रविवार, 5 दिसंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 3 3

हनुमत कृपा 
अनुभव 

देखा आपने ,कल मैं ॐ के विषय में संदेश लिख रहा था और ह्मारे इष्ट देव ने तत्काल ह्म पर अपनी विशेष कृपा कर दी ! हुआ ऐसा क़ि उसी समय ,"हनुमत कृपा" से ,लोक धुन में,बहुत ही आसान शब्दों का एक ॐ संबंधी भजन , "आस्था" चेनेल पर आ गया जिसने ॐ शब्द का सर्वभौमिक स्वरूप हमे दिखा दिया !  ब्रह्मा विष्णु महेश एवं नारदादि देवताओं से लेकर इस युग के तुलसी,मीरा,सूर ,कबीर आदि महात्माओं पर उस परम शक्तिशाली एकाक्षर मन्त्र का जादुई प्रभाव उसमे प्रदर्शित हुआ! 

चलिए ,अन्तराल के बाद ,अब आप को बता ही दूं  क़ि हमारी अम्मा ने ॐ  के विषय में 
बचपन में हमें क्या क्या बताया था ! अपनी सहज भाषा में उन्होंने हमसे कहा था -लेकिन उससे पहले ,जरा ठहरिये , --"उनकी" प्रेरणा से अभी एक अन्य तरंग उठ रही है 

प्रियजन हंसियेगा नहीं -- एक राज़ की बात बताऊँ  --अम्मा ने  ह्म सभी बच्चों को कई कई नाम दे रखे थे ! दुलरा कर मुझे भी वह बहुत सारे नामों से पुकारती थीं -- "भोला" के अतिरिक्त , "भोलंग" (तैमूर लंग से "राइम" करता ) , एक और "कन्हैया जी" (क्यूंकि कृष्ण के समान मैं ,उनकी चारोँ संतानों मे सबसे सावला था) ,हाँ एक और विचित्र नाम उन्होंने मुझे दिया था "तेर तेर तेर" !प्रिय जन , मैं  इस नाम की "origin " के विषय में जानता तो हूँ पर बताउंगा कुछ भी नहीं क्योंकि  I am not an English man who makes others laugh at his cost ! अवश्य यदि आपको उस जमाने का कोई मिले तो उससे पूछ लीजियेगा 


अंग्रेजियत की बात चली तो याद आया क़ि अम्मा ने एक विलायती नाम भी मुझे दिया था   "ए. बी . भोवा" ! उन्हें जब बहुत प्यार उमड़ता था तब वह मुझे इस नाम " ए. बी. भोवा " से ही पुकारती थीं ! क्यों वह नाम दिया था उन्होंने मुझे यह मैं उनसे कभी पूछ नही  पाया ! मेरे इस विशेष विलायती नाम का राज़ १९६२ में आज के ही दिन ५  दिसम्बर को अम्मा के साथ  ही परलोक सिधार गया


अतिशय प्रिय मेरे स्वजनों, क्या यह एक अद्भुत बात नहीं है क़ि आज जब मैं "ॐ" के विषय में अपनी दिवंगत अम्मा के विचार लिखने बैठा, तो मुझे याद आया क़ि आज वही  दिवस है जब आज से अडतीस वर्ष पूर्व हमारी प्यारी अम्मा हम सब को छोड़ कर अपने गोपाल जी के धाम गयी थीं.! उदर के केंसर की भयंकर पीड़ा सहते हुए भी ,उन्होंने एक अत्यंत मधुर मुस्कान के साथ शारीर त्यागा था ! जाते जाते वह हमे समझा गयी थीं क़ि"रोना मत बच्चों ,मैं हँसते हुए जाउंगी ,तुम हंस हंस कर हमे विदा करना "! तदन्तर   परिवार सहित ह्म चारोँ बच्चों ने उनकी इच्छानुसार उनके समक्ष खड़े होकर अखंड हरि कीर्तन किया उस क्षण तक जब तक ह्मारे साथ साथ उनके होठ भी हिलते रहे ,उनकी 
ऑंखें खुली रहीं और उनकी साँस चलती रही ! ह्म तो कीर्तन करते ही रहते क़ि पडोस के चाचाजी ने हमे बताया क़ि "बेटा वह चली गयी हैं "! हमे विश्वास नहीं हुआ क्योंकि माँ के  मुखारविंद की मुस्कराहट तब भी लोप नहीं हुई थी !


प्रिय जन ,अपना वचन निभाकर वह तो मुस्कुराते मुस्कुराते विदा हो गयीं थीं ! और फिर 
हमने वैसा  ह़ी किया ,जैसा अम्मा चाहतीं थीं ! बयान नहीं कर पाउँगा क़ि कितनी मधुर मुस्कान थी उनके प्रफुल्लित मुखारविंद पर , हल्की गुलाबी बनारसी परिधान में वह एक "बालिका वधू" सी  लग रहीं थीं ! "लाल विला" से उसकी स्वामिनी "लाल मुखी देवी " जा रहीं थीं ! बाबूजी अस्वस्थ थे , ह्म दोनों भाइयों को उन्हें ,घर की सकरी सीढ़ी से उतारना था ! दोनों भाई एक साथ उन सीढियों पर उन्हें सम्हाल नहीं पाए अस्तु मैंने अकेले ही उन्हें गोदी में उठा लिया ! ऐसा लगा जैसे मैं अम्मा के परम प्रिय इष्ट "गिरिधर गोपाल"जी के श्री चरणों पर चढ़ाने के लिए गुलाब की एक पंखुरी लेकर सीढ़ी से नीचे उतर रहा हूँ ! तबसे लेकर उस घड़ी तक जब अम्मा की पार्थिव काया अग्नि को समर्पित हुई , ह्म दोनों भाई अपनी मित्र मंडली के सहयोग से निरंतर  "श्री राम जय राम जय जय राम"  का संकीर्तन करते रहे !    


इसके आगे अब कुछ न कह पाऊंगा ! कल जो भी प्रेरणा "वह" देंगे ,जो लिखवायेंगे वह लिख कर आपकी सेवा मे प्रेषित करूँगा !


निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
78,Clinton Road,
BROOKLINE, MA 02445, USA 

कोई टिप्पणी नहीं: