हनुमत कृपा
अनुभव
(गतांक से आगे)
प्रियजन, अपनी अमृतवाणी में सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने हम साधकों को समझाया है कि हमें अन्य धर्म, आस्था ,मत -मतान्तर वालो से उलझ कर वाद विवाद में पड़ कर अपनी "नाम - साधना" का बहुमूल्य समय व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिये ! गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए हमें अपना स्वधर्म पालन करते रहना चाहिए !
महाराज जी ने कहा है कि मत मतान्तरों क़ी कपोल कल्पनाओं का मायाजाल कृत्रिम है, झूठा है ! मानव का किसी के प्रति किसी प्रकार का ,मोह ,बैर, विरोध , निंदा, हठ और क्रोध,सभी मिथ्या हैं और सर्वथा त्याज्य हैं !
- मिथ्या मन कल्पित मतजाल , मिथ्या है मोह कुमुद बेताल !!
- मिथ्या मन मुखिया मनोराज ,सच्चा है राम नाम जप काज,!!
- मिथ्या है वाद विवाद विरोध , मिथ्या है वैर निंदा हठ क्रोध !!
- मिथ्या द्रोह दुर्गुण दुःख खान , राम नाम जप सत्य निधान !!
प्रियजन , इस समग्र "सृष्टि वृक्ष" का सृजन एवं विस्तार "केवल एक बीज" और एक ही "मूल" से हुआ है ! यह "बीज" विभिन्न विशेषणों से जाना जाता है जैसे ईश्वर ,परमात्मा , परमपुरुष इत्यादि ! इस बीजरूपी परमात्मा के व्यक्तिवाचक नामों की सूची अनंत है , कहाँ तक गिनाएं ? हर धर्मावलम्बी "उन्हें" अपनी श्रद्धा एवं मान्यता के अनुसार अपनी भाषा में ,भाव सहित, अपने गुरुजनों की मन्त्रणानुसार चाहे जिस नाम से भी पुकारे उसके "निर्मल मन " से उठी वह पुकार सुन कर "परम प्रभु" नंगे पाँव आकर साधक पर अपनी कृपा वृष्टि अवश्य ही करेंगे ! "वह" किसी को भी निराश नहीं करते !
अस्तु बेकार के वाद-विवाद में समय बर्बाद करने के बजाय ह्म गुरुजनों द्वारा निर्धारित अपनी साधना चालू रख पायें ,ऎसी कृपा ह्मारे प्यारे प्रभु ह्म सब पर सदा सर्वदा बनाये रखें आज हमारी यह़ी प्रार्थना है !
निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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