वो दिलदार गायक
"मुकेश"
मुबारक हो सब को समा वों सुहाना
कि जब सुन पड़ा दर्दें दिल का तराना
वो 'पहली नजर' के जलेदिल का गाना
न फरियाद करने का था जो बहाना
"भोला"
ऊपर चित्र में बम्बई के एक संगीत समारोह में मुकेश जी और मैं
(बीच में है मेरा भतीजा गायक निदेशक अनुराग तथा कार्यक्रम के एम् सी)
आज से ६६ वर्ष पूर्व ,१९४५ में ,दिलवाली दिल्ली के बिरादराना रिश्ते से करीबी 'कजिन' - बड़े भैया जैसे ,हीरो -मोतीलाल जी पर फिल्मायी,अनिल बिस्वास जी द्वारा स्वरबद्ध , फिल्म 'पहली नजर' में गायी एक गज़ल:
दिल जलता है तो जलने दे आंसूँ न बहा फरियाद न कर
तू पर्दानशीं का आशिक है यूं नामे वफा बर्बाद न कर
से सहसा (ओवर नाईट) ही ख्याति के शिखर पर पहुंचे गायक :
मुकेश जी का जन्म दिन है बाइस जुलाई .
सभी उनके भक्तों को हार्दिक बधाई
"भोला"
बहुत दिनों से सोचे बैठा था कि इस वर्ष मुकेश जी के जन्म दिन पर ,गायकों में अपने आदर्श
(आजकल शायद जिनको "मेंटर" कहते हैं ) मुकेश जी के विषय में कुछ लिखूँगा ! याददास्त की कमजोरी का असर देखिये कि अपना जन्म दिवस जो इसी महीने आज से ११ दिन पहिले पड़ा था याद रहा लेकिन सगीत के क्षेत्र में अपने आदर्ष रहे ,बड़े भाई सदृश्य (ऊपर छपी फोटो में देख लीजिए - बिलकुल उनका छोटा भाई लगता हूँ न?) मुकेश जी का जन्मदिन याद नहीं रहा ! खैर अपने प्रेरणा स्रोत ने यथासमय याद दिला दिया, आभार व्यक्त करता हूँ "उनका"!
कानपूर का हमारा घर जिसमें मैं शैशव से आज तक रहा , उसे हमारे स्वजन संबंधी ,पड़ोसी और मित्रगण "गन्धर्व लोक" कहते थे ! क्यों ? नित्यप्रति प्रातः काल की अमृत बेला से शुरू होकर , मध्य रात्रि तक इस घर की प्राचीरों के बीच उठतीं मधुर भक्ति संगीत की तरंगें आस पास के सभी घरों को आच्छादित और पड़ोसियों को आनंदित करती थीं ! कैसे ? सुनिए:-
मेरे बड़े भैया प्रसिद्द गायक स्वर्गीय कुंदनलाल सैगल के अनन्य भक्त थे ,सूर्योदय से पहिले ही वह उनकी भैरवी राग की ठुमरी "बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय " गाकर मुहल्ले की सभी भौजाइयों को उनके नैहर की याद दिला कर रुलाया करते थे ! बडी बहेन उषा दीदी भैरव राग पर आधारित "जागो बंसी वारे ललना जागो मोरे प्यारे" गाकर आस पास की नव-माताओं को अपने 'लल्लू लल्ली' को जगा कर स्कूल भेजने की प्रेरणा देतीं थीं ! इसी प्रकार रात्रि के समय माँल्कोश ,बागेश्वरी और दरबारी रागों के ख्याल ,भजन और पारम्परिक रचनाएँ गाते गाते हम - उस घर के निवासी ,चारों बच्चों ने,"गन्धर्वत्व"(यदि ऐसा कुछ है तो वह ) प्राप्त कर लिया था और हमारा घर बन गया था "गन्धर्व लोक"!
तभी १९४५-४६ में "पहली नजर" फिल्म आयी ! मैं १६ वर्ष का था , इंटर में पढता था ! हमने फिल्म देखी ! फिल्म मे मोतीलाल साहेब की एक्टिंग बहुत स्वाभाविक थी और उनके द्वारा गायी गजल तो कमाल ही कर गयी ! वो यही गजल थी , "दिल जलता है तो जलने दे"! मैं इंस्टेनटली इस गजल के गायक - मुकेश जी का मुरीद हो गया !
यह गजल दिलदार मुकेश जी की दिल सम्बन्धी पहली दिलकश देंन थी ! इसके बाद भी मुकेश जी ने दिल से सम्बंधित अनेक रचनाएँ गाईं जो मुझे बहुत ही पसंद आयीं थीं और जिन्हें मैं अक्सर गाता भी था ! उनमे से कुछ मुझे अभी भी याद रह गयी हैं :-
कभी दिल दिल से टकराता तो होगा
उन्हें मेरा खयाल आता तो होगा
और
दिल जो भी कहेगा मानेंगे दुनिया में हमारा दिल ही तो है
हर हाल में जिसने साथ दिया वो एक बिचारा दिल ही तो है
===================================
आज थक गया फिर कभी गा के भी सुनाऊंगा और मुकेश जी की और भी बातें बताऊंगा !
==========================
मीरा की कथा और उसके साथ ही उस बालक की कहानी जो मेरे कमरे के मंदिर से कृष्ण जी का चित्र मांग कर ले गया था ,अधूरी नहीं रहेगी , अवश्य पूरी करूँगा !
मेरी मजबूरी तो आप जानते ही हैं
"वही लिखता हूँ जो "मालिक" मेरे लिखवाते हैं"
========================
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
====================