सोमवार, 18 अप्रैल 2011

हनुमान जयंती - सद्गुरु जन्म दिवस # 3 4 7

अप्रेल १८ ,२०११, तदनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा सम्वत २०६८                                                             

श्री हनुमान जयंती के शुभ पर्व पर 

एवं



सद्गुरु श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के जन्म दिवस पर 


बधाई हो बधाई , सभी को बधाई

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जगतगुरु श्री हनुमान जी की जय 

श्रीरामचरितमानस जैसे विश्वविख्यात अनुपम ग्रन्थ के रचयिता ,परम रामभक्त,प्रकांड पांडित्य एवं ज्ञान के धनी ,श्रीमद गोस्वामी तुलसीदासजी ने जिन दिव्य महात्मा की अद्वितीय शक्तियों एवं क्षमताओं का आंकलन कर अपना गुरु माना और जिनका स्मरण करके उनसे बल बुधि विद्या प्राप्ति के लिए प्रार्थना की वह थे श्री हनुमान जी महाराज :

बुद्धि हींन  तन  जनि के  सुमिरों  पवन कुमार 
बल बुधि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश बिकार 

सोच के देखें ऐसे अंजनिसुत,पवनकुमार ,मारुती नन्दन श्री हनुमानजी से श्रेष्ठ इस संसार में और कौन गुरु हो सकता है ! आज के महान संत कथा वाचक श्री मुरारी बापू ने तो यहाँ तक कहा है की यदि किसी व्यक्ति को अब तक सदगुरु नहीं मिला है तो वह श्री हनुमान जी को अपना गुरु बनाले! 
उनके अनुसार श्री हनुमानजी को परमगुरु मान कर उनके सद्गुणों का अनुकरण करके जीवन जीने वालों का अवश्यमेव कल्याण होगा !

शताब्दियों से हमारे परिवार के "कुल देवता - कुल गुरु "यह श्री हनुमानजी ही हैं ! जन्म से लेकर आज तक अपने पुश्तैनी घर के आंगन में लहराते महाबीरी ध्वजा की छाया में नतमस्तक  होकर  शताब्दियों तक हमारे परिजनों और हम लोगों ने सदा "उनसे" प्रार्थना की है और उनकी कृपा वृष्टि का अनंत आनंद लूटा है !

जय जय जय हनुमान गोसाईं  !  कृपा करो गुरुदेव की नाई !

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गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महाराज 

मुझे पूरा विश्वास है की श्री हनुमान जी की कृपा के फल स्वरूप ही मुझे इस जीवन में इतने सहृदय परिजन, विज्ञ गुरजन ,स्नेही मित्रगण तथा आध्यात्मिक गुरुदेव श्री स्वामी जी मिले !इतनी सारी शुभ उपलब्धियां किसी को कभी भी अनायास ही नहीं हो सकतीं !प्यारे प्रभु की करुणा के बिनाकुछ भी संभव नहीं है ! हमारे जन्म से बहुत पहले ही से हमपर उनकी कृपा वर्षा शुरू हो जाती है, तभी तो चौरासी लाख योनियों में से सर्वोत्तम "मानव" योनी ही हमे क्यों मिली ? प्रियजन कितनी बड़ी कृपा है उनकी हमपर !
 कबहुक करि करुना नर देही ! देत ईस  बिनु हेतु स्नेही !!
                          बड़े भाग मानुष तन पावा ! सुर दुरलभ सब ग्रन्थही  गावा !





सदगुरु की महत्ता 

ईश्वर ने विशेष अनुग्रह करके मानव को यह अनंत क्षमताओं से भरपूर देवदुर्लभ मानुष चोला दिया है ! अबोध बालक सा मानव अपनी क्षमताओं से तब तक पूरी तरह अनभिग्य रहता है जब तक "जामवंत" जैसे सद्गुरु उस बालक का उपनयन-विद्यारम्भ करवा कर उसका मार्ग दर्शन नहीं करते ,उसकी आत्म शक्ति को जागृत नहीं करते ! 

गुरुजन साधारण मानव को उसकी उसमें ही  निहित क्षमताओं का ज्ञान कराते हैं और उसे अनुशासित  जीवन जीने की कला बता कर उसका उचित मार्ग दर्शन करते हैं !मेरे सद्गुरु ने भी मुझे दीक्षा दे कर मुझ पर महत कृपा की ,मेरा पथ प्रदर्शित कर  मुझे  सत्य ,प्रेम और सेवा के  मार्ग पर चलना सिखाया ,सात्विक  जीवन जीने की कला  सिखाई ,अनुशासन पालन करते हुए जगत में व्यवहार करना सिखाया ! मैं कभी कभी सोचता हूँ कि मेरा क्या हुआ होता यदि मुझे मेरे "सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज " इस जीवन में मुझे नहीं मिलते और इतनी कृपा करके उन्होंने मुझे अपना न बनाया होता या मुझे अपने श्री राम शरणम के "राम नाम उपासक परिवार" में सम्मिलित न  किया होता ? 


