एक सूचना
इस ब्लॉग के पहले वाले ब्लॉग के प्रेषक अतुल जी ने जिन्हें "बाबू" कहकर संबोधित किया है वह ग्वालियर के श्री जगन्नाथ प्रसाद जी ,स्वामी जी महराज के एक अतिशय प्रिय शिष्य
और मेरी धर्म पत्नी कृष्णा जी के बड़े भाई थे ! १९५९ में इन्होने ही पहली बार
मुझे स्वामी जी से मिलवाया था और मुझे उनसे "नाम" दिलवाया था !
"भोला"
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इस ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ पर
पाठकों के नाम एक खुला पत्र
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महापुरुष ने आगे बताया कि "प्रातः निंद्रा से उठते ही बिस्तर पर बैठे बैठे ही सर्व प्रथम अति प्रेम से अपने इष्ट देव का सिमरन चिन्तन करे ! अपने इष्ट देव को अपनी सारी उपलब्धियों, सफलताओं ,खुशियों की प्राप्ति में मददगार बनने के लिए ,उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए आंसुओं से भरे नैनों और गदगद कंठ से उन्हें हार्दिक धन्यवाद दे ! करुणानिधान प्रभु इतने से ही प्रसन्न हो जायेंगे "!
इस सन्दर्भ में लीजिये मैं सबसे पहले अपनी ही प्रातःकालीन प्रार्थना आपको सुना दूं !इसके भाव तो नित्य एक ही होते हैं केवल शब्द बदलते रहते हैं !आज की शब्दावली इस प्रकार बन रही है :
धन्यवाद तेरा प्रभु तू दाता सुख भोग
जीवन की सब सफलता आनन्द के संयोग
जो कुछ मेरे पास है ,तेरा ही है दान
मैं इठलाता फिर रहा सब कुछ अपना मान
अर्पण करने को नहीं कुछ भी मेरे पास
खाली हाथ खडा यहाँ ले दरसन की आस
हर लो मेरा अहम् औ मेरे सभी विकार
भेंट समझ मेरी इसे, करलो प्रभु स्वीकार
धन्यवाद बस धन्यवाद बस धन्यवाद का गान
मेरी पूजा मान कर , स्वीकारो भगवान
"भोला"
प्रिय पाठकगण ,संदेशों का यह क्रम प्रारंभ करते समय मैंने स्पष्ट किया था कि 'स्वान्तः सुखाय" तथा सर्वथा निज स्वार्थ सिद्धि की लालसा से प्रेरित होकर मैं यह कार्य राम काज मान कर प्रारंभ कर रहा हूँ !
प्रियवर राजीव कुलश्रेष्ट जी , श्री भूपेंदर सिंह जी, श्री गोरख नाथ शाव जी श्री चैतन्य शर्मा जी,"सारासच" जी ,Patali-the Village ji , तथा सुश्री दिव्या जी (ZEAL) , सुश्री शालिनी जी, शिखा जी , संगीता स्वरूप जी --पिछले एक वर्ष में मैंने कितनी बार यह लेखन बंद करने पर विचार किया पर आपने मुझे रोक दिया! आप के प्रोत्साहन ने मुझे अपना यह विशेष "राम काम" करते रहने की प्रेरणा दी ! मेरी साधना चलती रही , मेरी उपासना होती रही ! मैं आपका कितना आभारी हूँ , कह नहीं सकता ! पर मुझे अटपटा लगता है ,आप में से कोई मुझे धन्यवाद देता है या कोई आभार प्रगट करता है मेरे इन आलेखों के लिए !
मेरे विचार में हम सबके धन्यवाद के पात्र तो हमारे प्यारे प्रभु "श्रीराम" हैं जिन्होंने २००८ में मुझे जीवन दान देकर आदेश दिया था कि मैं अपनी और "उनकी " घनिष्ठ -परस्पर प्रीति के विषय में मुखर हो कर अपने अनुभवों को शब्द, सन्देश ,कविता, एवं स्वर संगीत (गायन) में परिणित करके "आत्म कथा" के रूप में संसार के समक्ष रखूँ !
