गुनाह किये जा रहा हूँ मैं !!
"भोला"
हिंदी वालों को समझा दूँ इसका अर्थ : नाहक = मेरा हक नही फिर भी ,व्यर्थ ही !बदनाम तो कलियुग में हर नेक काम करने वाला होता है , आप भी सज्जन हैं ,कभी न कभी हुए ही होंगे ! और दानिश्ता = जान बूझ कर ! समझ गये ?
पर मेरे जैसे बगुला भक्तों को भी मेरा प्यारा "वह" कभी निराश नहीं करता ! मुझे उदास देख कर वह निर्मोही भी द्रवित हुआ और उसने एक चमत्कार कर दिखाया ! मेरा अगले दिन का ब्लॉग देख कर अचानक ही अनेक हिंदी भाषा प्रेमी आत्माओं ने अपने स्नेहिल
दामन से मेरी नम आँखों से छलकते अश्रु बिन्दुओं को पोंछ दिया !
दामन से मेरी नम आँखों से छलकते अश्रु बिन्दुओं को पोंछ दिया !
विशेष आभार
मेरे प्रिय नवीन पाठकों , आपका स्वागत है ! आप एक बुज़ुर्ग (८२ वर्षीय ) प्रभु के प्रेमी को उसके प्यारे प्रभु की आज्ञा पालन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हो ! कितना बड़ा उपकार आप मुझ पर कर रहे हो मेरा मन ही जानता है ! यह लिखते समय मेरी आँखें अनुग्रह के अश्रु से भर गयी हैं , मेरी "त्रि-स्तेंतित" धमनियों से, थम थम कर रक्त पाने वाला , औषधियों के सहारे स्पन्दित होता , यह मेरा बेचारा "हृदय" कितना द्रवित है ,काश आप देख पाते !
आपका कितना बड़ा आभार है , उससे उरिण हो पाना मेरी इस जर्जर काया के लिए तो
असंभव है पर मेरी चिरंतन आत्मा अवश्य अभी से आपकी शुभाकांक्षी बन गयी है ! मेरा आभार आप स्वीकारोगे तो आप में बैठा मेरा "प्यारा प्रभु " भी स्वीकार करेगा और मेरे प्यारे स्वजनों ,धन्य हो जाएगा मेरा यह मानव जन्म !
आज धन्य मैं धन्य अति यद्यपि सब विधि हींन
निज जन जानि राम मोहि संत समागम दीन !!
"तुलसी"
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क्रमशः
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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क्रमशः
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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