शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 3 7

हनुमत कृपा 
अनुभव 

मैं स्वयं पूर्णतः अज्ञानी हूँ और मेरी बुद्धि भी उतनी प्रखर नहीं है !.कुछ करने धरने की क्षमता  मुझ में न पहले कभी थी और न अब है ! फिर भी यह शरीर इतने वर्ष कायम रह कर कुछ न कुछ करता ही रहा ! यही देखिये यहाँ  U S A में भारतीय N R I s के ह्मारे जैसे बुज़ुर्ग माँ बाप अक्सर यहाँ की भयंकर शीत का बहाना बनाकर भारत लौट जाते हैं और ह्म हैं कि यहाँ की बर्फीली सर्दी में भी जम कर बैठे हुए हैं ! 

उपरोक्त बात मेरे प्रेरणास्रोत ने मुझसे क्यों कहलवाई ,वह ही जानें !शायद बाद में कभी हमे बताएँ और उसके आगे कुछ और लिखवाएं ! तब आगे लिखूँगा !"विषय" बदल देने की उनकी पुरानी आदत है , इतना सब कहलाकर  देखिये अब मजबूर कर रहे हैं कि कुछ शेरोशायरी हो जाये ! ठीक है ,जो "उनकी" इच्छा ! "वह":अपनी आदत से मजबूर हैं , ह्म अपनी आदत से ! मैं तो उनसे केवल इतनी अर्ज़ कर सकता हूँ कि  


जब तक तु रख सके तुरख चालू ये सिलसिला !
मैं कुछ न कहूंगा  तु    खुशी  दे  या गम पिला  !! 
(Continue harassing me as long as U can, Shall not complain even if U give me pains)
जब   सौंप  दिया  भार  सभी   यार   तेरे हाथ !
मैं क्यों करूं शिकवा बता क्यों कर करुं गिला !! 
(I have surrendered to U unconditionally  Why should then I object or complain of any suffering )
आदत से तू मजबूर है  पर मैं भी कम नहीं !
सौ  बार  मरुंगा  कि तू   लेगा   मुझे जिला !!
( I know U R helpless but I M no less ,.Shall like to die a hundred times ,knowing that U R there to save me.)


चलिए अपने कल के विषय पर लौट आयें  ! पिछले संदेशों में ह्मारे बीच  वैदिक काल की भारतीय  उपलब्धियों की बात चल रही थी ! कह रहा था  कि  आज से हजारों वर्ष पूर्व भारतीयों नें  ब्रह्मनाद "ॐ" तथा "वेद" के शब्द सुने थे जिसे उन्होंने स्मृति एवं श्रुतियों के सहारे सारी मानवता तक  पहुँचाने  का प्रयास किया था इस प्रकार ह्मारे ब्रह्म ज्ञान की ख्याति दूर दूर तक फैली ! प्रियजन ! एक बात बताऊँ मुझे हाल ही में यहाँ U S A  में एक शोधकर्ता  से पता चला कि  मसीहा बनने से पहिले  ईसाई धर्म  (Christianity)  के जनक ईसा मसीह ( Lord Jisus Christ ) भी वेदों मे निहित भारतीय दर्शन एवं आध्यात्म का अध्धयन करने भारत गये थे !


अब जब  इष्ट देव श्री हनुमान जी के आशीर्वाद से  कल के विषय "ओंकार" पर एक बार फिर चर्चा चल ही गयी तो क्यों न थोड़ा और आगे बढ़ें ! प्रियजन ! ! ह्मारे ऋषि मुनियों ने आद्य (श्रुति) ग्रंथों में दिव्य "ॐ" शब्द की "अनंत उर्जा" में निहित प्रचंड शक्ति का प्रतिपादन/वर्णन किया है !आज के वैज्ञानिकों ने शारीरिक ,मानसिक एवं आध्यात्मिक कोणों से गहन खोज के द्वारा "ॐ" की सार्थकता पर प्रकाश डाला है और समग्र मानवता के लिए आज "ॐ" अभिनंदनीय हो गया है ! 

यहाँ अमरीका में ,जहाँ धर्म विषयक शिक्षा वर्जित है ,बहुत से शिक्षा संस्थानों में  नन्हे नन्हे बच्चों से योग कराया जाता है ,आँख बंद करके "मौन" बैठने की क्रिया का अभ्यास कराया जाता है और कहीं कहीं तो "ॐ" शब्द का उच्चारण करवा कर ध्यान लगवाने की भी कोशिश की जाती है ! खास बात यह है क़ी ऐसे विद्यालय हिन्दुओं द्वारा नहीं बल्कि क्रिस्चियन यूनानी,और यहूदी मतावलंबियों द्वारा संचालित हैं !यहाँ के किसी   किसी जिमनेशियुम् में भी "ॐ" कह कर ध्यान लगाने का प्रशिक्षण दिया जाता है !


क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 

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