हनुमत कृपा
अनुभव
साधक साधन साधिये
साधन - सिमरन
संत महापुरुषों ने अपने इष्ट के "नाम स्मरण" को (जिसे सिमरन ,सुमिरन आदि अनेक नामोँ से पुकारा जाता है ) भगवत-कृपा -प्राप्ति की साधना का सरलतम साधन बताया है ! गोस्वामी तुलसी दास जी एवं गुरु नानकदेव जी ने अपनी विभिन्न रचनाओं में एक से ही शब्दों में "सिमरन" की लगभग पूरी व्याख्या कर दी है !
गुरु नानक देव जी ने तो यहाँ तक कह दिया है क़ि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से प्रेम के साथ एकनिष्ठ होकर इष्ट का नाम सिमरन किये बिना मानव जीवन निरर्थक है ! पयारे प्रभु के नाम स्मरण के अतिरिक्त मानव का कोई अन्य धर्म या कर्म है ही नहीं -
सिमरन कर ले मेरे मना , तेरी बीती उमर हरि नाम बिना "
कूप नीर बिनु धेनु छीर बिनु, मंदिर दीप बिना !
जैसे तरुवर फल बिन हीना ,तैसे प्राणी हरि नाम बिना !!
देह नैन बिन रैन चंद बिन ,धरती मेह बिना !
जैसे पंडित वेद विहीना ,तैसे प्राणी हरि नाम बिना !!
काम क्रोध मद लोभ निहारो,छोड़ दे अब संत जना !
कहे नानकशा सुन भगवंता ,इस जग में नहिं कोई अपना!!
एक अन्य रचनामें गुरु नानक देव ने कहा है :
राम सुमिर ,राम सुमिर यही तेरो काज है !!
माया को संग त्याग , हरिजू को सरन लाग !
जगत सुख मान मिथ्या, झूठो सब साज है!!
सुपने ज्यों धन पिछान ,काहे पर करत मान !
बारू की भीति तैसे बसुधा को राज है !!
नानक जन कहत बात बिनसि जैहे तेरो गात !
छिन छिन कर गयो काल्ह तैसे जान आज है !!
गुरु नानक देव की इन दोनो रचनाओं में "सिमरन" की अति सुन्दर विवेचना है !
कल तुलसीदास जी के विचार उन्ही के शब्दों में आप तक पहुंचाऊंगा ! इन दोनों संत जनों के वचनों से आपको स्पष्ट होजायेगा क़ि "सिमरन" हमारी साधना में कितना महत्व रखता है !!
आज यहीं समाप्त करता हूँ !!
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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