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संतों के संत - भक्तों के शिरोमणि -
नीम करोली बाबा
नीम करोली बाबा
कम्बल
mआवृत
प्रियजन !कम्बल ओढ़े इन साधरण से दिखने वाले दिव्य महापुरुष के चोले में प्रभु की आठों सिद्धियों से युक्त सभी विशेष विभूतियाँ अवतरित हुई ! सामान्य धरातल पर उतर कर उन्होंने भटके हुए मानव को बात ही बात में जीवन जीने की सही राह दिखादी !बाबा ने अति सहजता से , देश विदेश के जन साधारण की झोली में " सहज प्रेम भक्ति का आनंद प्रसाद" डाला ! कर्मठता का पाठ पढ़ाया ! उन्होंने कब और कैसे सम्पर्क में आयी संतप्त मानवता का ताप हरन किया और अनगिनित साधकों को ज्ञान वैराग्य युक्त सात्विक जीवन जीने की कला सिखा दी, किसी को पता भी नहीं चला !
यह भी अनेकानेक सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि बाबा ने "महासमाधि" के पश्चात भी साकार स्वरूप में अपने आश्रितों को आश्रय दिया है ! बाबा नीब करोरी की महासमाधि के विशेष आयोजन पर पधारे स्वामी शिवानन्द आश्रम के श्री चिदानान्दजी महाराज ने अपने वक्तव्य में बाबा को श्रद्धांजिली अर्पित करते हुए उन्हें एक पूर्णतः सिद्ध महापुरुष तथा त्रिकालज्ञानी की उपाधि से अलंकृत किया !
गार्हस्थ आश्रम में विरक्त संत सा जीवन जीना ,परपीडाओं,संतापों और कष्टों को अपने ऊपर लेकर पीड़ितों को कष्टमुक्त करना बाबा का सहज स्वभाव था ! आगंतुकों को भोजन करवाना उन्हें अति प्रिय लगता था ! उन्होंने अपनी "अन्न्पूर्णा-सिद्धिं" का प्रयोग अनेक बार किया ! उनके अन्न भंडार में प्रसाद वितरण के समय कभी भी किसीने कोई कमी महसूस नहीं की !
अनगिनत आत्मीय स्नेहियों की जीवन रक्षा ,उनका लालन पालन पोषण तथा कष्ट निवारण बाबा ने समय समय पर अपने ऊपर पड़े "कम्बलों" की ओट में किया ! उनके द्वारा ओढ़े "कम्बलों " के चमत्कारी प्रतिभा की अनेक कहानियाँ सुनने को मिलती हैं !
कृष्ण भक्त "रसखान" ने जो विशेषता "गोपाल कृष्ण" की काली कमली में देखी थी "
कुछ उस श्रेणी की ही विलक्षणता प्यारे बाबा के शरीर को ढकने वाले कम्बलों में भी होती थी ! ( भाई उन कहानियों के चक्कर में पड़ा तो मुश्किल होगी )
जिन शाश्वत सात्विक मूल्यों को उन्होंने अपने जीवन में जिया उन्हें ही दुनियावालों को सिखाया भी !
काम में राम देखो ! काम ही पूजा है ! मस्तिष्क को सांसारिकता से दूर रखो ! बेकार विचारों को रोक न पाओगे तो प्रभु को कैसे पाओगे ? प्रेम करो ! तुम जितना भी प्यार बाटोगे उसका कई गुना होकर प्यार तुम्हे मिलेगा ! जानते हुए किसी को भूखा न रहने दो ! जितना बन पाए पर सेवा करो !
सर्वशक्तिमान प्रभु को सदा याद रखो ! केवल तुम्हारे शुद्ध आचार - व्यवहार से तुम्हें प्रभु की प्राप्ति हो जायगी ! मोक्ष भी प्राप्त हो जायगा !
प्रतिदिन ईश्वर का स्मरण भजन -पूजन करो ! सत्य वचन बोलो !
सत्य और प्रिय मधुर वचन बोलना , नाम जप करना भी एक तपश्चर्या है जिससे जीव सहजता से मोक्ष पा सकता है ! समय मिलने पर देवालयों और तीर्थ स्थानो की यात्रा भी अपनी सुविधा और सामर्थ्य के अनुसार करते रहो !
जैसे बैंक में अपनी सांसारिक कमाँई जमा करते हो वैसे ही ईश्वर को मन के लोकर में सम्हाल कर रख लो ! राम राम कहते रहो !वख्त जरूरत पर "राम"ही कम आएगा !एक बार राम मन में बस जायेंगे तो मन और आत्मा दोनों ही शुद्ध हो जायेंगे और तुम्हारी मुक्ति सुनिश्चित हो जायेगी ,लख चौरासी के आवागमन का चक्कर छूट जायेगा !
