राधा हनुमत कृपा
अनुभव
(गतांक से आगे)
मैंने पिछले अंकों में ,अमरीकी क्षात्रों द्वारा उठाये ,ह्मारे सर्वाधिक पूज्यनीय इष्ट - भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की जीवन लीलाओं से चुने कुछ विवादास्पद प्रसंगों का वर्णन किया था ! प्रियजन ,ह्मारे ग्रंथों में उन सभी शंकाओं को समूल उखाड़ फेकने के तथ्य मौजूद हैं !मैंने उन्ही ग्रंथों से प्राप्त जानकारी के आधार पर वैसी लीलाओं से उभरी शंकाओं के समाधान खोज कर ,अपनी सीमित क्षमताओं से ,स्वयं समझने और अपने प्रिय स्वजनों को समझाने का प्रयास किया है ! समझ ,शक्ति ,समय और साधनों की कमी के कारण उस अथाह ज्ञान के सागर से दो चार बूँद से अधिक नहीं ला पाया , फिर भी जितना बन पा रहा है ,कर रहा हूँ ! चलिए कल से आगे बढ़ें :-
दो शंकाओं (a) और (b) के विषय में कल लिख चुका हूँ ! आज श्रीकृष्ण एवं वृषभानदुलारी राधा रानी के सम्बन्ध की तीसरी शंका के समाधान से शुरू कर रहा हूँ :-
- (c) प्राचीन ग्रन्थों (विशेष कर श्रीमद भागवत ) में हमे कहीं भी "राधा कृष्ण" के बीच दूर से भी पति पत्नी वाला सम्बन्ध नहीं दिखाई दिया ! राधा-कृष्ण के सांसारिक प्रेम की मिथ्या धारणा का उद्गम कहां है ,राम जाने !
- श्रीराधा जी को "श्रीमदभागवद" में "श्री कृष्ण" की "आद्य संयोजिका शक्ति", "ब्रह्मानंद प्रदायिका शक्ति" एवं "आह्लादिनी शक्ति" तथा सर्वशक्तिमान भगवान श्री कृष्ण की "आराधिका" कहा गया है ! (स्क-दशम,.अ -३०, श्लोक २८ ) "श्रीराधाजी", वृज की अधीश्वरी देवी हैं ! ग्रंथों में उन्हें " श्री" नाम से भी सम्बोधित किया गया है जो आज तक प्रचिलित है ! श्रीमद भगवत में यह भी कहा गया है क़ि "श्रीकृष्ण" आत्मा हैं और श्रीराधाजी "आत्माकारवृत्ति" हैं !
- बरसाने गाँव में प्रचलित कथाओं के आधार पर यह भी किम्वदंती है क़ि वृषभान दुलारी श्रीराधा के पति का नाम "अनय" था जो स्वयं देव पुरुष थे और श्री कृष्ण जी के साथ साथ लीला करने के लिए अवतरित हुए थे !
- (d) चौथी शंका रुकमिणी हरण के विषय में थी
- रुकमिणी द्वारकाधीश श्री कृष्ण की प्रमुख आठ पटरानियों में से एक थीं !श्रीकृष्ण की ये आठों पटरानियाँ "अष्टधा प्रक्रति" की प्रतीक थीं जो सब योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण को अतिशय प्रिय थीं तथा सर्वदा--सर्वथा उनके आधीन थीं ! "गीताजी " में श्री भगवान ने स्वयं अर्जुन को यह तथ्य समझाया था !श्री भगवान उवाच-
- " पृथ्वी ,पवन ,जल , तेज , नभ .मन ,अहंकार व बुद्धि भी !
- इन आठ भागों में विभाजित है प्रक्रति मेरी सभी !!
- ( भगवत गीता -श्री हरि गीता - अध्याय सातवाँ -श्लोक ४ )
- राजकुमारी रुकमिणी विदर्भराज भीष्मक की पुत्री एवं युवराज रुक्मी की बहन थीं ! भाई रुक्मी उनका विवाह दुष्ट राजा शिशुपाल से करवाना चाहता था जो कुमारी को नापसंद था ! तनिक सोच कर देखें ,कहाँ परम पवित्र "जीव" की प्रतीक रुकमिणी और कहाँ दुष्टता का साकार स्वरूप शिशुपाल ! प्रकृति के नैसर्गिक नियमानुसार "जीव" का अंतिम गन्तव्य "ईश्वर मिलन" है ! सो रुक्मिणी "ईश्वर -श्रीकृष्ण " को ही अपने पति के रूप में वरना चाहती थी! उन्होंने न्योता भेज कर कृष्ण को बुलाया था क़ि वह उनकी रक्षा करें , उन्हें आकर अपने साथ द्वारका ले जाएँ और विधिवत उनसे विवाह कर उन्हें अपनी पत्नी स्वीकार करें ! प्रियजन ,आप कहें ,यह हरण कैसे हुआ ? दो व्यस्क व्यक्तियों का आपसी सहमति से विवाह करना कैसे अनुचित है ?
- साधारण परिस्थिति में,योगेश्वर शायद इस "हरण कांड" को अंजाम नहीं देते ,पर हुआ ऐसा क़ि रुक्मणी के गुरु "सुदेव जी " ने सन्देशवाहक के रूप में द्वारका जाकर शास्त्र विधि से रुकमनी का पानिग्रहन करने के लिए श्रीकृष्ण को प्रेरित किया !इस प्रकार सद्गुरु के आशीर्वाद से ,लोक कल्याण हेतु "जीव"-रुक्मणि और "ईश्वर" -"श्री कृष्ण" का मिलन हुआ ! आज भी ,भौतिक जगत में एकमात्र "सद्गुरु" की कृपा से ही योग्य शिष्य को "ईश्वर" मिल सकता है !
- आज इतना ही , क्षमतानुसार ,शेष शंकाओं का समाधान कल करेंगे !
- निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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