गुरुवार, 13 जनवरी 2011

साधन - सिमरन # २ ६ ७

हनुमत कृपा 
अनुभव                                        साधक साधन साधिये                                         
                                                        साधन - सिमरन

मेरा परम सौभाग्य था,या यूं कहें,परमात्मा की विशेष कृपा हुई मुझपर क़ि मुझे गुरुदेव स्वामी सत्यानंद जी महराज का शिष्यत्व प्राप्त हुआ ! स्वमी जी ने अपनी "परम धाम" डलहौज़ी की तपश्चर्या से प्रसादस्वरुप प्राप्त " नाम ज्योति दर्शन " तथा "राम नाद श्रवण" से प्रेरित "नाम दान" से मुझे अनुग्रहीत किया !


प्रियजन मैंने "नाम" के उस मधुर प्रसाद का रसास्वादन स्वयं किया है ! थोड़ी मधुरता आप को दे सकूं इस भावना से ,"ऊपर" से ही मिली प्रेरणा से इन लेखों द्वारा आपकी सेवा कर रहा हूँ !  मेरा समस्त कथन "निज अनुभव जन्य" है और अक्षरशः सत्य हैं ! इन्हें प्रकाशित करने का मेरा एक मात्र उद्देश्य  है क़ि मेरे स्वजन ,मेर परिवार के सदस्य ,मेरे मित्र , मुहल्ले टोले , नगर , देश वाले सभी जिज्ञासु जन "नाम" का वैसा ही मधुर स्वाद चखें जो मेरे सद्गुरु ने स्वयम चखा और अपने प्रिय शिष्यों को चखाया !

प्रियजन ! असली रस और आनंद तो "नाम सिमरन" में है ! सद्गुरु के आशीर्वाद से मेरे   लिए वह नाम है "राम" ! यह वह नाम है जिसके गुण स्वयं सर्वशक्तिमान परमात्मा भी  नहीं गा सकते ! तुलसी ने कहा ही है - " राम न सकहिं नाम गुन गाई " ! हिन्दी भाषा का भक्ति साहित्य , राम नाम गुन गान से भरा पड़ा है ! अनंत है नाम  महिमा !  इस विषय पर लम्बी बात करनी है ,फिर कभी कर लेंगे ! अभी "सिमरन" की चर्चा चल रही है पहिले उसे पूरा करलें !


महराजजी की अमृतवाणी के "सिमरन" विषयक अंशों  पर ह्म विचार कर रहे थे !


१६ वें १७ वें और १८ वें दोहों में महाराज जी ने कहा है 


जिसमें बस जाये नाम सुनाम ,   होवे वह जन पूर्ण काम !
चित्त में राम नाम जो सिमरे , निश्चय भव सागर से तरे!!१६!!
                         राम  सिमरन  होवे  सहाई  , राम  सिमरन है सुखदाई  !
                         राम सिमरन सबसे ऊंचा, राम शक्ति सुख ज्ञान समूचा !!१७!!
राम राम ही सिमर मन ,राम राम  श्री राम! 
राम राम श्री राम भज  ,राम राम हरि नाम !!१८!!

१६ वें दोहे का भावार्थ है क़ि "जिस व्यक्ति के चित्त में "नाम"  स्थायी   रूप में टिक जाता है  उसकी सारी इच्छाएं स्वतः तृप्त हो जातीं हैं !  जो व्यक्ति अपने चित्त में सतत "नाम"  सिमरन करता है वह निःसंदेह "बिनु श्रम" इस संसार रूपी सागर से पार हो जाता है ,बार बार के  जन्म मरण के चक्कर से बच जाता है और सदगति प्राप्त कर लेता है !" 


१७ वें दोहे का भावार्थ है क़ि "नाम सिमरन सहायक है ,अतिशय सुखदायक और सर्व श्रेष्ठ है! नाम सिमरन की शक्ति से व्यक्ति में बड़े से बड़े विकार रूपी शत्रु को पराजित करने का बल प्रगट हो आता है और वह आतंरिक प्रेरणा से वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान (तत्व ज्ञान / सम्यक ज्ञान ) प्राप्त कर लेता है !"


१८ वें दोहे का भावार्थ है " हे मन ! तू राम राम ही स्मरण किया कर ! राम राम श्री राम का भजन कर, राम राम श्री राम रटा कर तथा  राम राम का ही जाप किया कर ! " 


मतलब "नाम सिमरन" से है ! वह "नाम" किस देवता का है ,यह महत्व की बात नहीं है ! ह्मारे इष्ट "राम" हैं सो ह्म उनका नाम सिमिरन करते हैं ! आपके इष्ट जो भी हों आप उनका ही नाम लें ! फल आपको भी वही मिलेगा , उतनी ही शांति , उतना ही आनंद आपको प्राप्त होग़ा जितना हमे !


क्रमशः 
निवेदक :- व्ही. एन.  श्रीवास्तव "भोला"

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