सोमवार, 28 मार्च 2011

अनुभवों का रोजनामचा # 3 3 1

अनुभवों का रोजनामचा   

हनुमानजी के परम भक्त - साक्षात् हनुमान जी के अवतार 


 Maharajji 

संत शिरोमणि "नीम करोली बाबा"

रेलगाड़ी से सम्बन्धित हनुमत कृपा का अपना एक अन्य अनुभव मैं आपको सुनाना चाहता था कि मेरे 'प्रेरणा स्रोत' ने मेरे विचारों की धारा को एक महान संत के जीवन की ओर मोड़ दिया और मुझे सुझाव दिया कि अपना निजी अनुभव सुनाने से पहले मैं आपको "महान हनुमंत भक्त" बाबा नीब करोरी की रेलयात्रा से जुड़े एक चमत्कार से आपको अवगत  करा दूं  ! पिछले सन्देश में मैंने वह कहानी शुरू भी कर दी थी !

मेरे चाचाजी ने सुनाया था की एक नौजवान संत जो देखने में सौम्यता की साकार मूर्ति लग रहे थे ,जिनमे न कोई आडम्बर था न कोई दिखावा और जिनका परिधान केवल एक मोटी धोती तथा एक कम्बल था एक दिन रेल द्वारा प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे ! उनके पास प्रथम श्रेणी का टिकिट न होने के कारण टिकिट चेकर ने रेल मार्ग में पड़ने वाले एक 'झंडी वाले' ( FLAG)  स्टेशन पर गाड़ी रुकवाकर उन्हें जबरदस्ती डिब्बे से नीचे उतार दिया ! आगे क़ी थोड़ी कथा आप सुन चुके हैं की उसके बाद कैसे वह गाड़ी उस स्थान से आगे नहीं बढ़ रही थी और कैसे गोरे गार्ड साहेब स्वयम इंजिन पर चढ़ कर भाफ का प्रेसर चेक कर रहे थे ! अब आगे सुनिए :

सफेदपोश गोरा गार्ड और इंजिन ड्राइवर बड़ी देर तक जूझते रहे ! उन्हें इंजिन में कोई भी तकनीकी खराबी नजर नहीं आई , वे चकित थे की , सब कुछ ठीक ठाक होते हुए भी वह इंजिन उस गाड़ी को एक इंच भी आगे या पीछे क्यों नहीं खिसका पा रहा था ! सभी चिंता में थे की ऐसा क्या हो गया जो पटरी पर खड़ी गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही थी !

ट्रेन में एक उच्च सरकारी अधिकारी भी सफर कर रहे थे जिन्हें कमिश्नरी में किसी ज़रूरी पेशी के लिए समय से पहुचना था ! इधर ये गाड़ी थी जो आगे बढने का नाम नहीं ले रही थी !उनके डिब्बे में गाडी के इंजिन क़ी भयंकर स्वास प्रस्वास और जोर जोर से हाफ्ने क़ी हाहाकार तथा कभी कभी उसके पहियों के सरकने की चीत्कार सुनाई दे जाती थी ,पर गाड़ी वहीं क़ी वहीं खड़ी रह जाती थी ! साहेब का वर्दीपोश अर्दली अपने servant classs के डिब्बे से निकल कर साहेब क़ी जी हुजूरी में इर्द गिर्द टहल  रहा था ! साहेब ने उसे निकट बुलाकर आदेश दिया " मोहम्मद जरा तहकीकात करिये की आखिर माजरा क्या है , यहाँ इतनी देरी क्यों लग रही है "! मोहम्मद मियां ने पांच मिनट में अपनी रिपोर्ट साहेब बहादुर के आगे पेश कर दी ! साहेब खिडकी से बाहर झांक कर प्रतीक्षा करने लगे की कोई  रेल का  अधिकारी सामने से गुज़रे तो उसे वह बता सकें की समस्या क्या है और उन्हें क्या करना चाहिए जिससे गाड़ी आगे बढ़ सके !

इत्तेफाक से थोड़ी देर में थके हारे हताश निराश गोरे गार्ड साहेब और उस ट्रेन के प्रमुख टिकेट चेकर महोदय आगे इंजिन से हारी मान कर ट्रेन के पीछे गार्ड के डिब्बे क़ी और जाते दिखाई दिए ! सरकारी अधिकारी ने उन्हें रोका और गोरे गार्ड को अपने पास बैठा कर उससे कुछ बातें कीं !

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क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव " भोला"
सहयोग : श्रीमती (डॉक्टर) कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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