प्रियवर राजीव कुलश्रेष्ट जी , श्री भूपेंदर सिंह जी, श्री गोरख नाथ शाव जी श्री चैतन्य शर्मा जी,"सारासच" जी ,Patali-the Village ji , तथा सुश्री दिव्या जी (ZEAL) , सुश्री शालिनी जी, शिखा जी , संगीता स्वरूप जी --पिछले एक वर्ष में मैंने कितनी बार यह लेखन बंद करने पर विचार किया पर आपने मुझे रोक दिया! आप के प्रोत्साहन ने मुझे अपना यह विशेष "राम काम" करते रहने की प्रेरणा दी ! मेरी साधना चलती रही , मेरी उपासना होती रही ! मैं आपका कितना आभारी हूँ , कह नहीं सकता ! पर मुझे अटपटा लगता है ,आप में से कोई मुझे धन्यवाद देता है या कोई आभार प्रगट करता है मेरे इन आलेखों के लिए !
मेरे विचार में हम सबके धन्यवाद के पात्र तो हमारे प्यारे प्रभु "श्रीराम" हैं जिन्होंने २००८ में मुझे जीवन दान देकर आदेश दिया था कि मैं अपनी और "उनकी " घनिष्ठ -परस्पर प्रीति के विषय में मुखर हो कर अपने अनुभवों को शब्द, सन्देश ,कविता, एवं स्वर संगीत (गायन) में परिणित करके "आत्म कथा" के रूप में संसार के समक्ष रखूँ !
प्रियजन, वास्तव में यह ब्लॉग लिख कर और उनमे अपनी भक्तिमय रचनाएँ स्वयम गाकर मैं "अपने इष्ट" के आदेश का पालन कर रहा हूँ ! मुझे उनका हुकुम बजाने में बहुत आनंद भी आरहा है !जितनी देर सन्देश लिखता हूँ मेरा "हरि सुमिरन" और "नाम जाप" चलता ही रहता है ,और समापन के बाद भी "नाम - खुमारी" टूटती नहीं ! इस शुभ विचार से कि मेरे सभी प्यारे प्यारे पाठक इस का पाठ करके अपने अपने इष्ट देवों को याद कर रहे होंगे ,मेरी खुमारी और बढ़ जाती है और मुझे देर तक परमानंद का अनुभव होता रहता है !
इसलिए अपने सभी स्नेही स्वजन पाठकगण से मेरा करबद्ध निवेदन है कि आप मेरे इन संदेशों में केवल अपने अपने इष्ट देवों का वैभव ,उनका सौन्दर्य और उनकी प्रतिभा के दर्शन करें ! उनका कृपा प्रसाद मान कर इनमें निहित दैविक आनंद ग्रहण करें ! आपको आपके "इष्ट" से मिला कर मैं पुण्य का भागी बन जाऊ , यह मेरा स्वार्थ है !
हाँ , लेकिन मुझे भुलाएँ नहीं ! हो सकता है कभी अहंकार के वशीभूत हो, मैं कुछ अनाप
शनाप लिख दूं ! प्रियजन निःसंकोच तत्काल मेरी भूल मुझे बताइएगा !
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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3 टिप्पणियां:
भोला जी हम प्रभु को धन्यवाद् न देकर आपको देते हैं क्योंकि आप ही हैं जो इतनी व्यस्त जिंदगी में हमें प्रभु नाम स्मरण कराते हैं और देखा जाये तो हम इसी बहाने प्रभु को भी धन्यवाद् देते हैं क्योंकि प्रभु तो वैसे भी भक्तों के अधीन हैं.भक्त की भक्ति में प्रभु बसते हैं इसलिए आपको हम फिर एक बार धन्यवाद् करते हैं..
ब्लॉग की प्रथम वर्षगाठ पर हार्दिक शुभकामनायें .
काकाजी प्रणाम और एक वर्ष पर बधाई स्वीकार करें! आप की लेखनी हमेशा चलती रहे और हम इसी तरह पढ़ते और कुछ सीखते रहें- यही अरमां है !
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