हनुमत कृपा
अनुभव
साधक साधन साधिये
साधन- सिमरन
परसों कहा था क़ि सिमरन के विषय में तुलसी-कबीर आदि अन्य संत महापुरुषों के वचनो से आपको अवगत करूँगा , और कल ही उस "ऊपर वाले सर्वशक्तिमान" ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर दिया ,मुझे रात भर जगा कर देवी कुंती की, उस अति विचित्र वरदान की मांग वाली प्रेमाभक्ति की कथा कहलवा दी !
प्रियजन , औरों की तो छोडिये , मेरी धर्म पत्नी कृष्णा जी जिन्होंने मेरी बीमारियों के दिनों में ,कथावाचक व्यास के समान मेरे सन्मुख बैठ कर श्रीमद्भागवत पुराण, श्रीमद भगवत गीता एवं श्री राम चरित मानस आदि ग्रन्थों को व्याख्या सहित पढकर मुझे सुनाया और समझाया ,वह भी मेरे कल वाले संदेश का ड्राफ्ट देख कर चक्कर में पड़ गयीं ! उन्होंने मुझसे कहा " आप को क्या हो गया ये कैसा संदेश दे रहे हैं आप ? महरानी कुंती की वह प्रार्थना सर्वथा अस्वाभाविक है ! क्या जीव कभी भी प्रभु से दुःख प्राप्ति के वरदान मांग सकता है? वैदिक काल से आज तक कुंती के अतिरिक्त किसी अन्य साधक ने प्रभु से ऐसा विचित्र वरदान नहीं मांगा "! आप ही बताइए क़ि क्या अपनी रुग्णावस्था में कभी आपने प्रभु से कोई ऎसी प्रार्थना की "! पहले तो मैं निरुत्तर रहा फिर ऊपर से "उनका" संदेश आ गया और रात्रि में ब्लॉग भेजने के पूर्व मैंने उनकी शंका का समाधान कर दिया !
आपको भी बता दूं ! जिस रात मैं बिल्कुल सो नही पाया था ,उसके पहले कुछ दिनों से मैं थोड़ा अस्वस्थ था ! ज्वर हल्का था लेकिन दाहिने पैर की हड्डियों और तलवे में ऎसी भयंकर पीड़ा थी क़ि मैं धरती पर पैर नहीं रख पा रहा था ,जिसके कारण बालबच्चों के आदेशानुसार मैं कुछ दिनों के लिए सम्पूर्ण "बेड रेस्ट" करने को मजबूर हो गया ! तब मैं बिस्तर पर पड़े पड़े सोचता था क़ि कम्प्यूटर तक जा नहीं पाउँगा तो आज का ब्लॉग कैसे जायेगा ? और यदि कहीं कल प्रातः "९ १ १" की एम्ब्युलेंस से होस्पिटल जाना पड़ा ( जैसा पहले चार बार हो चुका है ) तो क्या होग़ा ?
इस उधेड़बुन के बीच श्रीमती जी द्वारा श्रीमद्भागवत पुराण के पाठ में सुनायी ,बुआ कुंती
की वह अनोखी "वात्सल्य भक्ति" की कहानी याद आगयी और यह विचार सहसा मन में उठा क़ि "जो "विपत्ति , पीड़ा और कष्ट" कुंती मांग रहीं हैं ,वह सब तो मुझे बिना मांगे ही मिल रही है ! क्यों न इस "विपत्ति" रूपी "सम्पत्ति" का सदोपयोग करके ,कुंती जी के समान मैं भी पीड़ा का यह समय भगवत-चिन्तन में लगादूं !
प्रियजन ! असहनीय पीड़ा के कारण मैंने उस रात के जागरण का एक एक क्षण सच्चे मन से इष्ट देव के सिमरन में लगाया ! अब सुनिए क़ि आगे क्या चमत्कार हुआ ! जब प्रातः मैं नींद से उठा तब तक मेरे पैर की पीड़ा बिल्कुल गायब हो गयी थी और ज्वर नोर्मल हो गया था ! थोड़ी कठिनायी से अवश्य पर किसी का सहारा लेकर मैं चलने फिरने लगा था ! मैं तो जानता ही हूँ , आपको बताना चाहता हूँ क़ि उस रात की मेरी हार्दिक करुण पुकार सुनकर ही इष्ट देव ने तत्काल मुझ पर कृपा की , मेरी सारी पीड़ा हर ली और मुझे चुटकी में चंगा कर दिया ! यह एक वास्तविक चमत्कार है ! ये मेरा अपना निजी अनुभव है ! बिल्कुल ताज़ा ,पिछले सप्ताह का है यह अनुभव !
प्रियजन ,यह तो आपने देख लिया क़ि कैसे अपने "इष्ट" का ,सच्चे मन से ,वास्तविक सिमरन करने वाले साधक पर उसके "इष्ट" अविलम्ब कृपा करते हैं ! अब यह समझना शेष है क़ि वास्तविक सिमरन है क्या और उसे करने की कौन सी विधि है ?
एक बात तो निश्चित हो गयी की पीड़ा के काल में वास्तविक सिमरन होता है जिससे लगता है क़ि देवी कुंती की विपत्ति वाली मांग ठीक ही थी ! सुख में ऊपरी मन से सिमरन करते रहो ,वह सुने चाहे न सुने ! इससे क्या लाभ ! दुःख में वास्तविक सिमरन होता है ! इसके अतिरिक्त विधि आगे बताउँगा ! अब थोड़ा हंस लीजिये!
