रविवार, 2 जनवरी 2011

साधक साधन साधिये # २ ५ ७

हनुमत कृपा 
अनुभव 
                                              साधक साधन साधिये  
                                                 "अटूट विश्वास"  
                     (श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के प्रवचनों पर आधारित )

साधक द्वारा किसी भी साधन से की हुई कोई साधना तब तक सफल नहीं होगी जब तक साधक को अपने साध्य पर , अपने साधन पर, अपनी साधना पर और स्वयं अपने आप पर अटूट विश्वास न होग़ा ! अस्तु ह्म साधकों को अपने "इष्ट" परमेश्वर पर सदा सजीव विश्वास रखना चाहिए और अपनी साधना में हमे पल भर भी ये न भुलाना चाहिये क़ि :-
  •  हमारा प्रियतम प्रभु सदैव ह्मारे अंग संग है ! ( साधक के मन में यह विश्वास जितना प्रबल, सुदृढ़  और सुनिश्चित होगा उतना ही अधिक लाभ उस को ,कम से कम समय में प्राप्त हो जायेग़ा )
  • भगवन्नाम में साधक की रूचि और धारणा जितनी पक्की होगी उतना अधिक लाभ उसको मिलेगा !
  • त्रिलोकी के असंख्य देवालयों में स्थापित पूजनीय  देवमूर्तियों से कहीं अघिक श्रद्धा सेवा, पूजा आराधना की हकदार ह्मारे "मनमंदिर"में सद्गुरु के आशीर्वाद से बिठाई    हुई ह्मारे इष्ट की मूर्ति है ! 
  • सद्गुरु कृपा से प्राप्त हमारा इष्ट ही  सर्वोपरि  साध्य है !उसके अतिरिक्त किसी अन्य देवता को अपने हृदय सिंहासन  पर बिठा कर उसका आराधन करने से कोई लाभ न होगा !
  • बिजली , रेडिओ, टेलीविज़न की अदृश्य तरंगें जैसे प्रसारण केंद्र से हजारों मील दूर बैठे सुनने देखने वालों के घर घर में पहुंचती रहतीं हैं उसी प्रकार हमारी प्रार्थना भी हमारे हृदय से तरंगित होकर ह्मारे इष्ट के पास पहुँचती  है !
  • मजा तो यह है कि ह्मारे बीच (साधक और साध्य के बीच) न तो र aकोई रेडिओ अथवा टी वी टावर है और न कोई सेटलाईट स्टेशन ही है ! न कोई महंत है न कोई पंडा और न कोई पुजारी ! यह मन ही हमारा मंदिर है इसमें लगा ताला और उसकी कुंजी भी  अपनी ही है ! सद्गुरु ने अनन्य  कृपा कर के हमारे मन मंदिर में ह्मारे इष्ट के नाम की सजीव  मूर्ति  प्रतिष्ठित कर दी है !  
  • ह्म कितने सौभाग्यवान हैं कि सद्गुरु ने इष्ट के रूप हमें राम नाम दिया  संत महापुरुषों का कथन है क़ि - "राम नाम" में सभी तीर्थ समाये हुए हैं ! जिस प्रकार बीज में वृक्ष के सभी भाग अर्थात जड़, तना , डाली , पत्ती , फूल, फल सभी समाये रहते हैं उस प्रकार ही "राम-नाम" के बीजाक्षर में ईश्वर भक्ति आराधन से प्राप्य सभी सुफल विद्यमान हैं !
  •  हम अपनी साधना द्वारा अपने लिए कोई सिद्धि प्रसिद्धि नहीं मांग रहे हैं !  ह्म तो यह प्रार्थना करते हैं क़ि परमेश्वर जिस धर्म का प्रचार एवं प्रसार चाहें उसकी ही वृद्दि हो ! हमारी साधना का एकमात्र उद्देश निम्नांकित  दोहे में प्रकट है :-                         
  • वृद्धि आस्तिक भाव  की शुभ मंगल संचार !
  • अभ्युदय  सद्धर्म का ,  राम नाम विस्तार !!
-------------------------------------------------------------------
क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

कोई टिप्पणी नहीं: