अनुभवों का रोजनामचा
आत्म कथा
मुझे अपने कुछ पाठकों के कमेंट्स पढ़ कर लगा जैसे वे स्नेहीजन मुझे एक बहुत दुखी और निराश व्यक्ति सा देखते हैं.? मेरे प्रति उनकी करुना के लिए मैं उनका अति आभारी हूँ ! पर आप ही बताओ मेरे प्रियजनों कि क्या मेरा "चीफ सम्पादक" ," वह ऊपर वाला" , किसी कीमत पर मेरा कोई ऐसा सन्देश प्रकाशित करेगा जिसमे नैराश्य का एक अक्षर भी हो ? आप जानते हैं ,मैं "उसकी" प्रेरणा से उसका "प्रेम -भक्ति" का सन्देश आप सब तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा हूँ ! मेरे पिछले ३२२ सन्देश वास्तव में "उसकी" ही स्वीक्रति से जन जन में आश विश्वास जगा कर मानवता को भविष्य की आशंका, चिंता और निराशा के भय से मुक्त करवा देने के उद्देश्य से प्रेरित है ! सूरदास जी श्याम के गुलाम हो कर कितने प्रसन्न थे :
सब कोउ कहत गुलाम श्याम को सुनत सिरात हियो
सूरदास हरि जू को चेरो जूठ्न खाय जियो
हमें नन्द नंदन मोल लियो
फिर राम का दास होकर भला मैं क्यों उदास हूँ
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आज इस समय यहाँ USA और कनाडा में होली का दिन है ! आज मुझे कुछ लिखने की इच्छा नहीं थी ! पर आ गया "उनका"आदेश ! 'पराधीन सपनेहु सुख नाही '! ( कोई ये न समझे कि मैं वाकयी में दुखी हूँ ? भाई ! होली है तो कुछ "ऊपर वाले" से भी छेड़ छाड़ तो की जा सकती है न ?) वह बृज का रसिया कान्हा ,क्या कम नाटक बाज़ है ? ब्रिज की सब गोप गोपियों को होली पर नाचने गाने के लिए अपने डिस्को में आने की दावत दे कर वह, श्रीमान 'डी जे' महोदय स्वयं लापता हो गये ! गोपियों ने गाया :
न जाने कहां छिप गया कृष्ण काला,
अभी तो यहीं था यशोदा का लाला ,
नहीं तन का केवल ,वो मन का भी काला ,
सताता है सबको अकारण अकाला
'भोला'
आज होली के दिन नटखट कान्हा की याद दिलायी मेरे एक नटखट कनेडियन 'नाती' ने ! (अब यहाँ के बच्चे पूछेंगे 'नाती' what ? Must be some naughty guy ?) ! मेरा उत्तर होगा " हाँ था कभी लेकिन अब तो वो बाल बच्चों वाला गब्बर बन गया है ,पर अब भी वह मेरा नाती grand child तो है ही'!
कान्हा की याद दिला कर उसने फरमाइश भी कर दी " नाना आप होली के दिन , अशोक विहार दिल्ली में जो होली के गीत गाते थे , अब अपने प्रपोत्रों को भी सुना दीजिये ! अब तो आप ब्लॉग पर भी गाने लगे हैं ,उस पर ही गा दीजिये ! वो भी आप को देख सुन लेंगे और हमारी भी बचपन की यादें ताज़ी हो जायेंगी !"
कान्हा की याद दिला कर उसने फरमाइश भी कर दी " नाना आप होली के दिन , अशोक विहार दिल्ली में जो होली के गीत गाते थे , अब अपने प्रपोत्रों को भी सुना दीजिये ! अब तो आप ब्लॉग पर भी गाने लगे हैं ,उस पर ही गा दीजिये ! वो भी आप को देख सुन लेंगे और हमारी भी बचपन की यादें ताज़ी हो जायेंगी !"
तो फिर एक बार शूटिंग हुई ! केमेरा और साउंड रेकोर्डिंग तथा मजीरा वादन नाती जी की नानी डाक्टर कृष्णा जी ने की , गायक है आपका यह बूढा पोपट - तोता - सुग्गा 'भोला'!
मैं न कवि हूँ ,न गायक ! बच्चों के मनोरंजन के लिए और स्वान्तः सुखाय, "इष्टदेव" की स्वीकृत से थोड़ी तुकबंदी कर लेता हूँ ,थोड़ा बहुत गा बजा लेता हूँ !
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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बिरज में धूम मचायो कान्हा
कैसे कि जाऊं अपने धामा
मैं न कवि हूँ ,न गायक ! बच्चों के मनोरंजन के लिए और स्वान्तः सुखाय, "इष्टदेव" की स्वीकृत से थोड़ी तुकबंदी कर लेता हूँ ,थोड़ा बहुत गा बजा लेता हूँ !
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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2 टिप्पणियां:
पापा राम राम
होली सुन कर मज़ा आ गया.
अशोक विहार की छत पर रंग खेलने के बाद का गाना बजाना याद आ गया .
ब्लॉग जगत में आपका स्थान हमारे लिए महत्वपूर्ण है.आपके ब्लॉग को मैंने अपनी पोस्ट me अपने ब्लॉग http://yeblogachchhalaga.blogspot.com लिया है कृपया पधार कर अनुग्रहित करें.आपकी ये पोस्ट प्रशंसनीय है हमेशा की तरह.भोला जी मैं आपकी बेटी के समान हूँ और मुझे ऐसे ही मानें.
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