प्रियजन इष्ट की कृपा से मुझे कई ऐसे एडवांटेज हैं जो आम तौर पे औरों को नहीं होते !आप शायद जानते होंगे क़ि यदि मैं जोर से आवाज़ लगाऊँ तो फटाफट ऊपर से ह्मारे "रामजी" आ जायेंगे और अगर धीरे से भी "हरे कृष्णा"की पुकार लगाऊँ तो बगल से हमारी फेमिली वाली कृष्णाजी दौड़ पड़ेंगी ! अब आप ही कहें प्रियजन क़ि क्या सिमरन क्या जाप करूं मैं ? अजामील के तो एक ही था मेरे दो दो हैं ! हूँ न मैं लकी ?
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
आपको भी बता दूं ! जिस रात मैं बिल्कुल सो नही पाया था ,उसके पहले कुछ दिनों से मैं थोड़ा अस्वस्थ था ! ज्वर हल्का था लेकिन दाहिने पैर की हड्डियों और तलवे में ऎसी भयंकर पीड़ा थी क़ि मैं धरती पर पैर नहीं रख पा रहा था ,जिसके कारण बालबच्चों के आदेशानुसार मैं कुछ दिनों के लिए सम्पूर्ण "बेड रेस्ट" करने को मजबूर हो गया ! तब मैं बिस्तर पर पड़े पड़े सोचता था क़ि कम्प्यूटर तक जा नहीं पाउँगा तो आज का ब्लॉग कैसे जायेगा ? और यदि कहीं कल प्रातः "९ १ १" की एम्ब्युलेंस से होस्पिटल जाना पड़ा ( जैसा पहले चार बार हो चुका है ) तो क्या होग़ा ?
इस उधेड़बुन के बीच श्रीमती जी द्वारा श्रीमद्भागवत पुराण के पाठ में सुनायी ,बुआ कुंती
की वह अनोखी "वात्सल्य भक्ति" की कहानी याद आगयी और यह विचार सहसा मन में उठा क़ि "जो "विपत्ति , पीड़ा और कष्ट" कुंती मांग रहीं हैं ,वह सब तो मुझे बिना मांगे ही मिल रही है ! क्यों न इस "विपत्ति" रूपी "सम्पत्ति" का सदोपयोग करके ,कुंती जी के समान मैं भी पीड़ा का यह समय भगवत-चिन्तन में लगादूं !
प्रियजन ! असहनीय पीड़ा के कारण मैंने उस रात के जागरण का एक एक क्षण सच्चे मन से इष्ट देव के सिमरन में लगाया ! अब सुनिए क़ि आगे क्या चमत्कार हुआ ! जब प्रातः मैं नींद से उठा तब तक मेरे पैर की पीड़ा बिल्कुल गायब हो गयी थी और ज्वर नोर्मल हो गया था ! थोड़ी कठिनायी से अवश्य पर किसी का सहारा लेकर मैं चलने फिरने लगा था ! मैं तो जानता ही हूँ , आपको बताना चाहता हूँ क़ि उस रात की मेरी हार्दिक करुण पुकार सुनकर ही इष्ट देव ने तत्काल मुझ पर कृपा की , मेरी सारी पीड़ा हर ली और मुझे चुटकी में चंगा कर दिया ! यह एक वास्तविक चमत्कार है ! ये मेरा अपना निजी अनुभव है ! बिल्कुल ताज़ा ,पिछले सप्ताह का है यह अनुभव !
प्रियजन ,यह तो आपने देख लिया क़ि कैसे अपने "इष्ट" का ,सच्चे मन से ,वास्तविक सिमरन करने वाले साधक पर उसके "इष्ट" अविलम्ब कृपा करते हैं ! अब यह समझना शेष है क़ि वास्तविक सिमरन है क्या और उसे करने की कौन सी विधि है ?
एक बात तो निश्चित हो गयी की पीड़ा के काल में वास्तविक सिमरन होता है जिससे लगता है क़ि देवी कुंती की विपत्ति वाली मांग ठीक ही थी ! सुख में ऊपरी मन से सिमरन करते रहो ,वह सुने चाहे न सुने ! इससे क्या लाभ ! दुःख में वास्तविक सिमरन होता है ! इसके अतिरिक्त विधि आगे बताउँगा ! अब थोड़ा हंस लीजिये!
प्रियजन इष्ट की कृपा से मुझे कई ऐसे एडवांटेज हैं जो आम तौर पे औरों को नहीं होते !आप शायद जानते होंगे क़ि यदि मैं जोर से आवाज़ लगाऊँ तो फटाफट ऊपर से ह्मारे "रामजी" आ जायेंगे और अगर धीरे से भी "हरे कृष्णा"की पुकार लगाऊँ तो बगल से हमारी फेमिली वाली कृष्णाजी दौड़ पड़ेंगी ! अब आप ही कहें प्रियजन क़ि क्या सिमरन क्या जाप करूं मैं ? अजामील के तो एक ही था मेरे दो दो हैं ! हूँ न मैं लकी ?
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें