हनुमत कृपा
अनुभव
१९४३ में "शकुन्तला" - "शांताराम जी " के "राज कमल कला मंदिर" द्वारा निर्मित पहली टेक्नीकलर फिल्म रिलीज़ हुई ! सम्पूर्ण भारत में इस फिल्म का ज़ोरदार स्वागत हुआ !कलकत्ते के चित्रा सिनेमा में उस फिल्म ने लगातार लगभग २०० सप्ताह तक चल कर एक नया रेकोर्ड कायम किया ! फिल्मी दुनिया में इस फिल्म की धूम मच गयी ! हीरोइन "जयश्री" ,प्रोड्यूसर डायरेक्टर -"व्ही .शांताराम जी" और संगीत निदेशक "वसंत देसाई" की ख्याति में इस फिल्म ने चार चाँद लगा दिए ! एक्टरों में चन्द्र मोहन , मदन मोहन,के नाम सुनने में आये थे !
लेकिन इस फिल्म में ह्मारे बड़े भैया का कोई अता पता नहीं था ! वह इस फिल्म में कहीं दिखायी ही नहीं दिए ! वह न महाराज दुष्यंत के रोल में दिखे न ऋषि विश्वमित्र के ,न आश्रम के किसी शिष्य की भूमिका में ही दिखाई दिए !
गांधी जी के असहयोग आन्दोलन को दबाने के लिए अपनायी ब्रिटिश सरकार की दमन नीति से भयभीत हो कर बाबूजी -अम्मा ने बार बार तार भेज कर ,और बंबई के अपने जान पहचान के लोगों से जोर डलवाकर बड़े भैया को वहाँ से वापस कानपूर बुला लिया ! शर्म के मारे मैं यह बात बहुत दिनों तक अपने स्कूल के दोस्तों से छुपाये रहा ! कैसे कहता उनसे ?
तब मैं वयस में बहुत छोटा था ,नौवीं कक्षा में पढ़ता था , मुझे दुनियादारी का ज्ञान नहीं था अस्तु बड़ी बड़ी अहंकार भरी बातें मैंने अपने मित्रों से ,उस समय की थीं जब बड़े भइया को व्ही. शांताराम जी ने अपनी "शकुंतला" में भाग लेने के लिए ,अभिनेता के रूप में चुन लिया था !अब किस मुहं से उन्हें बताता क़ि बड़े भैया बंबई छोड़ कर वापस कानपूर आ गये ! उनके हाथ में आयी हुई वह अप्रत्याशित सफलता अनायास ही उनके हाथों से सरक गयी ! भैया कितने निराशा हुए होगे आप उसका अनुमान लगा सकते हैं ! उनके तो सारे सपने एक झटके में ही टूट चुके थे !
आप कहेंगे क़ि उपरोक्त कथन में श्री हनुमान जी की कौन सी कृपा निहित है ? बताउंगा
प्रियजन ,थोड़ा धैर्य रखें ..
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
लेकिन इस फिल्म में ह्मारे बड़े भैया का कोई अता पता नहीं था ! वह इस फिल्म में कहीं दिखायी ही नहीं दिए ! वह न महाराज दुष्यंत के रोल में दिखे न ऋषि विश्वमित्र के ,न आश्रम के किसी शिष्य की भूमिका में ही दिखाई दिए !
गांधी जी के असहयोग आन्दोलन को दबाने के लिए अपनायी ब्रिटिश सरकार की दमन नीति से भयभीत हो कर बाबूजी -अम्मा ने बार बार तार भेज कर ,और बंबई के अपने जान पहचान के लोगों से जोर डलवाकर बड़े भैया को वहाँ से वापस कानपूर बुला लिया ! शर्म के मारे मैं यह बात बहुत दिनों तक अपने स्कूल के दोस्तों से छुपाये रहा ! कैसे कहता उनसे ?
तब मैं वयस में बहुत छोटा था ,नौवीं कक्षा में पढ़ता था , मुझे दुनियादारी का ज्ञान नहीं था अस्तु बड़ी बड़ी अहंकार भरी बातें मैंने अपने मित्रों से ,उस समय की थीं जब बड़े भइया को व्ही. शांताराम जी ने अपनी "शकुंतला" में भाग लेने के लिए ,अभिनेता के रूप में चुन लिया था !अब किस मुहं से उन्हें बताता क़ि बड़े भैया बंबई छोड़ कर वापस कानपूर आ गये ! उनके हाथ में आयी हुई वह अप्रत्याशित सफलता अनायास ही उनके हाथों से सरक गयी ! भैया कितने निराशा हुए होगे आप उसका अनुमान लगा सकते हैं ! उनके तो सारे सपने एक झटके में ही टूट चुके थे !
आप कहेंगे क़ि उपरोक्त कथन में श्री हनुमान जी की कौन सी कृपा निहित है ? बताउंगा
प्रियजन ,थोड़ा धैर्य रखें ..
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"