मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ४ ७

हनुमत कृपा 
अनुभव 

साधक  साधन  साधिये समझ सकल सुख सार !
वाचक  वाच्य   एक  है   , निश्चित  धार  विचार !!
( श्री स्वामी सत्यानन्द जी की अमृतवाणी के राम कृपा अवतरण प्रकरण से )


प्रियजन, पिछले अंकों में जब,मैं इधर उधर के निरर्थक वाद-विवाद में व्यस्त था किसी ने टोक दिया ,और एक बार फिर मुझे ,वह शेर ,अचानक ही याद आगया  -


टोक  देता  है  मुझे  जबभि   भूल करता हूँ 
ऐसा लगता  है कोई मुझसे बड़ा है  मुझमे !!
अब तो ये मानना होग़ा कि खुदा है मुझमे !!


कौन है वह "खुदा" जो अज्ञान के गहन अंधकार से अंगुली पकड़ कर हमे बाहर निकालता है , हमारा उचित मार्ग दर्शन करता है और अन्तोगत्वा ,हमारी हर गलती पर टोक कर हमे सुधरने की प्रेरणा देता है ? प्रियजन! वह उस साक्षात् परब्रह्म सद्गुरु के सिवाय और  कौन हो सकता है ! 
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who has opened the eyes blinded by darkness of ignorance with the collyrium-stick of knowledge.


किसी ने कितना सच कहा है "गुरु बिन भवनिधि तरे न कोई ,लाख जतन ----"और हमारा कितना सौभाग्य है क़ि हमे

भ्रम  भूल में भटकते उदय हुए जब भाग ,
मिला अचानक गुरु मुझे लगी लगन की जाग !!

हमे टोकने वाले और कुकर्मों से रोकने वाले ह्मारे प्यारे सद्गुरु ,ह्मारे सौभाग्य से ,सही समय में ही हमें मिल गये !उन्होंने  अपनी "अमृतवाणी" के द्वारा  हमे संदेश दिया ,क़ि मिथ्या के वाद -विवाद में न पड़ कर ह्म सद्गुरु द्वारा निर्धारित "साधना" करते रहें ! एक "नाम आराधन" के द्वारा ह़ी ह्म साधकों का कल्याण सुनिश्चित है !  

" साधक साधन साधिये   ....राम नाम  आराधिये "

क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 

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