हनुमत कृपा
अनुभव
साधक साधन साधिये - साधन (३)
"भक्ति"
"भक्ति"
तुलसीकृत रामचरितमानस में त्रेतायुग के श्री राम की वाणी में नवधा भक्ति के जिन नौ साधनों का उल्लेख किया है वही नौ लक्षण श्रीभागवत पुराण में भक्त शिरोमणि प्रह्लाद ने अपने सहपाठी दैत्य बालकों को तथा अपने पिता दैत्यराज हिरन्यकशिपू को बताये थे ! प्रहलाद जी ने उनसे कहा कि" भगवान को वे व्यक्ति प्रिय हैं जो अतिशय प्रीति सहित भगवान के गुण-लीला और नाम का श्रवण, कीर्तन और उनके रूप नाम आदि का स्मरण और उनके चरणों क़ी सेवा ,पूजा -अर्चा ,वन्दन,दास्य,सख्य और आत्म निवेदन आदि उनके प्रति पूर्ण समर्पण के भाव से करते है"(श्रीमद भागवत-स्कन्ध.- ७, श्लोक.२३,२४ )
भागवतपुराण में ही कपिल मुनि ने अपनी मां देवहुति के इस प्रश्न पर कि ," भगवन ! आपकी समुचित भक्ति का स्वरूप क्या है ? "(अध्. २५, श्लो. २८) , कपिल भगवान ने उन्हें बताया क़ि :."निष्काम भाव से श्रद्धापूर्वक अपने नित्य -नैमित्तिक कर्म का पालन करके , इष्टदेव की प्रतिमा का दर्शन ,स्पर्श ,स्तुति और वन्दना करना ,सभी प्राणियों में उन इष्टदेव का दर्षन और उनकी ही भावना करना, महापुरुषों का संग और सत्संग करना ,दीनों पर दया और मित्रता का व्यवहार करना ,अध्यात्म शास्त्रों का श्रवण और प्रभु के नाम का उच्च स्वर से कीर्तन करना तथा अहम त्याग कर अतिशय प्रीति सहित पूर्ण समर्पण करने से अनायास ही साधक परमात्मा को पा जाता है "!(स्कन्ध ३ ,अध्याय २९ ,श्लोक १५-१९ )
भगवान कपिल ने यह भी कहा क़ि भगवत्प्राप्ति के लिए सर्वात्मा श्रीहरी के प्रति की हुई प्रगाढ़ प्रीति (भक्ति) के समान और कोई सरल और मंगलमय मार्ग नहीं है ! (स्कन्ध ३, अध्याय २५ ,श्लोक १९ )
भागवतपुराण में ही कपिल मुनि ने अपनी मां देवहुति के इस प्रश्न पर कि ," भगवन ! आपकी समुचित भक्ति का स्वरूप क्या है ? "(अध्. २५, श्लो. २८) , कपिल भगवान ने उन्हें बताया क़ि :."निष्काम भाव से श्रद्धापूर्वक अपने नित्य -नैमित्तिक कर्म का पालन करके , इष्टदेव की प्रतिमा का दर्शन ,स्पर्श ,स्तुति और वन्दना करना ,सभी प्राणियों में उन इष्टदेव का दर्षन और उनकी ही भावना करना, महापुरुषों का संग और सत्संग करना ,दीनों पर दया और मित्रता का व्यवहार करना ,अध्यात्म शास्त्रों का श्रवण और प्रभु के नाम का उच्च स्वर से कीर्तन करना तथा अहम त्याग कर अतिशय प्रीति सहित पूर्ण समर्पण करने से अनायास ही साधक परमात्मा को पा जाता है "!(स्कन्ध ३ ,अध्याय २९ ,श्लोक १५-१९ )
भगवान कपिल ने यह भी कहा क़ि भगवत्प्राप्ति के लिए सर्वात्मा श्रीहरी के प्रति की हुई प्रगाढ़ प्रीति (भक्ति) के समान और कोई सरल और मंगलमय मार्ग नहीं है ! (स्कन्ध ३, अध्याय २५ ,श्लोक १९ )
इस प्रकार प्रियजन ! हमने देखा कि वैदिक काल से वर्तमान काल तक के हमारे सभी अभिनंदनीय धर्मग्रंथ आध्यात्मिक जीवन में"भक्ति" के उपरोक्त नौ लक्षणों को ही "प्रभु-कृपा अवतरण" की सिद्धि का सरलतम साधन बताते है ! और आपने यह भी देखा क़ि हम जैसे आलसी और काहिल व्यक्तियों के लिए हमारे कृपा सिन्धु - करुना-निधान श्री राम जी ने कितनी सुविधा दे दी ! अपनी प्रिय भामिनी शबरी की कुटिया में उन्होंने यह उद्घोषणा कर दी क़ि " तुम यदि इन ९ साधनों में से केवल एक ही कर पाओगे तो भी मैं तुम्हारा उद्धार कर दूंगा "! कितना आसान कर दिया है उन्होंने उन तक पहुँचने का हमारा मार्ग ? फिर भी हम यदि उनके " अतिसय प्रिय " न बन सकें तो दोष हमारा है ,उनका या किसी अन्य का नहीं ! अस्तु हमे उनके प्रति "सकल प्रकार भगति दृढ़ " करनी है , उनसे अतिशय प्रीति करनी है ! अस्तु प्रियजन , अब देर मत करो !
१९६४- ६५ में बड़े भैया ने आकाश वाणी भोपाल से एक आधुनिक भजन गाया था , हाल में अनिल बेटा ने सिंगापूर से हमे उसकी याद दिलायी , आप देखें कितना सटीक बैठता है वह कितना प्रासंगिक है वह हमारे आज के संदेश के लिए :
रे मन प्रभु से प्रीति करो
प्रभु की प्रेम भक्ति श्रद्धा से अपना आप भरो!!
रे मन प्रभु से प्रीति करो
ऎसी प्रीति करो तुम प्रभु से , प्रभु तुम माहि समायें !
बने आरती पूजा जीवन , रसना हरि गुन गाये !
एक नाम आधार लिए तुम , इस जग में बिचरो !!
रे मन प्रभु से प्रीति करो
गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने भी कहा है :
"प्रीति करो भगवान से , मत मांगो फल दाम
तज कर फल की कामना करिये भक्ति निष्काम !!
क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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