यह भी अनेकानेक सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि बाबा ने "महासमाधि" के पश्चात भी साकार स्वरूप में अपने आश्रितों को आश्रय दिया है ! बाबा नीब करोरी की महासमाधि के विशेष आयोजन पर पधारे स्वामी शिवानन्द आश्रम के श्री चिदानान्दजी महाराज ने अपने वक्तव्य में बाबा को श्रद्धांजिली अर्पित करते हुए उन्हें एक पूर्णतः सिद्ध महापुरुष तथा त्रिकालज्ञानी की उपाधि से अलंकृत किया !
गार्हस्थ आश्रम में विरक्त संत सा जीवन जीना ,परपीडाओं,संतापों और कष्टों को अपने ऊपर लेकर पीड़ितों को कष्टमुक्त करना बाबा का सहज स्वभाव था ! आगंतुकों को भोजन करवाना उन्हें अति प्रिय लगता था ! उन्होंने अपनी "अन्न्पूर्णा-सिद्धिं" का प्रयोग अनेक बार किया ! उनके अन्न भंडार में प्रसाद वितरण के समय कभी भी किसीने कोई कमी महसूस नहीं की !
अनगिनत आत्मीय स्नेहियों की जीवन रक्षा ,उनका लालन पालन पोषण तथा कष्ट निवारण बाबा ने समय समय पर अपने ऊपर पड़े "कम्बलों" की ओट में किया ! उनके द्वारा ओढ़े "कम्बलों " के चमत्कारी प्रतिभा की अनेक कहानियाँ सुनने को मिलती हैं !
कृष्ण भक्त "रसखान" ने जो विशेषता "गोपाल कृष्ण" की काली कमली में देखी थी "
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारों
आठहुं सिद्ध नवों निधि को सुख नन्द की धेनु चराय बिसारों
जिन शाश्वत सात्विक मूल्यों को उन्होंने अपने जीवन में जिया उन्हें ही दुनियावालों को सिखाया भी !
महाराज जी के वचन
काम में राम देखो ! काम ही पूजा है ! मस्तिष्क को सांसारिकता से दूर रखो ! बेकार विचारों को रोक न पाओगे तो प्रभु को कैसे पाओगे ? प्रेम करो ! तुम जितना भी प्यार बाटोगे उसका कई गुना होकर प्यार तुम्हे मिलेगा ! जानते हुए किसी को भूखा न रहने दो ! जितना बन पाए पर सेवा करो !
सर्वशक्तिमान प्रभु को सदा याद रखो ! केवल तुम्हारे शुद्ध आचार - व्यवहार से तुम्हें प्रभु की प्राप्ति हो जायगी ! मोक्ष भी प्राप्त हो जायगा !
प्रतिदिन ईश्वर का स्मरण भजन -पूजन करो ! सत्य वचन बोलो !
कहहि सत्य प्रिय वचन विचारी , जागत सोवत सरन तुम्हारी "
जैसे बैंक में अपनी सांसारिक कमाँई जमा करते हो वैसे ही ईश्वर को मन के लोकर में सम्हाल कर रख लो ! राम राम कहते रहो !वख्त जरूरत पर "राम"ही कम आएगा !एक बार राम मन में बस जायेंगे तो मन और आत्मा दोनों ही शुद्ध हो जायेंगे और तुम्हारी मुक्ति सुनिश्चित हो जायेगी ,लख चौरासी के आवागमन का चक्कर छूट जायेगा !
अंजनि सूत पवन दुलारे
बाबा नीम करोली वारे
तुमको लाखों प्रणाम
हे प्रभु राम चन्द्र के प्यारे ,तुम बिनु को दुखियन को तारे
बाबा नीम करोली वारे
तुमको लाखों प्रणाम
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निवेदन :- श्रीमती (डोक्टर) कृष्णा एवं व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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7 टिप्पणियां:
बाबा नीम करोली वारे
तुमको लाखों प्रणाम |
नीम करोली बाबा के बारे में विस्तृत जानकारी मिली ।
आभार।
धन्यवाद , आज पहिली बार आपके दो ब्लॉग पढ़े! "प्रेम" और "सत्य" दोनों ही विषय आज की दुनिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ! हमने भी अपने सभी लेखों में , "बाबा" की कथा में भी " सत्य , प्रेम ,करुना तथा सेवा" पर विशेष जोर दिया है ! शास्वत सत्य से परिचित होना प्रथम आवश्यकता है ! सत्य को किसी कीमत में छोड़ना नहीं है ! "प्रेम" के बिना तो भक्ति होगी नहीं !और कलि काल में कल्याण का एक मात्र साधन यही है ! बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! बहुत बहुत बधाई ! शुभ कामनाएं ! भोला- कृष्णा
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@--"प्रेम" के बिना तो भक्ति होगी नहीं !और कलि काल में कल्याण का एक मात्र साधन यही है ..
बहुत सुन्दर बात कही आपने । सहमत हूँ आपसे ।
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बहुत सुन्दर जानकारी और आपका लेखन
वर्ड कप और नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
राम राम अंकल, बहुत सुंदर लिखा है अपने नीम करोरी बाबाजी के वचनों के बारे में. जय बाबाजी की, धन्यवाद
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