हनुमत कृपा
अनुभव साधक साधन साधिये
साधन-सिमरन
अमृतवाणी के ९३ दोहों में "स्मरण"तथा उससे संबधित शब्दों का सीधा उल्लेख केवल ९ ५ दोहों में हुआ है ! उपरोक्त ५ दोहों के अतिरिक्त सिमरन का प्रयोग अन्यत्र -दोहा # २०, ५२ , ६८ तथा ९० में भी हुआ है ! इससे ऐसा लगता है जैसे "सिमरन" कोई इतना महत्वपूर्ण साधन नहीं है ! पर मेरे विचार में यह सत्य नहीं है !
प्रियजन ! जरा सोंच कर देखिये क़ि बिना यह "स्मरण" क़िये ,क़ि उसे ,साधना करनी है कोई भी जिज्ञासु साधक अपनी साधना कैसे चालू कर सकता है ? इस प्रकार मेरा तो यह दृढ विश्वास है क़ि "सिमरन" सब प्रकार के साधनों के मूल में स्थित है ! मुझे तो ऐसा लगता है क़ि सिमरन के बिना कोई भी साधना चालू ही नहीं हो सकती ! चिन्तन, जाप, ध्यान ,भजन - कीर्तन ,कुछ भी शुरू करने से पहिले साधक अपने गुरुजन के आदेश का ,या यूं कहें उनकी मन्त्रणा का "सिमरन" अवश्य करता है !
चलिए अब ह्म अमृतवाणी के "सिमरन" विषयक बाकी चार दोहों के भावार्थ भी समझ लें
सिमरन राम नाम है संगी, सखा स्नेही सुहृद शुभ अंगी !
दोहे का भावार्थ : " जिस प्रकार सगे संबंधी ,सच्चे मित्र साथी और प्रेमी हमे छोड़ कर नहीं जाते ,हर हालत में हमारा साथ देते हैं,उसी तरह "नाम सिमरन" भी हर दशा में ह्मारे संग रहता है ! राम नाम को सतत सिमरन करने वाला साधक कभी अकेला नहीं होता ! "राम" सर्वदा उस के साथ रहते हैं !"
प्रियजन ! जरा सोंच कर देखिये क़ि बिना यह "स्मरण" क़िये ,क़ि उसे ,साधना करनी है कोई भी जिज्ञासु साधक अपनी साधना कैसे चालू कर सकता है ? इस प्रकार मेरा तो यह दृढ विश्वास है क़ि "सिमरन" सब प्रकार के साधनों के मूल में स्थित है ! मुझे तो ऐसा लगता है क़ि सिमरन के बिना कोई भी साधना चालू ही नहीं हो सकती ! चिन्तन, जाप, ध्यान ,भजन - कीर्तन ,कुछ भी शुरू करने से पहिले साधक अपने गुरुजन के आदेश का ,या यूं कहें उनकी मन्त्रणा का "सिमरन" अवश्य करता है !
चलिए अब ह्म अमृतवाणी के "सिमरन" विषयक बाकी चार दोहों के भावार्थ भी समझ लें
सिमरन राम नाम है संगी, सखा स्नेही सुहृद शुभ अंगी !
युग युग का है राम सहेला , राम भक्त नहिं रहे अकेला !!२०!
दोहे का भावार्थ : " जिस प्रकार सगे संबंधी ,सच्चे मित्र साथी और प्रेमी हमे छोड़ कर नहीं जाते ,हर हालत में हमारा साथ देते हैं,उसी तरह "नाम सिमरन" भी हर दशा में ह्मारे संग रहता है ! राम नाम को सतत सिमरन करने वाला साधक कभी अकेला नहीं होता ! "राम" सर्वदा उस के साथ रहते हैं !"
विश्व वृक्ष का राम है मूल , उसको तु प्राणी कभी न भूल !
सांस सांस से सिमर सुजान , राम राम प्रभु राम महान !!५२!
दोहे का भावार्थ : " हे जीवधारी प्रानी (मनुष्य) तू यह कभी न भूल क़ि इस समस्त जगत, (ब्रह्माण्ड / संसार) रूपी वृक्ष के स्रजन का मूल (आदिकारण) और उसका सिरजनहार एवं उसकी उत्पत्ति का हेतु केवल एक "राम" ही है ! हे ज्ञानी (सज्जन मानव)तू अपनी सांस
सांस में उस महान स्वामी का सुमिरन कर !"
राम नाम को सिमरिये ,राम राम एक तार ! परम पाठ पावन परम, पतित अधम दे तार !!६८!!
सांस में उस महान स्वामी का सुमिरन कर !"
राम नाम को सिमरिये ,राम राम एक तार ! परम पाठ पावन परम, पतित अधम दे तार !!६८!!
दोहे का भावार्थ : " रे मन ! तू राम नाम का लगातार (निरंतर )सुमिरन कर !राम नाम का
नियमिक जाप अधमाधम एवं पतित प्राणियों को भी पवित्रता प्रदान कर देता है ,और उन्हें भवसागर से पार कर देता है - अर्थात उन्हें सद्गति दिला देता है ! "
जपू मैं राम राम प्रभु राम, ध्याऊं मैं राम राम हरे राम !
सिमरूं मैं राम राम प्रभु राम, गाऊं मैं राम राम श्री राम !!९०!!"
दोहे का भावार्थ : अमृतवाणी पाठ के समापन पर साधक सुनिश्चित कर लेता है क़ि "वह
अपने इष्ट का नाम (राम नाम) निरंतर जपता रहेगा , सदा उसके ध्यान में मग्न रहेगा , उनका लगातार सिमरन करता रहेगा और सदा सर्वदा अपने इष्टदेव श्री राम नाम का ही गुनगान करेगा !"
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क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला "
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