सद्गुरु मिलन से मुझे जो उत्कृष्ट उपलब्धि हुई वह अविस्मरणीय है !उससे मैं धन्य हो गया और सच पूछो तो मेरा यह मानव जन्म सार्थक हो गया ! "सद्गुरु दर्शन" के उपरांत मेरी सर्वोच्च उपलब्धि थी सद्गुरु के "कृपा पात्र" बन पाने का सौभाग्य !

१९५६ में मेरा विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ जिसके सभी वयस्क सदस्य श्री स्वामी सत्यानंदजी महाराज के कृपापात्र  शिष्य थे ! ये श्रेष्ठ जन पानीपत की माता शकुन्तला जी ,गुहांना के पिताजी  भगत श्री हंस राज जी , बम्बई के ईश्वर दास जी तथा गुरुदेव श्री प्रेमनाथ जी के साथ  स्वामी जी की "नाम भक्ति" साधना में पूरी तरह जुटे हुए थे ! उनसे प्रेरणा पाकर मैं भी स्वामी जी महराज से दीक्षित हुआ और "रामनाम" की उपासना में लग गया ! यह मेरा परम सौभाग्य था !
 

भ्रम  भूल   में   भटकते  उदय  हुए  जब  भाग !                                                             मिला अचानक गुरु मुझे लगी लगन की जाग!!




मैंने पहले कहीं कहा  है , एक बार फिर कहने को जी कर रहा है की मनुष्य को मानवजन्म प्रदान कर धरती पर भेजता तो परमेश्वर है लेकिन उसको इन्सान बनाता है ,उसका पालन करता है , उसको राह दिखाता है ,उसकी रक्षा करता है ,उसकी आत्म शक्ति जगता है,उसको मोक्ष का द्वार  दिखाता है उसका "सद्गुरु" ! और यह सद्गुरु भी उसे उसके परम सौभाग्य से एकमात्र उस प्यारे परमेश्वर की कृपा से ही मिलता है !


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दिवंगत श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज इस युग के महानतम धर्मवेत्ताओं में से एक थे जो  लगभग ६४ वर्षों तक जैन धर्म तथा आर्यसमाज की सेवा करते रहे ! अपने प्रवचनों द्वारा वह जन जन की आध्यात्मिक उन्नति  के साथ साथ सामाजिक उत्थान के लिए भी प्रयत्नशील रहे ! इन सम्प्रदायों से सम्बन्ध रखने पर तथा उनकी विधि के अनुसार साधना करने पर भी जब उन्हें उस आनंद का अनुभव नहीं हुआ जो परमेश्वर मिलन से होना चाहिए तो उन्होंने इन दोनों मतों के प्रमुख प्रचारक बने रहना निरर्थक जाना और १९२५ में हिमालय की सुरम्य एकांत गोद  में जा कर उस निराकार ब्रह्म की (जिसकी महिमा वह आर्य समाज के प्रचार मंचों पर लगभग ३० वर्षों से अथक गाते रहे थे)  इतनी सघन उपासना की कि वह निर्गुण "ब्रह्म" स्वमेव उनके सन्मुख "नाद" स्वरूप में प्रगट हुआ और उसने स्वामीजी को " परम तेजोमय , प्रकाश रूप , ज्योतिर्मय,परमज्ञानानंद स्वरूप , देवाधिदेव श्री "राम नाम" के महिमा गान एवं एक मात्र उस "राम नाम" के प्रचार प्रसार में लग जाने की दिव्य प्रेरणा दी जिसका लाभ आज तक हम सब सत्संगी उठा रहे हैं !

   
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 
सहयोग : श्रीमती डोक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव  
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2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

आज की दौड़ भाग भरी जिंदगी में आपकी पोस्ट ज्ञान का भंडार है.आभार.
आपको भी बहुत बहुत बधाई.

bhola.krishna@gmail .com ने कहा…

स्नेह्मयी शालिनीजी,धन्यवाद,सद्गुरु एवं इष्टदेव का चिन्तन तथा उन्की चर्चा स्वमेव् अतिमधुर होती है किसी बहाने "उन्हे" याद करे !वह् कृपा करेङ्गे ही !
आप पर श्री राम कृपा सदा बनी रहेगी । उसका आनन्द लूटिये ! प्रसन्न रहिये !
भोला - कृष्णा