सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

साधन-भजन कीर्तन # 2 9 8

हनुमत कृपा -अनुभव                                                          साधक साधन साधिये

साधन-भजन कीर्तन                                                                              ( २ ९ ८ )

भक्ति संगीत (भजन) का प्रभाव

संगीत मार्तण्ड पन्डित ओमकारनाथ जी हमारे बी.एच .यू. के संगीत महाविद्यालय के संस्थापक और प्रथम प्राचार्य थे ! उन्होंने महामना मालवीय जी की मन्त्रणा से भारतीय शाश्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार हेतु इस विद्यालय की स्थापना करवायी थी !

यह उनके दिव्य ( जी हाँ दिव्य ) संगीत का आकर्षण था जिसने सैकड़ों संगीत प्रेमियों को ,विश्वविद्यालय के रुरिया  हॉस्टल के सामने वाले  घास के मैदान में, बिना किसी तम्बू-कनात के , डायरेक्ट "नीले गगन के तले ,तारों की छैयां में " शीतकाल की शीतल ओस में भींगते हुए,बिना किसी शिकवा शिकायत के सारी रात बिठाये रखा !

मेरे जीवन का यह पहिला अवसर था जब मुझे ऐसे दिव्य गायक के इतने निकट बैठकर   उनका संगीत सुनने का सुअवसर मिला ! पंडित जी के गायन में जो एक प्रमुख विशेषता मुझे उस समय लगी , वह यह थी की वह कोई भी गायन (ख्याल - भजन कुछ भी ) शुरू  करने के पूर्व कुछ समय को आँखें बंद कर के "ध्यान" लगाते थे और जो पहिली ध्वनी उनके कंठ से निकलती थी वह प्रनवाक्ष्रर "ॐ" जैसी थी ! गुरु से प्राप्त "मन्त्र" के समान मेरे जहन में उसी   समय यह बात बस गयी कि अपना कार्यक्रम प्रारम्भ करने से पहले हर गायक को अपने "इष्ट"का सिमरन अवश्य कर लेना चाहिए !

प्रियजन ! मेरा ये "ओब्ज़रवेशन" १९४७-४८ का है ! मैंने उस समय तक इतने निकट से  किसी अन्य विख्यात संगीतग्य को गाते हुए नहीं देखा था ! हो सकता है की उस जमाने में  अन्य गायक भी ऐसा करते रहे होंगे !

सुगम संगीत तथा काव्य में मेरी रूचि के कारण आकाशवाणी से सम्बन्धित हो जाने पर मुझे ,१९४७ से आज २०११ के बीच , ६४-६५ वर्षों में भारत के अन्य बड़े बड़े संगीतज्ञों से मिलने का मौका मिला !और मैंने देखा कि एक तरह से सभी स्वर-संयोजक , गायक , वादक अपना प्रोग्राम शुरू करने से पहिले "स्टेज" को सर नवाते हैं और  श्रद्धा से अपनीं आँखें मूँदकर अपने ईश्वर-खुदा को याद करते हैं !

अत्यंत निकट से, परिवार के माहौल में घर पर ही मुझे नौशाद साहेब , पंडित जसराज जी, गुलाम मुस्तफा साहेब, मुकेशजी,कविता कृष्णमूर्ति जी,हरिओम शरणजी, वाणी जयराम जी तथा पंकज उदास जीआदि अनेक जाने माने संगीतज्ञों से मिलने का अवसर मिला !मैंने इन सभी प्रतिष्ठित संगीतज्ञों को कार्यक्रम के पहिले अपने इष्ट को उसी भाव से याद करते हुए पाया ! संगीत उनके इबादत ,उनकी साधना का प्रमुख साधन है !

उतनी सघन साधना के साथ प्रस्तुत संगीत क्यों नहीं हृदय छुएगा , क्यों नहीं सुनने वालों की आँखों को नम करेगा ?, क्यों नहीं उनके रोम रोम को झंकृत कर देगा ?

प्रियजन, विश्वास करिये श्रोताओं को ऐसा भक्ति संगीत सुनकर अवश्य ही उनके अपने "इष्ट" का प्रत्यक्ष दर्शन हो जायेगा !

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निवेदक: व्ही. एन.  श्रीवास्तव "भोला"