अनुभवों का रोजनामचा
आत्म कथा
"अल्ला हू ! अल्ला हू " की शब्द तरंगे उस अँधेरे रेल के डिब्बे के काजल से भी काले वायु मंडल को बड़ी देर तक स्पंदित करती रही ! वे शब्द सभी यात्रिओं के अंतर्मन में काफी देर तक गूंजते रहे ! पर इसके पेश्तर कि डिब्बे के बाहर का अँधेरा, पुनः मुसाफिरों के आत्म विश्वास का स्तर निराशा के अंधकूप में ढकेल देता , बेबेजी के कहने पर उनके "पोल्ये(भोले) पुत्तर" ने डरते डरते अपना मुंह खोला ! डिब्बे में एक अन्त्याक्षरी सी छिड़ गई ! मुझे "अल्ला हू" के "ह" से शुरू करना था ! उस माहौल में मुझे वो भजन याद आया जो हमारी ईया (दादी) अपनी प्रातःकालीन प्रार्थना में , मेरे बचपन में ५-७ वर्षों तक मुझे गोद में लेकर रोज़ ही गातीं थीं !
हे गोविन्द राखो सरन अब तो जीवन हारे
++++++++++++++++++++++++++++
सूर कहे श्याम सुनो सरन हम तिहारे ,
अबकी बेर पार करो नन्द के दुलारे !
हे गोविन्द राखो सरन अब तो जीवन हारे
"र" से जब कोई और शुरू नहीं कर सका तो बेबे ने दुबारा मुझे हिदायत दी , और मैंने हाल में ही रेडिओ से सीखा मुकेश जी का एक नया भजन गा दिया
राम करे सो होय रे मनुआ , राम करे सो होये !
कोमल मन काहे को दुखाये ,काहे भरे तोरे नैना ,
जैसी जाकी करनी होगी वैसा पड़ेगा भरना ,
बदल सके ना कोय रे मनुआ बदल सके ना कोय !
राम करे सो होय रे मनुआ , राम करे सो होये !
+++++++++++++++++++++++++++++++
जो भी जाके उसके द्वारे साची अलख जगाये
मेरो दाता ऐसो दाता , खाली नहीं फिरावे
काहे धीरज खोय रे मनुआ ,काहे धीरज खोये
राम करे सो होय रे मनुआ , राम करे सो होये !
सामने की बेंच पर बैठे बुजुर्गवार की आवाज़ सुनाई दी "सुभान अल्लाह ,सुभान अल्लाह , बरखुरदार ,क्या बात कही आपने , हमारी जुबान में भी एक कहावत है ,शायद आपने सुना होगा , अर्ज़ किया है " वोही होता है जो मंजूरे खुदा होता है"!
रेल के डिब्बे में बंद हम मुसाफिरों के लिए और कोई चारा भी नहीं था ! ऊपर वाला,जो भी करेगा अच्छा ही होगा यह सोच कर सब चुप्पी साध कर बैठ गये ! लेकिन मन की चिंता ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा ! अम्मा बाबूजी की याद से मन भर आया ! जीवन की अनेकों भूली बिसरी बातें याद आने लगीं ! ऐसे में माहौल से मेल खाती ,बचपन में अम्मा से सुनी एक कहानी याद आई जिसमे एक विश्वासी माँ अपने बेटे को जंगल पार करने में भय लगने पर अपने भाई "गोपाल" को पुकार लेने का आदेश देती है ! और उस माँ के अटूट विश्वास को निभाते हुए ,निराकार सर्व व्यापक ब्रह्म भी "गोपाल" बन कर ,उस भयभीत बालक को नित्य, वह घना जंगल पार करवा देता है ! प्रियजन धन्य थी वह परम विश्वासी माँ , धन्य था वह नन्हा बालक जिसको अपनी माँ और उसके वचनों पर इतना अडिग भरोसा था कि जिसने साक्षात् "ईश्वर" को "गोपाल" बनने पर मजबूर कर दिया !
मैं भी अन्य यात्रियों के समान अंतर तक भयभीत था ! पहली बार परिवार से सैकड़ों मील दूर गया था ! और यात्रा के अंतिम दिन ,उनसे केवल ४५ मील की दूरी पर अपने जीवन की आखिरी साँसे गिन रहा था ! जी हाँ मेरे प्रियजन ,प्रिस्थिति वाकई इतनी ही गंभीर थी !
डिब्बा खचाखच सैकड़ों यात्रिओं से भरा था ! खिड़कियाँ दरवाजे ऐसे बंद थे कि बाहर की , काजल से भी काली भारी प्रदूषित हवा अंदर न आजाये ! और अंदर की हवा की तो पूछो ही नहीं , वह जितनी प्रदूषित थी उसे माप पाना उन दिनों असंभव था ! गुलाम था भारत तब और किसे परवाह थी गुलामों के ज़िन्दगी की ? कारखाने लगे थे महेज़ अँगरेज़ मालिकों की उदर पूर्ति के लिए ! डिब्बे के भीतर की हवा बारीक कालिख से भरी हुई थी , और दो घंटे तक हम सैकड़ों यात्री उसी में सांस ले रहे थे ! तब गर्मी के दिनों में तीसरे दर्जे के डिब्बे में जो भयंकर दुर्गन्ध हुआ करती थी उसका अंदाज़ा आप सब, आज कल वाले बालक लगा ही नहीं सकते ! हमारी सांस फूल रही थी ! प्राणराम शरीर छोड़ कर जाना चाहते थे !
========================================
क्रमशः
निवेदक : वही. एन. श्रीवास्तव 'भोला"
========================================
7 टिप्पणियां:
आदरणीय श्रीवास्तव जी । भले ही आपके सभी लेखों पर टिप्पणी नहीं कर पाता ।
पर पढता अवश्य हूँ । आपकी भाषा कतई क्लिष्ट नहीं । बल्कि बेहद सुन्दर सरल
और सहज है । आपके परिजनों को अमेरिका में रहने के कारण ऐसा लगता होगा ।
हम भारतवासियों को तो ये बहुत अच्छी लगती है । आप जो प्रभु कार्य कर रहें हैं ।
वह अतुलनीय है ।
आदरणीय श्रीवास्तव जी । भले ही आपके सभी लेखों पर टिप्पणी नहीं कर पाता ।
पर पढता अवश्य हूँ । आपकी भाषा कतई क्लिष्ट नहीं । बल्कि बेहद सुन्दर सरल
और सहज है । आपके परिजनों को अमेरिका में रहने के कारण ऐसा लगता होगा ।
हम भारतवासियों को तो ये बहुत अच्छी लगती है । आप जो प्रभु कार्य कर रहें हैं ।
वह अतुलनीय है ।
बहुत सुन्दर आत्मकथा चल रही है । आपकी धन्यवाद ।
निसंदेह उस समय की स्थिति कष्टकर रही होगी , अंदाज़ा लगाना मुश्किल है । आपकी आत्मकथा के माध्यम बहुत कुछ जानने को मिलेगा। -आभार।
बहुत सुन्दर आत्मकथा| धन्यवाद|
बहुत ही मन को छू गया अब तक का वर्णन..अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा..सादर
आदरणीय भोला जी ,सादर प्रणाम!
आपकी शुभेच्छु हु --आपका ब्लोक मैने पढ़ा है बहुत अच्छा लगा --आपके स्वस्थ की कामना करते हुए --
एक टिप्पणी भेजें