मो सम दीन न दीन हित तुम समान रघुबीर .
अस बिचारि रघुबंस मणि हरहु विषम भव भीर ..
कामिहि नारि पियारि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम .
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ..
एहि कलि काल न साधन दूजा ! जोग न जग्य जप तप व्रत पूजा !!
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि ! संतत सुनिअ राम गुण गायहि !!
रामचरित मानस के अंतिम छोर पर, उत्तर कांड के आखरी दो दोहों, १२९ तथा १३० (क , ख) में तुलसीदास जी ने एक शाश्वत सत्य उजागर किया है ! उन्होंने कहा कि "इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत, और पूजन आदि ईशोपासन का और कोई साधन कारगर नहीं होगा ! केवल श्रीराम (आपके अपने इष्ट) का नाम स्मरण करने और निरंतर उनका गुण गान करने और उनके गुण समूहों के सुनने से मानव को वही सुफल प्राप्त हो जाएगा जो योगियों को वर्षों की गहन तपश्चर्या के उपरांत मिलता है ! रे मूर्ख मन कुटिलता को त्याग कर तू श्री राम का भजन कर !"
पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना॥
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥1॥
रे पगले मन सुन, पतितों को भी पवित्र करने वाले श्री राम को भजकर किसने परम गति नहीं पाई ? श्री राम ने गनिका, अजामील, गीध आदि अनेकों दुष्टों को तार दिया ! यवन, किरात, चंडाल आदि भी एक बार उनका नाम लेकर पवित्र हो जाते हैं !
रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं।
कलि मल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं॥
सत पंच चौपाईं मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुन अबिद्या पंच जनित बिकार श्री रघुबर हरै ॥2॥
जो मनुष्य रघुवंश भूषन श्री रामजी का चरित्र कहते,सुनते और गाते हैं , वे कलियुग के पाप और अपने मन का मल धोकर बिना कोई श्रम किये "उनके" धाम चले जाते हैं अधिक क्या कहें यदि मनुष्य उनके चरित्र की पांच सात चौपाइयां ह्रदय में धारण कर लें तो उनके पांचो प्रकार की अविद्या तथा उनसे उत्पन्न विकारों को रामजी हर लेते हैं !
सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो।
सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को॥
जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदास हूँ।
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ ॥3॥
केवल श्री राम जी ही ऐसे हैं जो बिना किसी शर्त के अनाथों से प्रेम करते हैं ! "वह" परम सुंदर ,सुजान, और कृपानिधान हैं ! उनकी लेशमात्र कृपा से ही मंदबुद्धि तुलसीदास ने परम शांति पा ली ! श्री रामजी के समान कोई और प्रभु है ही नहीं !
इसलिए जैसे लोभी को धन सम्पदा प्राणों से भी प्रिय लगती है और वह सतत उसी का चिन्तन -मनन करता है वैसे ही प्रत्येक जीवधारी यदि सतत अपने परमसत्य-स्वरूप "इष्ट" का ध्यान करे, "उनका" निरंतर स्मरण और चिन्तन करते हुए समस्त जगत-व्यवहार करे, तो वह चाह कर भी पाप-कर्म नहीं कर पायेगा, वह केवल सत्कर्म ही करेगा ! तभी जीव की जय होगी, मानवता की विजय होगी, जग जीवन सार्थक होगा !
इसलिए जैसे लोभी को धन सम्पदा प्राणों से भी प्रिय लगती है और वह सतत उसी का चिन्तन -मनन करता है वैसे ही प्रत्येक जीवधारी यदि सतत अपने परमसत्य-स्वरूप "इष्ट" का ध्यान करे, "उनका" निरंतर स्मरण और चिन्तन करते हुए समस्त जगत-व्यवहार करे, तो वह चाह कर भी पाप-कर्म नहीं कर पायेगा, वह केवल सत्कर्म ही करेगा ! तभी जीव की जय होगी, मानवता की विजय होगी, जग जीवन सार्थक होगा !
सुनने के लिए 'श्री राम गीत गुंजन' से लिए 'पाई न केहि गति' के निम्न साउंड ट्रेक को "प्ले" करलें
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निवेदक: व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव
श्रीमती श्री देवी कुमार
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15 टिप्पणियां:
Pranat Pal Raghuvansh Mani Karuna Sindhu
Mo Sam din na din hit tum saman Raghuvir full lekh
सही कहा आपने।
हां अगर हो सके तो पुरा किजिये दोहे को।
🌱 जय श्री राम 🌱
सही कहा आपने।
प्रनतपाल रघुबंसमनी करुणासिंधु खरारि।
गये शरण प्रभु राखिहैं सब अपराध विसारि
मो सम दीन न दीन हित तुम समान रघुवीर।
अस बिचारि रघुबंसमनि हरहु विषम भव भीर।।
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम
Pura kare dohe ko....
Daas maluka keh gye, sabke data Ram
Ye pdf me milega kya
Ek ghadi, aadhi-ghadi.. aadhaon me puniyap
Tulsi sankat saadhu k, kate koti apraadh
Arth, dharm, na kaam ruchi, gati na chahun nirvan
Shri Ram chandra k pad-kamal, Vindh rahe hanuman!
Siya ram chandra ki jaye
Das Malika you kahe sable data ram
चित्रकूट की गेर में मुक्ति रहे बिखलाए।
मुक्ति कहे रघुनाथ से मेरी मुक्ति बताए।।
Yek dam sahi hai
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